सरदार पटेल पर गर्व करना ही चाहिए

सरदार पटेल पर गर्व करना ही चाहिए
.      कृष्ण देव सिंह
रायपुर।24नबम्बर2029।मैं न चाहते हुए भी कुर्मी जाति और आजाद भारत के प्रथम उपप्रघानमंत्री व गृह मंत्री लौहपुरूष सरदार बल्लभ भाई पटेल जी के वारे में लिखने के लिए बाध्य हुआ हूँ। क्योकि  मेरी अपेक्षा के अनुरूप कुछ कथित पिछड़ा और शोषितवर्ग के स्वमंभू लोग भी देश की वर्तमान राजनैतिक स्थिति के लिए कुर्मी जाति और कुर्मी समाज के राजानेताओं,समाजसेवकों और प्रबुद्ध वर्ग पर बेवजह किचड़ उछालने लगे हैI तो मनुवादियों और तथाकथित वामपंथियों के पेट में दर्द सरदार पटेल के  विशाल और भब्य मुर्ति की स्थापना को लेकर कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है।मुक्षे अच्छी तरह पता है कि सत्तर सालों से छूप - छूपके , दो रुपये - चार रुपये का चंदा करके कुर्मी भाई अपनी पहचान बनाने के लिए पटेल जयंती मनाया करते थे ।एक कमरे की लाईब्रेरी और छोटे शहर के एक तंग चौराहे आदि का नामाकरण उनके नाम पर करके तीर मारा करते थे ।जैसे - तैसे पोस्टकार्ड साईज उनकी मूर्ति बिठाकर इतराते थे ।वर्षों वाद इन कठिन परिस्थितियों में प्रधानमत्री द्वारा  पटेल जी के प्रति दो साल पहले दिखाए गये अप्रतिम सम्मान को भी आज उपहास उपहास उडाने वालों की असली मंशा और चेहरा पहचाने व उसे उजागर करने की जरुरत हैं ।क्योंकि कुर्मियों को न केवल सरदार पटेल,डा०खुबचंद वघेल,वीर चन्द्र पटेल,.वीर शिवाजी और लव-कुश जैसे महापुरूषों पर गर्व करना ही चाहिए ।वल्कि उनके मान - सम्मान पर उगली उठाने वालों को मुँह तोड़ जवाव देने से नहीं चुकना चाहिए ।
                            मेरी कोई भी पार्टी हो , कोई कुर्मी भाई किसी भी पार्टी में हों , हमलोग इस सद्भावना पूर्ण कार्य के लिए सदैव ऋणी रहेंगे ।क्योंकि, सत्ता में होकर भी पटेल जी को याद कर रहे हैं ।2014 के पहले याद करते तो ये कह सकते थे की सत्ता में आने के लिए ये सब कर रही है ।पर सत्ता में होकर भी पटेल जी को वास्तविक स्थान देना ,वाक़ई क़ाबिले तारीफ़ है , वरना पटेल जी का क्या हाल कर दिया गया था,ये सभी जानते हैI हाँ कुर्मी खुश हैं कि मोदीजी ने सरदार पटेल की विश्व में सबसे ऊंची प्रतिमा 3600 करोड़ में व शिवाजी की मुम्बई में 2500 करोड़ की मूर्ति लगवा दी।
               .यह भी सत्य है कि जब भाजपा का कोई राजनैतिक व सामाजिक आधार नहीं था, तब हिंदुत्व की अलख जगाने का ठेका कुर्मियों ने ले लिया क्योंकि मनुवादीऔर सामंतवादी ताकतें के बड़े व छोटे नेताओं के रूप में राजनैतिक मलाई उड़ा रहीं थी और कुर्मियों को चुन- चुनकर ठिकाने लगाया गया था।तब कुर्मियों और सरदार पटेल को कोसने वाले आज के ये सब कुकुरमुत्ते  भी मौज नहीं उडा रहे थे?हाँ यह सत्य है कि
1- केशुभाई पटेल गुजरात में भाजपा के प्रभावशाली नेता थे।कुर्मियों व अन्य पिछड़ों के व्यापक जन समर्थन से भाजपा की राजनीति को राज्य की बुलंदियों तक पहुँचाया। 
