खिलजी के मानस रिस्तेदारों का प्रगटिकरण

खिलजी के मानस रिस्तेदारों का प्रगटिकरण


              कृष्ण देव सिंह
      किसी भी शिक्षा संस्थान के अंदर  खून-खराबा होना ही दुःखद है वल्कि जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में तो विल्कूल ही नहींहोना चाहिए 1 अगर ऐसा हो रहा तो सबसे पहले नंपुषक विश्वविद्लय प्रशासन को वेइज्जत करके रवाना कर दिया जाना चाहिए। ऐसा तभी संभव है जब शासन का वरदहस्त नही हो ! और ऐसा लगातार हो रहा है तो यह झ्स वात का प्रमाण है कि हमलावर शासन से संरक्षण प्राप्त है । लेकिन सवाल ये भी है कि इतना कुछ होता है, न्यूज़ में हिंसक विजुअल आता है, लेकिन आम आदमी को कुछ फर्क नहीं पड़ता, उल्टा लोग बोल देते है, ठीक  हो रहा है,। लोगों की प्रतिक्रिया सुन के आश्चर्य तो ज्यादा नहीं हुआ लेकिन ऐसा जरूर लगा कि आम आदमी के बीच जो जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय का नकारात्मक परसेप्शन बनाने में दक्षिणपंथी ताकते कामयाव हो रही  है वो आसानी से खत्म भी नहीं हो सकता। हम लेके रहेंगे आजादी टाइप नारे आम लोगों को आकर्षित करने से ज्यादा चुभते है क्योंकि ऐसा नारा दंभऔर ताकत को भी प्रतिविम्बित करता है।
           अपने यहाँ प्रगतिशीलता की अलग ही समस्या है,कुछ लोग प्रगतिशील बन जाते है तब वो उसी समय सेकुलरिज्म की ओट में कूपमंडूकता को भी मौन समर्थन करते रहते है, इसी कारण से समाज और तथाकथित प्रगतिशील लोगों के बीच एक दूरी बनी रहती है।समाज जब कूपमंडूक बना रहेगा उस समय वो न प्रगतिशील नारों को समझने की कोशिस करेगा और न जेएनयू में हो रहे हिंसक कृत्य का विरोध करेगा। 
प्रगतिशीलता एक टापू की तरह हो गया है जो मुख्य घारा से कटा हुआ है, उसे आम लोगों से जोड़ने की बहुत जरूरत है ताकि यूनिवर्सिटियों में होने वाले हिंसक कृत्य करने से पहले सरकार को सोचना पड़े। 
     ये पोस्ट हम ट्रेन के वर्थ मे लेटे - लेटे अपने सेल फोन में लिख रहे है, शीशे से बाहर भी प्रगतिशीलता दिख रही है। लड़कियों का एक झुंड व्यस्त है।  राययुर जैसे राज्य की राजघानियों में भी महानगर की तरह की बाते अब सामान्य हो चली है।जैसे जेएनयू में कुछ बातें सामान्य लगती है, लेकिन बाकी समाज को असहज करती है ।  जो अल्पमत में हैं वे तो ट्रेन आदि जला - जला कर अमित शाह को बाध्य कर दिया ।आग में घी डालने के लिए ।अति सेकुलरिज्म ही फेंस पर खडे अधिकांश  हिंदूओं को भाजपा की तरफ झुका दिया ।
          जेएनऊ में  गुंडागर्दी देखकर लगता है, पुराने नालंदा विश्वविद्यालय को बर्बाद करने वाले ऐसे लोग ही रहे होंगे। मुंह ढकने के बजाए इन लोगों को नये जमाने का बख्तियार खिलजी के मानस रिस्तेदार घोषित कर लेना चाहिए। देश के पूरे शिक्षा संस्थानों को इन बख्तियार खिलजियों के खिलाफ एकजूट होने की जरूरत है क्योंकि अभी तो उनका प्रगटिकरण भर हुआ है परन्तु असली स्वरूप भयावह है।
