.अघोषित आपातकाल के दंश से आक्रांत भारत?
कृष्ण देव सिंह
भारत की प्रजांतंत्र में इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि भाजपा की वर्तमान मोदी-सरकार में राष्ट्रद्रोह के संवैधानिक और कानून प्रावधानों से आगे अब राष्ट्रद्रोहियों को राजनीतिक रूप से भी परिभाषित करने का सिलसिला शुरू हो गया है। इस श्रेणी में वो लोग शरीक हैं, जो सरकार के कामकाज या नीतियों पर सवाल खड़े करते हैं अथवा असहमति व्यक्त करते हैं। राष्ट्रहित पर हमला करने वाले लोगों की सूची में अब देश के प्रसिद्ध उद्योगपति राहुल बजाज का नाम भी शरीक हो गये है।उनका पंजीयन देश की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने किया है।हलात अब ऐसे बन गये हैं किहम भारत के लोग अघोषित आपातकाल का दंश से अब आक्रांत हो चुके हैं।क्योंकि वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन के अनुसार जाने-माने उद्योगपति राहुल बजाज ने अपनी जिन दलीलों के साथ देश में भय और आशंकाओं के राजनीतिक माहौल की जिक्र किया है, उनकी उन दलीलों से राष्ट्रहित को चोट पहुंचती है।हलांकि वित्तमंत्री ने यह खुलासा नहीं किया कि देश के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक हालात पर तीखे सवाल करने वाले . बयान से कौन से राष्ट्रहित कैसे प्रभावित होगें?राहुल बजाज के कथन पर वित्तमंत्री का विचलित होना असाधारण है। सरकार की आलोचना एवं उससे अहमति को राष्ट्रद्रोह मानने की प्रवृत्ति दिन-ब-दिन गहराती जा रही है।अपने विरोधियों में राष्ट्रद्रोह के आरोपों का राजनीतिक डर पैदा करने का उपक्रम देश की लोकतांत्रिक सेहत के लिए खतरनाक है कि आज आपातकाल के कार्यकाल का राजनीतिक डर का वही माहौल उभर कर सामने है?
सीतारमन के हिदायती ट्वीट में उनकी नाराजी स्पष्ट दिख रही है।
बजाज ने सधे तरीके से यह बात इकॉनॉमिक्स-टाइम्स अवार्ड समारोह में जानी-मानी राजनीतिक और औद्योगिक हस्तियों के बीच कही थी। वित्तमंत्री के ट्वीट में कथित 'राष्ट्र हित' के मसले पर भाजपा की ट्रोल सेना की हमलावर खौफजदा करने वाली शिकायतें, हिदायतें और नसीहतें सिर्फ यही सवाल कर रही है कि बजाज अपने भाषण में भय या डर की बातें क्यों कर रहे थे? सीतारमन के ट्वीट में सख्त सलाह है कि 'अपनी धारणा फैलाने की जगह जवाब पाने के और भी बेहतर तरीके हैं। ऐसी बातों से राष्ट्र हित को चोट पहुंचती है'। वित्तमंत्री के निहितार्थ जहां उद्योगपतियों को अर्थव्यवस्था के मसले पर खामोशी ओढ़ने की हिदायत दे रहे हैं।वित्तमंत्री को शायद बजाज का यह कथन नगवार गुजरा है कि 'हमारे उद्योगपति दोस्तों में से कोई नहीं बोलेगा, मैं खुले तौर पर इस बात को कहता हूं।कि एक माहौल तैयार करना होगा
।जब यूपीए-2 सरकार सत्ता में थी, तो हम किसी की भी आलोचना कर सकते थे।आप अच्छा काम कर रहें हैं, उसके बाद भी हम आपकी खुले तौर पर आलोचना करें, इतना विश्वास नहीं हैं कि आप इसे पसंद नहीं करेगें'। वित्तमंत्री के साथ गृहमंत्री अमित शाह, रेलमंत्री पीयूष गोयल , मुकेश अंबानी, कुमार मंगलम बिड़ला, सुनील भारती जैसी हस्तियों की मौजूदगी में बजाज का सपाट बयान सरकार का मुंह कसैला करने के लिए पर्याप्त है।
