छत्तीसगढ़ में 4०लारव लोग सिकलसेल से प्रभावित

छत्तीसगढ़ में 4०लारव लोग सिकलसेल से प्रभावित
       कृष्ण देव सिंह 
                रायपुर। छत्तीसगढ़ में पीढ़ी दर पीढ़ी सिकलसेल की अनुवांशिक बीमारी से जुझती चली आ रही है.इसका असर यूॅ तो कुछ न कुछ सभी जगह विराजमान हैपरन्तु राज्य सरकार ने इसकी गंभीरता को देखते हुए 22 जिला अस्पतालों में इसके उपचार और परीक्षण के लिए नये सेंटर खोलने की स्वीकृति दी है. वर्तमान में राज्य के पाँच मेडिकल कालेजों में इसके सेंटर संचालित हैं. केन्द्र सरकार द्वारा जारी दिव्यांगता सूची में सिकलसेल को भी शामिल किया गया है किन्तु सिकलसेल पीड़ितों को अभी दिव्यागंता प्रमाण पत्र मिलने में भारी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है.नाम मात्र लोगों को ही दिव्यागंता प्रमाण पत्र जारी किये गये हैं। झ्स रोग से पीड़ित लोग रोज मौत और जिन्दगी के वीच क्षुलते रहते हैं॥
          सिकल सेल एक अनुवांशिक बीमारी (Genetic Disorder) है। जिसका आधुनिका चिकित्सा विज्ञान में कोई निशिचत ईलाज नहीं है। यद्यपि यह रोग किसी भी स्थान पर किसी भी जाति में हो सकता हैलेकिन अमुमन सिकल सेल रोग कुछ खाश इलाको में रहने बाली कुछ खास जातियों.में ज्यादा पाया जाता है।यह माता - पिता के जीन्स से पुश्तेनी तौर से मिलता हैा हलांकि यह कहना मुश्किल है कि यह बीमारी कब और कहाँ से आई। लेकिन यह देखा गया है कि यह बीमारी उस भूभाग पर ज्यादा है जहाँ मलेरिया बहुतायत में रहता है।वैज्ञानिकों के अनुमान है कि मलेरिया पैरासाइड़ से वचने के लिए लाल रक्तकणों ने यह रक्षात्मक रूप (mutation)घारण किया होगा ।
                        छत्तीसगढ़ में सिकलसेल के मरीज़ कितना है कहना मुश्किल है क्योकि इसका आघिकृत आकड़ा शासन के पास भी नही है परन्तु माना जा रहा है कि40 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हैं। ढाई करोड़ से ज्यादा आबादी वाले राज्य में लगभग 15% लोग सिकलसेल से पीड़ित हैं, जिसका कोई इलाज नहीं। 28 जिलों वाले राज्य में ज्यादातर यह बीमारी साहू, कुर्मी और आदिवासी समुदाय के लोगो में पायी जाती है। उपचार के साथ -साथ सामाजिक जागरूकता से जुड़ी इस बीमारी में विवाह के समय जन्मकुंडली से ज़्यादा रक्त कुंडली मिलाने का महत्व है।सिकल सेल का प्रसार संतान उत्पत्ति से होता है इसलिए विवाह पूर्व जाँच कर लेना उचित होगा।सिकल का रोगी या कैरियर विवाह कर सकता है ,लोकिन उसे विशेष ध्यान ररवना होगा कि जिससे उसका विवाहहों रहा है उसके सिकल जीन कीस्थिति क्या हैा यदि दो सिकलसेल कैरियर आपस में विवाह करते हैं तो उनकी संतानें सिकलिंग से पीड़ित होगी। ऐसे बच्चे लगातार उपचार के बावजूद 20-25 साल तक अधिकतम जीवित रह पाते हैं।
     छत्तीसगढ़ की विधानसभा में 15 वर्ष पूर्व 27 मई 2004 को सिकल रोग नियंत्रण के लिए एक अशासकीय संकल्प रखा गया था जो सर्वसम्मति से पास हुआ। यह संकल्प राज्यसभा, लोकसभा, योजना आयोग तथा भारत के राष्ट्रपति से होते हुए अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र संघ तक पंहुचा1इसके  बाद प्रदेश में कुछ 
