मध्यप्रदेश में माफिया के खिलाफ मुहिम

मध्यप्रदेश में माफिया के खिलाफ मुहिम
संजय सक्सेना 
मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार द्वारा अचानक जमीन, खनिज के साथ ही अपराध माफिया के विरुद्ध बुलडोजर चलाओ और जेल भेजो अभियान शुरू किया गया, तो सन्नाटा खिंच गया। भले ही हनी ट्रैप के असल किरदार सामने नहीं आ सके, लेकिन इस कांड ने भू माफिया और खनिज माफिया के खिलाफ अभियान को हवा दे दी। हालांकि आज भी कई बड़े भू माफिया बचे हुए हैं, लेकिन जितनी भी कार्रवाई हुई, उसने सरकार की कार्यप्रणाली के बारे में जनता की राय बदल दी है। राजधानी भोपाल सहित कई शहरों में सीधे राजनेता भू माफिया या तो खुद बने हुए हैं, या उनके संरक्षण में जमीनों और खनिज के अवैध कारोबार चल रहे हैं। सरकार का पंजा कब उन तक पहुंचता है, इसका इंतजार रहेगा। 
 देश के बड़े जमीन घोटालों में मप्र का नाम उस स्तर पर भले ही सामने नहीं आया हो, लेकिन यहां आम लोगों की छोटी-छोटी जमीनें कुछ खास कारणों से दांव पर लगती रही हैं। पिछले 30 साल में हाउसिंग सोसायटी और लैंड रिकॉर्ड में हेराफेरी से लेकर डरा-धमकाकर अवैध कब्जे तक का कारोबार तेजी से फला-फूला है। यही वह दौर है जब कांग्रेस और भाजपा सरकार ने बारी-बारी से पांच बार ऑपरेशन चलाया, लेकिन घाव है कि भर ही नहीं रहा है या यूं कहें इसे ठीक ही नहीं होने दिया जा रहा है। अचानक मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने ऑपरेशन क्लीन के जरिए जमीन माफिया पर हमला किया है। इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर जैसे अन्य शहरों में भी मकान-दुकान खाली करवाने से लेकर अवैध कब्जे हटाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री कमल नाथ ने भी अफसरों को फ्री-हैंड देने का दावा किया है। इसके बाद सक्रिय हुए पुलिस-प्रशासन की मौजूदा कार्रवाई निर्णय तक पहुंचे या नहीं, सरकारी रिकॉर्ड जरूर फिर से अपडेट हो जाएगा। कुछ नए नाम जुड़ जाएंगे, कुछ सफेदपोश बाहर आ जाएंगे और फिर नई शिकायतों के साथ फाइलों का पुलिंदा थोड़ा और मोटा हो 
जाएगा। भोपाल में विधानसभा सत्र चलता रहा और जमीनों के विवाद को लेकर वहां मरघट-सी शांति रही! न कांग्रेस इस कार्रवाई का श्रेय ले रही है और न ही भाजपा विरोध कर रही है। यह सौहार्द्र कुछ ऐसे संशयों को जन्म दे रहा है, जहां से तालमेल के राजनीतिक समीकरण नए अर्थों की तलाश शुरू करते हैं!
सरकार द्वारा भू-माफियाओं पर सख्त कार्रवाई के निर्देश के बाद प्रशासन एक्शन मोड पर नजर आने लगा है। यही वजह है कि अफसरों द्वारा शहरों के बिल्डरों और भू-माफिया के साथ ही सहकारी समितियों की सूची तैयार करने का काम जारी है। कुछ भू-माफिया के खिलाफ कार्रवाई भी शुरू हो गई है। हाल ही में भोपाल की दो सोसायटी कावेरी और रोहित गृह निर्माण समिति में फर्जीवाड़ा करने वाले संचालक मंडल पर ईओडब्ल्यू ने प्रकरण दर्ज किया है। इधर, सदस्यों का हक मार कर करोड़ों के वारे-न्यारे करने वाली गृह निर्माण समितियों में आज भी सहकारिता विभाग के अफसर कार्रवाई करने का साहस नहीं दिखा पा रहे हैं। जिसकी वजह से दशकों से प्लाट के लिए भटक रहे सैकड़ों लोगों को न्याय मिलता नजर नहीं आ रहा है। दरअसल शहर में पिछले दो साल में 150 से ज्यादा सोसायटियों की 190 से ज्यादा शिकायतें उपायुक्त दफ्तर में दर्ज हैं। इसमें से 95 शिकायतें इसी साल की हैं। इनमें पैसा जमा कराने के बाद भी 1 हजार से ज्यादा लोग प्लॉट खरीदने के लिए बरसों से भटक रहे हैं। शहर में 581 हाउसिंग सोसायटी रजिस्टर्ड हैं। इसमें से सिर्फ 477 ही चालू हैं। अधिकारी रिश्वत लेकर मामला दबाते आ रहे हैं।