भाजपाई ट्रोल सेना ने बजाज को कांग्रेस के लायसेंस राज में फूलने-फलने वाला उद्योगपति निरूपति कर दिया । लेकिन सच्चाई यह है कि वो कांग्रेस सरकारों के भी मुखर आलोचक रहे हैं। एक बार तो उन्होंने यहां तक कह दिया था कि मौजूदा कांग्रेस उनके दादा के जमाने की कांग्रेस नहीं हैं।
राहुल बजाज गैर-राजनीतिक प्रखर राष्ट्रवादी के रूप में जाने जाते हैं। यहां उनके बेटे एवं बजाज ऑटो के प्रबंध निदेशक राजीव बजाज ने पिता के बयान को असाधारण रूप से 'साहिसक' बताया है। 'सच चाहे जितना कड़ुआ क्यों न हो, उनके पिता बोलने में हिचकते नहीं ।राहुल बजाज ने अमित शाह से कहा-खुलकर बोलने में मोदी सरकार से डर लगता है।उद्योगपति बजाज ने मोदी सरकार को भरी महफिल में आइना दिखा दिया। उन्होंने गृहमंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और रेल मंत्री पीयूष गोयल की मौजूदगी में कहा, आपकी आलोचना करने में डर लगता है। पहले ऐसा नहीं था।जबकि एक दिन पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश की आर्थिक स्थिति बदहाल होने और मंदी के जो कारण गिनाए थे, उसमें सबसे बड़ा कारण लोगों में व्याप्त भय और भरोसे की कमी बताया था।इकोनॉमिक टा३म्स अवार्डस कार्यक्रम के अगले ही दिन उद्योगपति राहुल बजाज ने भरी महफिल में टेलीविज़न के सामने मोदी सरकार को आइना दिखा दिया। उन्होंने कहा, हमारे मन में है, लेकिन कोई इंडस्ट्रियालिस्ट बोलेगा नहीं, हमें एक बेहतर जवाब सरकार से चाहिए, सिर्फ इनकार नहीं चाहिए, मैं सिर्फ बोलने के लिए नहीं बोल रहा हूं, एक माहौल बनाना पड़ेगा, मैं पर्यावरण और प्रदूषण की बात नहीं कर रहा हूं, यूपीए-2 में तो हम किसी को भी गाली दे सकते थे, वह अलग बात है, आप अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन हम खुलकर आपकी आलोचना करें, तो भरोसा नहीं है कि आपको बुरा नहीं लगेगा, मैं गलत हो सकता हूं, लेकिन वह सबको लगता है कि ऐसा है, मैं सबकी तरफ से नहीं बोल रहा हूं, मुझे यह सब बोलना भी नहीं चाहिए, क्योंकि लोग हंस रहे हैं कि चढ़ बेटा सूली पर..
आज ऐसे पूंजीपति हैं कि जिनपर भारत सरकार 6 साल में जनता के पैसे का करीब 5.5 लाख करोड़ लुटा चुकी है। इसी देश में एक ऐसा भी पूजीपति हुआ था जिसने आज़ादी आंदोलन में न सिर्फ अपनी कमाई दी, बल्कि महात्मा गांधी और विनोबा के साथ लड़ा और जेल गया।नेहरू के जन्म के 10 दिन पहले राजस्थान के एक मारवाड़ी परिवार में एक और लड़का पैदा हुआ था जमनालाल बजाज। वह लड़का केवल चौथी कक्षा पास कर पाया जिसे अंग्रेजी नहीं आती थी। उन्हें वर्धा के एक धनी परिवार ने गोद ले लिया।
यह परिवार अपने धन वैभव का प्रदर्शन करने का शौकीन था। एक बार एक विवाह उत्सव में जाना था। जमना से कहा गया कि हीरे जवाहरात जड़े कपड़े पहनें। इस बात पर जमनालाल की अपने पिता से झगड़ा हुआ और उन्होंने घर छोड़ दिया। भागने के बाद जमना ने अपने पिता को एक कानूनी दस्तावेज भेजा जिसमे कहा कि मुझे धन का लोभ नहीं है। आपका धन्यवाद कि आपने मुझे उस जंगल से मुक्त कर दिया। बाद में उन्हें खोजकर लाया गया, लेकिन जब उनके इस पिता की मृत्यु हुई तो जमनालाल ने उनकी सारी संपत्ति दान कर दी।