   इंस्टीटयूट खुल गया पर 154से उयादा पद आज भी खाली है। सिकलसेल की बीमारी की व्यापकता और गंभीरता के बावजूद, राज्य में उपलब्ध संसाधन और उपचार, परामर्श सहायता केन्द्रों की संख्या और सक्रियता को लेकर काफ़ी आलोचनाएँ होती रहती हैं पर अभी तक को३ि समुचित व्यवस्था नही हो पाई है। सिकलसेल इंस्टीट्यूट की स्थापना 2013 में हुई थी, और इसके भीतर 180 जॉब पोजिशन हैं, लेकिन 154 पद खाली रह गए हैं। भरे हुए पदों में से अधिकांश चिकित्सा कर्मियों के बजाय कथित तौर पर प्रशासनिक हैं। सिकलसेल रोग के प्रभावों को रोकने के प्रयास हाल ही में स्थापित किए गए हैं, हालांकि उपचार की दिशा में ये प्रयास काफी हद तक अनुत्पादक हैं। लेकिन अनुपादक  को उत्पादक बनाने की जरूरत हैा इसके लिए राञ्य सरकार की स्वास्थ विभाग को ही आवथ्यक कदम उठाने होगें । जो फिलहाल सोया हुआ हैा
             सिकल सेल मिशनमोड पोजेक्ट,संचालक डाँ पी के पात्रा ने वताया कि सिकल सेल के मरीज दो प्रकार के होते है १: सिकल वाहक (केरियर)  ( AS) और दुसरे सिकल पीड़ित रोगी  ( SS) 'I सिकल वाहक में सिकल का एक जीन होता है लेकिन रोग के कोईं लक्षण नही होते । इन्हें किसी तरह की इलाजकी आवथ्यकता नहीं होती Iये सामान्य जीवन व्यतीत करते है और इन्हें स्वंम भी मालूम नहीहोता कि वे अपने रक्त मे सिकल का जीन घारण करते हैं और वे अनजाने में ही सिकल के वाहक बन जाते हैं। सिकल रोगी को.सिकल सेल सफरर या होमोजायगोट्स.भी कहते है। जब दोनों पालकों से असामान्य जीन्स (SS) मिलते हैं तो संतान सिकल रोगी / सफरर होता है। इसे. सिकल सेल एनीमिया रोग कहा जाता है और झ्स स्थिति में रोग के सभी लक्षण मिलते हैं।
             इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी की राज्य इकाई के पूर्व अध्यक्ष डॉ ए.आर. दल्ला का कहना है कि इस विषय को लेकर अगर सरकार गंभीर है तो सरकार को विभिन्न अभियानों का प्रबंध करना होगा, जनजागरण अभियान चलाकर सिकल रोग सम्बंधित भ्रांतियों को दूर करना होगा। सभी राष्ट्रों से स्वास्थ सेवा का आग्रह करना होगा। संयुक्त राज्य संघ ने यह भी आग्रह किया कि अपने देश में राष्ट्रीय सिकलसेल नियंत्रण निवारण कार्यक्रम प्रारम्भ करते हुए विशेष सिकलसेल नियंत्रण का गठन करें। 
                   पीढ़ियों तक चलती है यह बीमारी 
           एक जानकारी के अनुसार रायपुर की गोंड जनजाति में लगभग 20 प्रतिशत बीमारी का प्रचलन है। क्षेत्र में कुर्मी और साहू जातियों में यह रोग पाया जाता हैं, जिनकी संख्या 20 से 22 प्रतिशत के बीच है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी उच्च स्तर पर सिकलसेल रोग मौजूद है। सिकलसेल रोग एक आनुवंशिक रोग है जो रक्त कोशिकाओं को प्रभावित करता है। यदि माता-पिता इस रोग से पीड़ित हैं तो बेशक विरासत में यह रोग शिशु को मिलेगा.बरसात के दिनों में तो सिकलसेल के रोगी दर्द के मारे तड़पते रहते हैा झ्स रोग से पीड़ित ०याक्ति की आयु का हो जाती है और इससे मृत्यू भी हो जाती है।