2- गुजराती कुर्मी प्रवीण तोगड़िया विश्व हिंदू परिषद के फायर ब्रांड नेता थे। उनके बिना भाजपा को हिंदुओं का ब्यापक जन समर्थन असम्भव था। जब 2014 में पहली बार भाजपा पूर्ण बहुमत से सत्ता में आयी।
3- विनय कटियार यूपी में हिंदुत्व और भाजपा का फायरब्रांड चेहरा हुआ करते थे, राम मंदिर आंदोलन से लेकर भाजपा को पिछड़ों में ब्यापक जनाधार के कुशल कारीगर रहे हैं|
4- ओम प्रकाश सिंह भाजपा यूपी में कुर्मियों और पिछड़ों के कद्दावर नेता थे और भाजपा सरकार में उनका प्रभावशाली कद था ।
5- संतोष गंगवार जी 8 बार के सांसद को आज तक भाजपा ने कभी भी भारत सरकार में कोई महत्वपूर्ण मंत्रालय या कैबिनेट में दर्जा नहीं दिया ।
6- हार्दिक पटेल, जिन कुर्मियों के दम पर भाजपा ने गुजरात मे कांग्रेस के किले को ढहा कर सत्ता पर कब्ज़ा जमाया, बाद में उन्ही को ठिकाने लगाया और यह सिलसिला वर्तमान तक जारी है।मोदी व शाह की जोड़ी ने हार्दिक को चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दिलवा दिया।
7- छत्तीसगढ़ से रमेश बैस जी, जो कुर्मी हैं और 7 बार से सांसद थे, 2019 के लोकसभा चुनाव में उनका भी टिकट काट दी गयी। 
8- उन्नाव जिले में भाजपा के कद्दावर नेता,पूर्व विधायक एडवोकेट बाबू कृपाशंकर सिंह जी को भी भाजपा व सामंती जातिवादी हृदयनारायण दीक्षित ने बहुत सफाई से किनारे लगा दिया, क्योंकि उन्होंने भी सामंतवादी ताकतों के आगे कभी समर्पण नही किया और पिछडो व दलितों की लड़ाई में सामंतवादी मानसिकता वाले गुंडों से हमेशा मोर्चा लेते रहे।
9.पंकज चौधरी 6वीं बार भाजपा के टिकट पर महाराजगंज से सांसद हैं,जिन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया।
  10- कुटिंल और कुर्मी विरोधी लोग अब पुछने लगे हैं कि अपनी मेहनत व बुद्धि के दम पर सिर्फ अपने परिवार का ही नहीं,बल्कि देश का पेट भरने वाली कौम क्या सिर्फ धर्म और हिंदुत्व के नाम पर अपनी ही कौम का,पिछड़ों का शोषण,अधिकार हनन  करवाती रहेगी? आखिर कब तक? 
 11-  कुमिर्यो के विरोधी यह भी कहने लगे हैं कि सामाजिक न्याय के जनक छत्रपति साहूजी महाराज के वंशज कुर्मी  सामाजिक न्याय के खलनायक हैं  व भाजपाई बन अपनी  ओबीसी के पैर में कुल्हाड़ी मार रहा है।ऐसा लगता है यही कौम भाजपा की ठीकेदार है।स्वतंत्रदेव सिंह इस समय भाजपा उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष व मुकुट बिहारी वर्मा कैबिनेट मंत्री तथा अपना दल(एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष व भाजपा की सहयोगीहैं  ।उत्तर प्रदेश के 7 कुर्मी सांसद व 24 भाजपा विधायक जमीर बेचकर  गूंगा-बहरा बने हुए हैं।ऐसी प्रचार से कुर्मी समाज के लोग विचलित होने वाले नही है वल्कि उन्हें पता होना चाहिए कि अब  कुमिर्यो को अपना भला बुरा अच्छी तरह पता हैं और वे अपना अच्छा = बुरा निर्णय लेने में पूर्णत सक्षम हैंI ज्यादा ज्ञान बघारने वाले अपना प्रवचन अपने पास ही रखें क्योकि कुर्मियों को ऐसे स्वार्थी तत्वों की ज्ञान की जरूरत नहीं है।