. . जमनालाल को बचपन मे किसी आध्यात्मिक गुरु की तलाश थी। सबसे पहले वे मदन मोहन मालवीय से मिले और कुछ दिनों तक उनके सानिध्य में रहे। इसके बाद में रबीन्द्रनाथ टैगोर से मिले, कई संतों से मिले लेकिन खोज पूरी नहीं हुई। 1906 में बाल गंगाधर तिलक ने अपने अखबार केसरी के लिए इश्तहार दिया तो जमनालाल ने अपनी जेब खर्च से 100 रुपये बचाये और दान किया। बाद में उन्होंने लिखा कि उस 100 रुपये के दान से जो खुशी मिली थी, वह बाद में लाखों के दान से नहीं मिल पाई। गांधीजी जब भारत लौटे तो जमनालाल भी उनके साबरमती आश्रम पहुंच गए। गांधी की जीवन शैली देख कर जमनालाल को लगा कि बस गुरु, हमें तो अपना गुरु मिल गया।
इसके बाद गांधी और जमनालाल का साथ एक इतिहास बन गया। जमनालाल ने गांधी से वर्धा में आश्रम खोलने का अनुरोध किया। गांधी ने इसके लिए विनोबा को भेजा। विनोबा बजाज परिवार के गुरु की तरह वहां रहने लगे। 1920 में जमनालाल बजाज ने गांधी के सामने प्रस्ताव रखा कि वे गांधी को अपने पिता के रूप में गोद लेना चाहते हैं। गांधी इस अजीब प्रस्ताव को हैरान के साथ मान गए। गांधी उनको अपना पांचवां पुत्र मानते थे।
जब गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया तो जमनालाल ने अपने घर सारे विदेशी वस्त्रों को इकट्ठा करवाया और बैलगाड़ी पर लाद कर शहर के बीचोबीच जलवा दिया। अंग्रेजों ने जमनालाल को राय बहादुर की पदवी दी थी जिसे उन्होंने त्याग दिया। उन्होंने अदालतों के बहिष्कार करते हुए अपने सारे मुकदमे वापस ले लिए। जिन वकीलों ने असहयोग में वकालत छोड़ दी उनकी आर्थिक मदद के लिए जमनालाल ने कांग्रेस के कोष में एक लाख दान दिया।
जमनालाल ने भारत में तब ट्रष्ट और फाउंडेशन की स्थापना की जब देश को इसके बारे में सोचने का वक्त नहीं था। पंडों के विरोध के बावजूद जमनालाल ने विनोबा के साथ मिलकर दलितों का मंदिर में प्रवेश करवाया। अंग्रेजी हुक़ूमत के विरोध के लिए 1921 में जमनालाल और विनोबा भावे गिरफ्तार किए गए। विनोबा को एक महीने और जमना को डेढ़ साल की सजा हुई। 1937-38 के कांग्रेस अधिवेशन में उन्हें अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव आया जिसे उन्होंने अस्वीकार करते हुए सुभाष चंद्र बोस के नाम की सिफारिश की। 1924 में नागपुर में दंगे हुए तो जमना दंगे रोकने पहुंच गए। उनको चोट आई। इस पर गांधी ने कहा मुझे खुशी है। आप लोग डरपोक न बनें। अगर जमना की जान भी चली जाती तो मुझे दुख नहीं होता क्योंकि इससे हिन्दू धर्म की रक्षा होती।
जमनालाल बजाज ने ताउम्र तन, मन, धन से। आज़ादी आंदोलन और गांधी का साथ दिया। उनकी मौत के बाद उनकी पत्नी ने विनोबा के साथ भूदान आंदोलन में सक्रिय थीं। गांधी के ट्रस्टीशिप सिद्धांत को जीने वालों में एक नाम जमनालाल बजाज का है। जमनालाल बजाज का 1942 में देहांत हुआ ।गांधी जी ने खुद जमनालाल के बारे में काफी कुछ लिखा है। गांधी और विनोबा उनके पारिवारिक सदस्य जैसे थे। उन्हीं के पोते हैं राहुल बजाज जिनको भारत सरकार ने पद्मभूष्ण दिया।आज के इस कॉरपोरेट और राजनीति के गठबंधन के दौर में, जब राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर राफेल लूट हो रही हो, तब इस देश में एक वैरागी पूंजीपति भी हुआ था, जिसने अपनी पूंजी देश की आज़ादी के लिए लुटाई। वह ऐसा पूंजीपति या ऐसा फ़क़ीर नहीं था जो देश को लूटे और झोला उठा कर चल दे।
*बुधवार मल्टीमीडिया न्यूज नेटवर्क
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