नीतीश कुमार  निजात पाने की तैयारी में?

नीतीश कुमार  निजात पाने की तैयारी में?
          कृब्ण देव सिंह
         बिहार की राजनीति एक वार फिर चौराहे पर आ खड़ी हुई है जहाँ से राजनैतिक दलों को अपनी र्‍ अपनी सुविधा / असुविधा / मजबूरी में नये रास्ते और साथियों का चयन करना है क्योंकि राज्य विधान सभा चुनाव में अब ज्यादा समय शेष नहीं है। हलांकि अभी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि जदयू और भाजपा का गठबन्धन समाप्त हो जावेगा लेकिन देश और प्रदेश की राजनीति की हवा लगातार इसी तरफ इशारा करने लगी है। स्पष्ट है कि जैसे - जैसे चुनाव का समय निकट आता जा रहा है वैसे - वैसे अन्दर खाने राजनीतिक घुर्वीकरण की संभावनाओं की तलास जारी हो चुकी है। नीतीश जी क्या रणनीति अपनाते है. उसका खुलासा तो होना शेष है. लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि हिन्दी प्रदेशों में से बिहार एक मात्र राज्य है जहाँ भाजपा की स्वतंत्र रूप. से सरकार नहीं है और यहीं वात केन्द्रीय सरकार , भाजपा और आरएस एस को गले में फांस की तरह चुभती हैं।
      जदयू व विशेष रूप से नीतीश जी के शुभचिन्तक दुर्गेश कुमार जी ने बिहार के मुख्यमंत्री से सामाजिक मिडिया में बहुत ही मार्मिक अपील की हैा उन्होने लिखा है ॥नीतीश जी नायक बनिए नायक! आप सांप के साथ रहकर बिना लाठी के जीने का जोखिम नहीं ले सकते है। याद रखिये कि हजारों साधारण कोशिशें भी इतिहास में दर्ज होने के लिए किसी एक असाधारण कदम का मोहताज रहती है। हमें याद है कि आप भूमि सुधार बिल लाकर ऐसा ही जोखिम उठाना चाहते थे, लेकिन जन समर्थन के अभाव में उसे लागू नहीं कर सकें।॥ अब श्री कुमार के अपील का नीतीश जी पर कुछ असर हुआ अथवा नही ,यह तो वो ही जाने पर मेरी जितनी समक्ष है उसके अनुसार ॥ बिहार के मुरूय मंत्री नीतीश कुमार जी के हाथ से नायक बनने का अबसर अभी निकला नहींहै क्योंकि कांग्रेस ने अब मंडल को बहुत ही सावधानी और चुपके से अपनाने की पहल कर चुकी है तथा प्रदेश में भाजपा के विरुद्ध सभी तरह का राजनीतिक विकल्प खुले हैं।
         दुर्गेश जी ने आगे लिखा है ॥ परिस्थितियों ने आपको फिर एक बार वैसा ही मौका दिया है जब केन्द्र सरकार ने अप्रत्यक्ष रूप से आरक्षण खत्म कर दिया है, तब कालांतर में आरक्षण विरोधी मानी जाने वाली पार्टी कांग्रेस की राज्य  सरकारों ने आरक्षण को बढ़ाने का यश ले रही है। हमें आश्चर्य होता है कि आप जैसे सोशलिस्ट ओबीसी आरक्षण बढ़ाने की बात कर चुप क्यों हो जाते है। निर्णय लीजिए निर्णय, यह आपकी राजनीति के लिए भी गेम चेंजर होगा। आपके ऐसा करने से ओबीसी समाज को भी उचित हक मिल जायेगा, जो आपका घोर समर्थक है। इस मुद्दे के साथ भूमि सुधार बिल की तरह जन समर्थन का अभाव भी नहीं है। आप अपने समर्थकों के दर्द को महसूस कीजिये, सबके सीने में दर्द है, मोहन भागवत के बयान से पिछड़े वर्ग और दलितों में बेचैनी है। कल तक जो आरक्षण पर खांसते नहीं थे वो अब इसे खत्म करने की बात कह रहे है।
