कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्ह 

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कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्ह 
कृब्ण देव सिंह
 चुनाव चिह्न का राजनैतिक दलों के लिए हमेशा से महत्व रहा है,  चुनाव चिन्ह राजनीतिक दल बहुत मंथन के बाद तय करता हैं । उसके लाभ और हानि पर चर्चा होती है । तब चयन होता है। चुनाव चिन्ह बहुत शुभ और अशुभ भी होते हैं । फिर वह चाहे पार्टी का चिह्न हो या फिर मैदान में निर्दलीय किस्मत आजमा रहे प्रत्याशी का। चुनाव चिह्न से ही उन्हें पहचान मिलती है। इन निशानों के बल पर कई बार हार-जीत तय होती है। आजादी के बाद कई पार्टियां बनीं। उन्हें चुनाव चिह्न भी मिला। समय बीतने के साथ पार्टियों में विभाजन भी हुआ तो चुनाव चिह्न भी बदलते चले गए। कांग्रेस पार्टी ने आजादी के बाद से अभी तक तीन बार चुनाव चिन्ह बदले हैं। 
       कांग्रेस ने आजादी के बाद पहली बार 1951-52 के पहले लोकसभा चुनावों में चुनाव लड़ा । इसमें कांग्रेस का चुनाव चिंह दो बैलों की जोड़ी (बैलाजोड़ी)था । कांग्रेस ने तब ये चुनाव चिंह किसानों और ग्रामीण जनता को ध्यान में रखकर लिया था, ताकि बैलों के जरिए विशेष स्प से किसान व ग्रामीण मतदाताओंसे खुद को जोड़ा जा सके ।क्योंकि भारत कृर्षि प्रधान देश के रन्प मे माना और जाना जाता था।कांग्रेस ने इस चुनाव चिंह पर 1952, 1957, 1962 के चुनावों में भी वो विजयी रही।
     1967 के पांचवें आमचुनावों में कांग्रेस को पहली बार कड़ी चुनौती मिली । कांग्रेस 520 में 283 सीटें जीत पाई । ये उसका अब तक सबसे खराब प्रदर्शन था । इंदिरा गाँघी जी प्रधानमंत्री तो बनी रहीं लेकिन कांग्रेस में अंर्तकलह शुरू हो गई और पार्टी में विभाजन हो गया ।
   विभाजन के बाद जब ये मामला भारतीय चुनाव आयोग के पास पहुंचा तो उसने बैलों की जोड़ी का चुनाव चिन्ह कांग्रेस (ओ) को दिया। ऐसे में इंदिरा गांधी ने अपनी कांग्रेस के लिए गाय-बछड़ा का चुनाव चिन्ह लिया। हालांकि इंदिरा ने ये चुनाव चिन्ह लेने से पहले अपने सलाहकारों के साथ काफी  मंथन किया। 
    1971 के चुनावों में इंदिरा गांधी की कांग्रेस  गाय - बछड़ा चुनाव चिन्ह के साथ लोकसभा चुनावों में उतरी। उसे 352 सीटें हासिल हुईं ।
     जनवरी 1978 में इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को फिर तोड़ते हुए नई पार्टी बनाई । इसे उन्होंने कांग्रेस (आई) का नाम दिया । अबकी बार इंदिरा गांधी ने चुनाव आयोग से नए चुनाव चिन्ह की मांग की‌ ‌ । गाय-बछड़े का चुनाव चिन्ह को लेकर तब विपक्षी दलों के नेता देशभर में कांग्रेस के लिए मजाक का चिंह बनाने लगाथा।  विपक्ष इस चुनाव चिन्ह के जरिए मां-बेटे पर लगातार हमला कर रहा था‌। इसलिए भी इंदिरा गांधी इस चुनाव चिन्ह से छुटकारा चाहती थी ।
     फिर कांग्रेस ने हाथ के पंजे को अपना नया चुनाव चिन्ह बनाया ।  आखिरकर इंदिरा गांधी की सहमति से हाथ का पंजा पर मुहर लग गई। हाथ का सिंबल 1980 में इंदिरा गांधी और कांग्रेस के लिए शुभ रहा ।बताया जाता है कि माँ काली के दर्शन के दौरान इंद्रिरा जी की नजर उनके हाथ के पंड़ी तभी वे प्रेरित होकर हाथ चुनाव चिन्ह बनाने की उन्हें प्रेरणा मिली।लेकिन वर्तमान दौर में कुछ लोग राजनैतिक कारणों से कॉग्रेस के लिए हाथ को अशुभ चुनाव चिन्ह साबित करने लगे है । परन्तु भाजपा की मध्यप्रदेश,राजस्थान,छत्तीसगढ़,महाराष्ट्र ,पंजाव तथा क्षारखण्ड की विघानसभा चुनावो में हार जाने के कारण उनकी वोलती वंद 
 दी है।
       **बुघवार मल्टीमीडिया नेटवर्क