        सिकल सेल एनीमिया में विरासत में मिला रोग एक सिकल आकार बनाता है। शरीर की छोटी रक्त वाहिनियों में यह सिकल नुकीला और कड़ा होकर फस जाता है। रक्त और ऑक्सीजन के मार्ग में अवरोध होने से दर्द होता है जिससे रोगी चिल्ला उठता है इसे सिकल क्राइसेस कहते हैं। डिस्क के आकार की रक्त कोशिकाएं लचीली होती हैं, जो बिना किसी समस्या के रक्त वाहिकाओं के अलग-अलग व्यास को नेविगेट करने में सक्षम होती हैं। सिकल कोशिकाओं में इस लचीलेपन की कमी होती है, इससे रक्त वाहिका के बंद होने की संभावना बढ़ जाती है। लाल रक्त कोशिकाओं की कमजोर स्थिति के कारण मलेरिया परजीवी द्वारा आक्रमण किए जाने पर कोशिकाएं फट जाती हैं। यह कट पैरासाइट के प्रतिकृति चक्र को छोटा करता है और इस तरह मानव मेजबान को मलेरिया संक्रमण से बचाता है। 
           उपचार ना हुआ तो हो सकती है मौत 
स्कलसेल की यह बीमारी भारत सहित अफ्रीका और दक्षिण एशिया के कई क्षेत्रों में प्रचलित है। डॉ दल्ला का कहना है की सिकलसेल घातक हो सकता है, इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। सिकलसेल डिजीस यानी एससीडी को बचपन के दौरान बीमारी का उपचार ना किया जाये, तो रोगी मर सकता है. यदि इलाज किया जाता है तो सबसे अच्छा परिणाम स्वरुप संभावित बीस वर्षों का जीवनकाल होगा। भारत के सिकलसेल संगठन के डॉक्टरों का कहना है कि एससीडी हर साल अकेले छत्तीसगढ़ में 10,000 बच्चों का जीवन खतरे में होने का दावा करता है ।
                    छत्तीसगढ़ के सिकलसेल इंस्टिट्यूट के संचालक डॉ अरविंद नेरलवार ने बताया था कि छत्तीसगढ़ में सरकारी आँकड़ों मे 9.2 % लोग इस बीमारी से कैरियर के रूप पीड़ित है और 0.9 लोग इस बीमारी से गंभीर रूप से पीड़ित हैं किन्तु यह बीमारी कोई बैक्टीरिया या वायरस से होने वाली बीमारी नहीं है न ही कोई छुआछूत की बीमारी न ही एड्स की तरह एक दूसरे में फैलने वाली बीमारी है। यह कोई सामजिक दोष भी  नहीं है, इसलिए इसे छुपाने की आवश्यकता भी नहीं है. 
                     रोगियों की जीवरेखा बढ़ रही है
            हलाकि इस रोग से डरने की आवश्यकता नहीं है. इसका कोई ठोस उपचार तो नहीं लेकिन हाईटोसियूरिया एक मात्र ऐसी औषधि है जो जीवन बचाने में नहीं लेकिन जीवन की उम्र बढ़ाने में सहयोग प्रदान करती है। इस औषधि के उपचार से  बहुत से रोगियों की जीवन रेखा 15-20 साल से बढ़कर 20-30 साल की हो गयी है। उन्होंने यह भी बताया कि मुख्यमंत्री जी ने घोषणा की है कि राज्य के पाँच मेडीकल कालेज जहाँ पर इसके सेंटर हैं उसके अलावा बाक़ी 22 जिला अस्पतालों में भी इस रोग के लिए मेडिकल सेंटर्स खोले जाएंगे। इन सेंटरों में सही तरीके से उपचार के लिए लैब तकनीशियन और कौंसलर को भी अप्पॉइंट किया जाएगा।देखना है कि मुख्यमंत्री जी की घोषणा कब तक पुरा हो पाता है ताकि प्रदेश की जनता को इसका लाभ मिलना शुरू हो सके बुघवार मल्टीमीडिया नेटवर्क
दिनांक।   22  अगस्त2019