टाटा सन्स विवाद / कभी रतन टाटा के सबसे करीबी रहे नुस्ली वाडिया ने कहा- सायरस मिस्त्री बदले की भावना से हटाए गए थे

 सायरस मिस्त्री-टाटा सन्स मामले में वाडिया ग्रुप के चेयरमैन नुस्ली (75) वाडिया का कहना है मिस्त्री (51) को चेयरमैन पद से हटाना एक व्यक्ति की बदले की कार्रवाई का नतीजा था। यह फैसला लेते वक्त जेआरडी टाटा के सिद्धांतों और नीतियों को भुला दिया गया। वाडिया ने नाम नहीं लिया लेकिन उनका इशारा रतन टाटा (81) की ओर था। बता दें सायरस मिस्त्री अक्टूबर 2016 में टाटा सन्स के चेयरमैन पद से हटा दिए गए थे। नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल ने बुधवार को मिस्त्री के पक्ष में फैसला देते हुए उनकी फिर से बहाली का आदेश दिया। वाडिया ने इकोनॉमिक टाइम्स से बातचीत में कहा- मुझे गर्व है कि मैं अकेला स्वतंत्र निदेशक था जिसे मिस्त्री पर भरोसा था और उन्हें हटाने का विरोध किया था। वाडिया एक दौर में वक्त रतन टाटा के सबसे करीबी थे। एक रिपोर्ट के मुताबिक वाडिया जेआरडी टाटा के बाद 1991 में टाटा ग्रुप के चेयरमैन बनने की दौड़ में सबसे आगे थे।


मिस्त्री की रणनीति में वाडिया ने मदद की थी: रिपोर्ट




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    नुस्ली वाडिया टाटा ग्रुप की तीन कंपनियों- टाटा स्टील, टाटा मोटर्स और टाटा केमिकल्स के बोर्ड में बतौर स्वतंत्र निदेशक शामिल थे। मिस्त्री को हटाने के बाद वाडिया भी कंपनियों के बोर्ड से बाहर कर दिए गए थे। मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाने के बाद हुई टाटा केमिकल्स और टाटा स्टील की बोर्ड बैठकों में वाडिया ने मिस्त्री का समर्थन किया था। बताया जाता है कि उन्होंने मिस्त्री को आगे की रणनीति बनाने में भी मदद की थी। इसके बाद टाटा सन्स ने मिस्त्री और वाडिया को ग्रुप की कंपनियों के बोर्ड से निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी।


     




  2. वाडिया ने रतन टाटा के लिए चेयरमैन का पद छोड़ दिया था


     


    वाडिया, मिस्त्री और रतन टाटा पारसी समुदाय से हैं। टाटा और मिस्री रिश्तेदार भी हैं। वाडिया और टाटा बचपन के दोस्त हैं। टाटा ग्रुप से जुड़े लोगों के मुताबिक वाडिया एक वक्त समूह के प्रमुख लोगों में शामिल थे। 50 साल तक टाटा ग्रुप का नेतृत्व करने वाले जेआरडी टाटा को वाडिया अपना गुरू और मार्गदर्शक मानते थे। जेआरडी टाटा 1932 से 1991 तक टाटा ग्रुप के चेयरमैन थे। फोर्ब्स की रिपोर्ट के मुताबिक जेआरडी टाटा के बाद वाडिया टाटा ग्रुप के चेयरमैन बनने की दौड़ में सबसे आगे थे, लेकिन रतन टाटा के पक्ष में फैसला लेते हुए पीछे हट गए। 1991 में रतन टाटा के चेयरमैन बनने के बाद वाडिया को वाइस-चेयरमैन बनने का प्रस्ताव मिला था, लेकिन वाडिया ने इससे भी इनकार कर दिया। रतन टाटा जब चेयरमैन बने थे तब वाडिया पर बहुत ज्यादा निर्भर थे। बताया जाता है कि टाटा ट्रस्ट को टाटा सन्स में वोटिंग राइट्स दिलवाने के लिए वाडिया ने ही सरकार में लॉबीइंग की थी।


     




  3. मिस्त्री को हटाने के बाद टाटा-वाडिया के मतभेद सार्वजनिक हो गए थे


     


    वाडिया स्पष्ट बोलने के लिए जाने जाते हैं। टाटा और उनकी दूरियां 2007 में शुरू हुई थीं। वाडिया टाटा स्टील द्वारा कोरस स्टील के अधिग्रहण से नाखुश थे। टाटा स्टील ने 12 अरब डॉलर में यूरोप की कोरस स्टील को खरीदा था। बाद में वाडिया ने घाटे के टाटा नैनो प्रोजेक्ट में निवेश का विरोध भी किया था। मिस्त्री के मामले में टाटा से उनके मतभेद खुलकर सामने आ गए थे। वाडिया ने रतन टाटा समेत टाटा सन्स के निदेशकों के खिलाफ निचली अदालत में मानहानि का केस भी किया था। उनकी दलील थी कि सायरस मिस्त्री को टाटा सन्स के चेयरमैन पद से हटाने के बाद रतन टाटा और अन्य लोगों ने  अपमानजनक शब्द कहे थे। रतन टाटा ने इस मामले को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने वाडिया का केस रद्द कर दिया था।


     




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    नुस्ली वाडिया की नेटवर्थ 47,428 करोड़ रुपए है। वाडिया ग्रुप के पास बॉम्बे डाइंग, ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज और गोएयर जैसी कंपनियां हैं। नुस्ली वाडिया की मां डीना पाकिस्तान के फाउंडर मोहम्मद अली जिन्ना की बेटी थीं