          किसी भी चीज का अच्छा उपयोग हो सकता है, और बुरा भी , यही स्थिति सोशल मीडिया की भी है । यहां ऐसे लोगों की कमी नहीं है , जो कि तोड़ने में लगे हैं । ऐसा  पिछड़े वर्ग और मनुवादी वर्ग की किसान  पशुपालक  जातियों  में बहुधा  होता है कि लोग ,अपनी खुद की जाति को  श्रेष्ठ , राजकुलीन , वीर ,प्रबल योद्धा , ईमानदार , वफादार , ज्ञानवान , बुध्दिमान , रुपवान , बलवान , महान  और समृद्ध  और शुद्ध रक्त और डी एन ए जाति बताते हैं , और दूसरी समकक्ष जातियों दुनियां की सबसे  निकृष्ठतम, हीनततम , हेयतम, बुद्धिहीन , रूपहीन , गुणहीन , और कंगाल, भिखमंगी , इतिहासचोर  जाति बताते हैं ।इस संदर्भ में उत्तर भारत , खासतौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार से दो जातियां अहीर ( यादव ) और काछी कुशवाहा ( मौर्य , शाक्य , सैनी , कोइरी , माली आदि ) आदि दो ऐसीं जातियां हैं जो फिलहाल सोशल मीडिया पर  चौबीसों घंटे कुर्मियों को नीचा दिखाने का काम कर रही हैं ।अहीर,  बिहार और उत्तर प्रदेश से लालू और मुलायम राजवंश के पतन के कारण नाराज हैं और इसका कारण वे कुर्मियों को समझते हैं , इसके अलावा वे सरदार पटेल और शिवाजी महाराज , को कुर्मियों द्वारा अपनी जाति का महापुरुष बताये जाने पर ऐतराज करते हैं । कोईरी काछी  समाज की नाक के बाल उपेन्द्र कुशवाहा के हालिया राजनैतिक पराभव , और नीतीश कुमार की सफलता से व्यथित हैं और इसका ठीकरा वे सारे देश के कुर्मियों पर फोड़ रहे हैं । इसके अलावा कोईरी कुशवाहों की कुर्मियों के प्रति खुन्नस का एक और कारण है , कि वे " अखिल भारतीय कुर्मी क्षत्रिय महासभा " के साथ सांगठनिक रूप से संबध्द गुजरात , महाराष्ट्र , मध्यप्रदेश और राजस्थान के कड़वा पाटीदारों , और आंध्रप्रदेश / तेलंगाना के कम्मा और रेड्डी समुदायों पर काछी कुशवाहा  अपना पुश्तैनी हक समझते हैं , पर कुर्मी उसके इस पुश्तैनी हक के दावे को मान्यता नहीं देते हैं इसलिए उनका सारा क्रोध सोशल मीडिया के द्वारा कुर्मियों पर टूटता है ,! तीसरी तरफ कुछ गुर्जर हैं , जो कुर्मी - गुर्जर समुदायों की एकता की चर्चा के मध्य , अपनी बेसुरी बांसुरी बजाते हैं और अपनी श्रेष्ठ नस्ल और श्रेष्ठ डी एन ए पर गर्व करते हुए , कुर्मियों द्वारा सरदार पटेल और पाटीदारों  को अपना बताये जाने का विरोध करते हैं और कुर्मियों को नीचा दिखाते हैं ।चौथी तरफ वे राजपूत वंशी  मराठा हैं , जिनकी धमनियों में शायद  राजस्थान के राजपूतों  का खून बह रहा है , ये लोग सत्तर प्रतिशत से अधिक मराठों के,  कुनबी किसानों से बने होने के तथ्य को नकारते हुए , उत्तर भारत के राजपूतों से गलबहियां करते हैं । एक और  पांचवां वर्ग , दक्षिण भारत का कापू है जिसके कुछ सदस्य , राजपूतों की तथाकथित गौरव गरिमा से अभिभूत होकर अपने आपको राजपूतों  से जोड़ने लगते हैं ।