मप्र की सत्ता का रास्ता अन्य पिछडावर्ग के बीच से गुजरता है

मप्र की सत्ता का रास्ता अन्य पिछडावर्ग के बीच से गुजरता है
      
कृष्ण देव सिंह (के डी सिंह)
             भोपाल I दिनांक29अगस्त2019. मध्यप्रदेश में सत्ता का रास्ता अन्य पिछड़ा वर्ग व विशेषकर. किसानों और  आदिवासियों के बीच से होकर गुजरता है।  इसलिए अब कांग्रेस पूरी ताकत से फिर से अन्य पिछडा वर्ग और किसानों  को कांग्रेस से मजबूती के साथ जोड़ने की जुगत में भिड़ गई लगती हैं  लेकिन उनकों तबतक सफलता नहीं मिल सकती जब तक  उनका और  विशेषकर प्रदेश की कुर्मी , कुशवाहा , लोधी यादि प्रमुख जातियों के मतदाताओं का क्षुकाव कांग्रेस के प्रति. न हो जावे । हलांकि राज्य सरकार युवाओं व शहरी मतदाताओं तथा आदिवासियों.को आकर्षित करने के लिए प्रयास कर रही हैं तथा प्रदेश में निवेश बढ़ाने के प्रयासों को भी  आगे बढ़ा रही हैं।
        पिछले पन्द्रह सालों में अन्य पिछड़ा वर्ग व किसानों के साथ - साथ आदिवासी समुदाय धीरे-धीरे तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रयासों व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की बिसात के चलते कांग्रेस से टूटकर भाजपा के साथ चला गया था। संघ का ग्रामीण तथा आदिवासी अंचलों में कई दशकों से अच्छा खासा प्रभाव रहा है और अंतत: उसे भाजपा से जोड़ने में उसे सफलता मिली। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से आदिवासियों का खासकर मध्यप्रदेश में भाजपा से मोह भंग होने लगा और  इसकी परिणति उसकी सत्ता से बेदखली हुई। 
         2019 का लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर लड़ा गया और उनकी लहर में अन्य पिछडे  वर्गों  , किसानों और आदिवासियों ने भाजपा का साथ दिया। चूंकि अब प्रदेश में झाबुआ विधानसभा सीट का उपचुनाव तथा नगर निगमों व नगरपालिकाओं सहित शहरी निकायों तथा पंचायती राज संस्थाओं के भी चुनाव होना है इसलिए इन वर्गो  को एक-. एक कर फिर से कांग्रेस की ओर मोड़ने के लिए उन्होंने  प्रयास आरंभ कर दिए। इसी श्रृंखला में विश्‍व आदिवासी दिवस 09 अगस्त के लिए मुख्यमंत्री ने पहले सार्वजनिक अवकाश घोषित किया ।  
         प्रदेश मे सूदखोरों के मकड़जाल में ग्रामीण , किसान और आदिवासी इस कदर जकड़ जाते हैं कि उनके चक्रव्यूह को भेद पाना  आसान नहीं होता है। इस मर्म को समझते हुए मुख्यमंत्री ने ऐलान किया कि सूदखोरों से आदिवासियों ने जो कर्ज किया है वह माफ होगा। प्रदेश के सभी 89 अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों द्वारा गैर लायसेंसधारी साहूकारों से लिए गए सभी कर्ज इस ऐलान से माफ हो जायेंगे। करीब डेढ़ करोड़ आदिवासियों को इसका लाभ मिलेगा ।भविष्य में कोई साहूकार अनुसूचित क्षेत्रों में साहूकारी करेगा तो उसे लायसेंस लेकर नियमानुसार धंधा करना होगा, बिना लायसेंस यदि किसी ने साहूकारी का धंधा किया तो उसे गैर कानूनी माना जाएगा। इसे अमलीजामा पहनाने के लिए राज्य सरकार जनजाति कार्य विभाग 1972 के अधिनियम में ॠण विमुक्ति के लिए अध्यादेश के जरिये संशोधन करेगी। इसके साथ ही अनुसूचित क्षेत्रों में ब्याज का धंधा करना प्रतिबंधित होगा, केवल लायसेंसी साहूकार ही सरकार द्वारा तय की गयी ब्याज दर पर अपना कारोबार कर सकेंगे।  कमलनाथ ने प्रदेश के सभी वन ग्रामों को राजस्व ग्राम बनाने की भी एक महत्वपूर्ण घोषणा की है, ऐसा करने से वन ग्रामों में रहने वाले ग्रामीण वन संरक्षण अधिनियम से बाहर हो जायेंगे ।
     सामान्यत: नाम परिवर्तन से परिस्थितियों मेे कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ता है लेकिन अनुसूचित जनजाति विभाग का नाम आदिवासी विकास विभाग करने से आम आदिवासी यह महसूस करेगा कि यह विभाग उसके कल्याण के लिए है या उसका इससे सरोकार है। आदिवासी परिवार में किसी बच्चे के जन्म पर 50 किलो चावल अथवा गेहूं दिया जायेगा। किसी की मृत्यु होने पर परिवार को एक क्विंटल चावल अथवा गेहूं दिया जायेगा। खाना बनाने के लिए उन्हें बड़े बर्तन भी उपलब्ध कराये जायेंगे। आदिवासी बहुल क्षेत्रों में 40 एकलव्य विद्यालय खोले जायेंगे, 40 हाई स्कूलों का उन्नयन कर उन्हें हायर सेकेंडरी स्कूल में तब्दील किया जायेगा। आदिवासी क्षेत्रों में सात नये खेल परिसर बनेंगे, 53 हजार अध्यापकों को शासकीय शिक्षकों के समान सुविधायें मिलेंगी।
      यह एक वास्तविकता है कि प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग , किसान तभा आदिवासी वर्ग जिस दल के साथ खड़ा हो जाता है उसकी ही सरकार बनती है। पिछले विधानसभा चुनाव में कुछ हद तक ऐसा हुआ और कांग्रेस की सरकार बन गयी। जब तक अन्य पिछड़ा वर्ग और आदिवासी वर्ग बिना संकोच के पूरी ताकत से बहुतायत के साथ कांग्रेस के साथ खड़ा रहा तब-तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आसानी से बनती रही और जब कभी कांग्रेस हारी उसके  बाद के चुनावों में इस वर्ग के सहयोग से कांग्रेस फिर सत्तासीन होने में सफल रही। पिछले डेढ़ दशक से कांग्रेस का सत्ता से वनवास रहा और अन्य पिछडा वर्ग वआदिवासी वर्ग भाजपा से जुड़ा । कमलनाथ ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद से ही आदिवासियों पर अपना ध्यान केंद्रित किया और जयस तथा गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के एक बहुत बड़े धड़े को भरोसे में लिया, यहां तक कि जयस के नेता डॉ. हीरालाल अलावा अब कांग्रेस के विधायक हैं।  देखना दिलचस्प होगा  कि कांग्रेस.गोंगपा और निर्दलीयों जैसी पार्टियों के सहारा लेकर आगें बढ़ती है अथवा अन्य पिछडा वर्ग , किसान तथा आदि. वासियों के मध्य खोया समर्थन वापस पाने के लिए प्रदेश की  कमलनाथ के नेतृत्व वाली  सरकार रणनीति बनाकर अपने पैरों पर खड़ा होने में  सफल होती है।? (  बुधवार समाचार)