           जेएनयू में प्रतिभाशाली युवा प्रवेश लेते हैं। इनमें ज्यादातर गरीब रहते हैं। वहां हावी वामपंथी सहयोग और सहानुभूति के माध्यम से अपने आप वामपंथी बन जाते हैं। वहां शिक्षकों में भी वामपंभियॊ का बाहुल्यता है।भाजपा की केन्द्र में सरकार बनते ही विद्यार्थी परिषद और आरएसएस ने अपना जाल फैलाना शुरू किया। आज ये भी शासन के संरक्षण में काफी प्रभावशाली हैं। शिक्षकों में भी इनके विचार वाले शिक्षक भी उपस्थित दर्ज होने लगे हैं। इससे कई तो पढ़ाई करने और करवाने वाले प्रोफेशनल पोलीटिशियन जैसा बर्ताव करने लगते हैं। नतीजन टकराव बना रहता है। मोदी सरकार आने के बाद टकराव बढ़ा है। अब सरकारी और प्रशासनिक संरक्षण  विद्यार्थी परिषद और उसकी विचारधारा वालों को मिलने लगा है।इन नये हालातों का नतीजा है जेएनऊ  का टकराव। जामिया में हालत पर नियंत्रण के लिए ताबड़तोड़ तरीके से घुसकर आलोचना में फंसकर हाथ जला चुकी पुलिस ने हिंसा शुरू होते ही परिसर के बाहर मजबूत मोर्चाबंदी कर ली और योगेन्द्र यादव, प्रियंका गाँधी वाड्रा को अंदर नहीं जाने दिया। जब जेएनयू प्रशासन ने मदद मांगी तभी पुलिस अंदर गई और हालात पर काबू पा लिया लेकिन ।ज्यादती के आरोप से भी बच गई। लेकिन दो दर्जन छात्रों व अन्य इस बीच घायलावस्था में अस्पताल पहुंच चुके थे।। इसलिए हल्ला ज्यादा है। लेकिन सच यही है कि यह पढ़ाई और छात्रों के हित में कदापि नहीं है। पर यह रूकने वाला भी नहीं है क्योंकि वामपंथी; हों या आरएसएस, दोनों के निशाने पर गरीब प्रतिभाशाली छात्र ही तो रहते हैं। दोनों इससे बाज नहीं आने वाले हैं। वह तो समाज को ही कोई कदम उठाना होगा।
       अव आम आदमी के जहन में अनेक प्रश्न हैजैसे प्रवेश द्वारों से वो तमाम प्रहरी (सुरक्षा गार्ड ) अचानक क्यों   ग़ायब हो गए थे ,जिन पर जेएनयू  के विद्यार्थियों और शिक्षकों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी है ? क्या नकाबपोश दंगाइयों  के साथ उनकी कोई मिलीभगत थी ? ड्यूटी में इस गंभीर आपराधिक लापरवाही के लिए उन प्रहरियों को अब तक क्यों बर्खास्त नहीं किया गया ? टीव्ही पर बताया जा रहा है कि जेएनयू में सुरक्षा का बजट 17 करोड़ रुपए है । lलेकिन  छात्र -छात्राओं पर हमला , शिक्षकों पर हमला और मीडिया वालों पर हमला ? सभी प्रमुख टीव्ही न्यूज चैनलों के परदों पर  यूनिवर्सिटी कैम्पस में अपने हाथों में लाठी ,डंडे लिए खड़े  गुंडे साफ नज़र आ रहे हैं । उनमें से कुछ लोग  हॉस्टल में तोड़फोड़ करते भी सीसीटीवी में दिखाई दे रहे हैं । इन दंगाई हमलावरों की  पहचान स्पष्ट है । क्या इन गुंडों के ख़िलाफ़  कोई कार्रवाई होगी ?
  **बुघवार मल्टीमीडिया नेटवर्क
दिनांक 6जनवरी2020