इन सब के बीच यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि आखिर पश्चिम भारत के लेवा , कड़वा पाटीदार और आंजणा ,  महाराष्ट्र के कुनबी , मराठा , कोंकण  के कुलवदी  , कर्नाटक के वक्कालिगर , आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कम्मा कापू और रेड्डियों से कुर्मी महासभा का क्या संबंध है ? क्यों हमारी महासभा के संस्थापकों ने न सिर्फ इन्हें अपनी महासभा से जोड़ा , बल्कि इन वर्गों में जन्मे मूर्धन्य लोगों को अपना नेतृत्व सौंपा ? लेवा पाटीदारों में से तीन , कड़वा पाटीदारों में से दो , रेड्डी और कम्मा वर्ग से एक एक और कुनबी और मराठा वर्ग में से पूरे दस महापुरुषों ने महासभा का नेतृत्व किया  जिनमें कोल्हापुर , सतारा , बड़ौदा , देवास जूनियर ,देवास सीनियर  के मराठा राजघरानों के शासक या सदस्य भी सम्मिलित हैं । महासभा के नेतृत्व कर्ताओं में छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज कोल्हापुर नरेश  छत्रपति शाहूजी महाराज , और सरदार वल्लभ भाई पटेल के सगे बड़े भाई बैरिस्टर विट्ठल भाई पटेल और उनके बेटे डाह्याभाई पटेल भी सम्मिलित रहे ।हमारी महासभाने  विगत 122 वर्षों में भले ही एक ताकतवर हैसियत हासिल न की हो , पर उसके संस्थापक दूरदर्शी थे , उदार हृदय थे और विद्वान थे । उन्होंने एक कुर्मी जाति पुंज के लिए एक उज्जवल भविष्य का सपना देखकर ," अखिल भारतीय कुर्मी क्षत्रिय महासभा " के लिए एक सुदृढ नींव रखी थी । उन्होंने ब्रिटिश समाजशास्त्रियों , नृवंशविज्ञानिज्ञानियों  और ब्रिटिश सरकार के द्वारा प्रकाशित   भारत के विभिन्न प्रदेशों के गजेटियरों से के अध्ययन से यह यह निष्कर्ष निकाल लिया  था कि भारत  के विभिन्न हिस्सों में कौन कौन से समुदाय , उत्तर भारत के  कुर्मी जाति  पुंज के साथ अपना सादृश्य और संबंध रखते हैं ? और तदनुसार उन्होंने ऊपर वर्णित उन किसान जातियों के एक परिसंघ की कल्पना की जो कुर्मियों से सादृश्यता रखतें हैं और उसे " अखिल भारतीय कुर्मी क्षत्रिय महासभा " के रुप में मूर्त रुप दिया । आगे इस परिसंघ में मध्यप्रदेश के भोयर ( पवार ) , मध्यप्रदेश और राजस्थान के सिरबी , उड़ीसा के खंडायत और महन्त ,  तमिलनाडु के कुडुम्बी और केरल के कुडुम्बर भी सम्मिलित हुए । वर्तमान समय में हरियाणा और उत्तराखंड के " रोड़ मराठा"  और पंजाब हरियाणा राजस्थान उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पाये जाने वाले " कम्बोज"  समुदाय को भी इस परिसंघ में शामिल किया जा रहा है ।
          विगत 30 वर्ष पहले अपर कलेक्टर के पद से सेवानिवृत्त और अंग्रेजी भाषा और समाज शास्त्र और नृवंशविज्ञान के. गहन अध्येता दिवंगत श्याम प्रीत सिंह जी ने   " Was Shivajee a Kurmi " ( क्या शिवाजी कुर्मी थे ? )  नाम से छियालिस पृष्ठ की एक लघु पुस्तिका लिखी थी ।इस हिन्दी अंग्रेजी में लिखी गई द्विभााषिक पुस्तिका में  ब्रिटिश समाजशास्त्रियों , नृवंशवेत्ताओं और ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रकाशित विभिन्न गजेटियरों में उल्लिखित उन संदर्भो का  संग्रह है जो कि साबित करते हैं कि  उत्तर भारत के कुर्मी समुदाय के साथ, पश्चिम भारत के लेवा और कड़वा पाटीदार , महाराष्ट्र के मराठा , कुनबी और कुलबदी , कर्नाटक के वक्कालिगर और आंध्रप्रदेश/  तेलंगाना के रेड्डी , कम्मा और कापू के साथ वस्तुत: क्या संबंध है ? 
               बिहार के कुर्मियों की चेतना अभी भी किसी कोने में दबी पड़ी है.।पडोसी राज्यों के साथी कहते है कि  बिहार में तो कुर्मी सत्ता में है।तो मेरा  जवाब होता है कि बिहार का कुर्मी सत्ता में नहीं है,सिर्फ बिहार के मुख्यमंत्री की जाति का नाम  कुर्मी है.यदि बिहार का कुर्मी सत्ता में होता तो लखीसराय के कुर्मी परिवार की पीडिता को जाति विशेष के प्रशासन द्वारा अस्पताल में कैद नहीं किया जाता।.उस पर तेजाब फेकने वाले की हिम्मत नहीं होती कि उसके परिवार को धमकी दे. यदि बिहार का कुर्मी सत्ता में होता तो एक मंत्री जिसकी जाति भी कुर्मी ही है वह मामले को सुनकर चुप नहीं रहता.?सत्ता का मतलब सिर्फ मुख्यमंत्री पद नहीं होता है, सत्ता का मतलब न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका होता है.. बिहार का  कुर्मी तीनों स्तर पर पिछड़ कर रह गया है. विधायकों और सासदों की संख्या कम हो गई है ।जो विधायक व सांसद है वो गूंगे है-बहरे है।यदि बिहार के  कुर्मियों में चेतना होती तो ऐसे गूंगों को नहीं चुनता जो आपके समाज पर दमन होने की स्थिति में भी नहीं बोलते है अथवा बोलते है तो सुनाई नहीं देता है।बिहार के कुर्मियों ने नीतीश के सत्ता की कीमत अपनी दावेदारी वाली कई विधानसभाऔर लोकसभा सीटों के रूप में चुकाई है। लेकिन क्या यह सत्य नही है कि चुनाव में वोट मांगने के लिए कुर्मियों के इलाके में मंत्री से लेकर दो नंबर के नेता तक पहुँच जाते है।जब कोई कुर्मी आपसे इंसाफ/ हक मांगने जाता है तो आप दुत्कारते है,उसे अपमानित करते है?
     छतीसगढ़ और मध्यप्रदेश में भी कुर्मियों की राजनैतिक और सामाजिक चेतना कोई बहुत अच्छा नहीं है। हलांकि छत्तीसगढ़ में मुरव्यमंत्री भुपेश वधेल कुर्मी जाति के ही है ।लेकिन पुरे प्रदेश में यह जाति फिरकावाद और छत्तीसगढ़ियाबाद से बुरी तरह ग्रस्त व आत्ममुग्ध है1 वे किसी भी किमत पर अन्य प्रदेशों से विस्थापित कुर्मी परिवारों को राजनैतिक और सामाजिक महत्व नही देना चाहते ।वल्कि उनका उपयोग केवल अपना स्वार्थ साघने में करने में विश्वास करते है।उन्हें भी यह समक्षने की जरूरत है कि भारत का इतिहास उनका है, मौर्य वंश, छत्रपति शिवाजी,महात्मा बुद्ध,सरदार पटेल,शाहूजी महाराज सब हमारे पूर्वज है।अब समय आ गया है कि सब चुनौती स्वीकार करें कि सुनो तथाकथित जन्मजात श्रेष्ठ मनुवादियों और सामंतों  तुमसे एक इंच भी हम कम नही है.।भारत का इतिहास हमसे हैI सामाजिक न्याय की विरासत हमारी विरासत है.।हमारे पूर्वजों ने सामाजिक न्याय की   अवधारणा को खड़ा किया है।अपनी रीती-नीति को बदलिए।अपने बच्चों को सर उठा के, कलम के साथ-साथ शासक बनने के सपने दिखाइए।
                  किसी भी कुर्मी के सपने छोटे नहीं हो। कोई भी कुर्मी अपने बच्चों को बड़े सपने देखने और पूरे करने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखे।आपकी आँखों में अपने बेहतर कल के लिए ख्वाब होने चाहिए।धन का त्याग और परिश्रम होना चाहिए.यह राजनीति तो होती रहेगी।लेकिन जब तक समाजनीति नहीं होगी.।तब तक बदलाव नहीं आएगा और यह राजसत्ता आपको छलती रहेगी।यह व्यवस्था आपके दिमाग पर चोट करती है।आपको सिर्फ किसानी करने वाली जात बता देती है..बल्कि हकीकत है कि हम हल का मुन्ठिया भी पकड़ते है और शासन की बागडोर भी,अपना मनोबल ऊँचा रखिये।
*बुघवार मल्टीमीडिया न्यूज नेटवर्क