          वे यहीं नही स्कते वाल्कि आगे कहते हैं ॥
ऐसे ही वेदना के कारण ओबीसी समाज चीख रहा है, सीने में दर्द का गुब्बार है। जिस दिन यह गुब्बार फुटेगा, सारे गुनाहगार उड़ जायेंगे, आप भी नहीं बचेंगे। इसलिए कहना है कि अब भी समय है। चुनाव से पहले बिहार में ओबीसी आरक्षण जनसंख्या के अनुपात में बढ़ाकर सामाजिक न्याय कीजिए। मोहन भागवत को जवाब दीजिये। इतिहास बनाईये अथवा आर एस एस के इतिहास में गुम हो जाइये।॥
              इधर भारतीय जनता पार्टी के नेता डॉ संजय पासवान का एक बयान इस आकलन को आगे बढ़ाता है कि बिहार में बीजेपी अब नीतीश कुमार से मुख्यमंत्री पद छीनना चाहेगी. इस वक्त लगभग पूरे उत्तर, पश्चिम और पूर्व भारत पर बीजेपी का कब्ज़ा है, ऐसे में बिहार उसके नेताओं को बेशक चुभ रहा है. नीतीश कुमार भले लम्बे समय से बीजेपी के साथ सरकार में हैं, लेकिन नीतीश कुमार अपने तरीक़े से सरकार चलाते रहे हैं. इन सालों में बीजेपी कभी भी उन्हें अपने मनपसंद तरीक़े से हांक नहीं पाई. राम मंदिर, आर्टिकल 370, तीन तलाक आदि मुद्दों पर नीतीश कुमार बीजेपी से अलग रहे. इसलिए पिछले साल रामनवमी पर बीजेपी को राम के नाम पर तमाशा करने नहीं दिया. बीजेपी उत्तरप्रदेश में आज जिस तरह से हिन्दू मुस्लिम, सवर्ण दलित कार्ड खेल रही है, नीतीश कुमार ने नहीं खेलने दिया. उत्तरप्रदेश में जिस तरह राम राज्य स्थापित किया जा रहा है, बिहार में ये संभव नहीं हो पा रहा. इसलिए बीजेपी का अगला निशाना नीतीश कुमार को बनना ही था. 
          नीतीश कुमार मौजूदा बीजेपी के नेतृत्व और उनके सिपहसालारों के लिए इस कारण भी निशाने पर हैं कि नीतीश कुमार की हनक अब बेहद धीमी हो गयी है. खुद बहुत सक्रिय नहीं हैं और अपने सिपहसालारों के भरोसे राजकाज चला रहे हैं. पिछले 15 वर्षों में नीतीश कुमार ने जनता पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को माध्यम बनाने के बजाय नौकरशाही को हथियार बनाया. शासन में कार्यकर्ताओं की भूमिका शून्य रही और नौकरशाहों की भूमिका सर्वोपरि. शुरुआत में तो पुलिस ने महाराणा प्रताप के चेतक की तरह नीतीश कुमार का साथ दिया, लेकिन इन सालों में जब नौकरशाही को भरोसा हो गया कि नीतीश कुमार उनके भरोसे शासन और राजनीति में हैं, और डीएम और एसपी ही राज काज चला रहे हैं तो शासन की राजनीतिक धार कुंद होने लगी. नीतीश कुमार के विजन की जगह दारुबंदी, दहेज बंदी और गुटखा बंदी जैसे सामाजिक मुद्दों पर शासन का फोकस शिफ्ट हो गया. 
        बीजेपी अब लगने लगा  है कि नीतीश जीकी जनता में पकड़ ढीली हुई है. उनके कार्यकर्ता लगभग निष्क्रिय हैं. नीतीश के पिछड़े और दलित वोट बैंक  में भी देशभक्ति, हिन्दू-मुसलमान और भगवान राम ने सेंध लगा दी है. सवर्ण मूल तौर पर बीजेपी के वोटर हैं. ऐसे में जाहिर है नीतीश कुमार कमजोर हुए हैं. कश्मीर में 370 हटाने के बाद बिहार की आम जनता के बीच नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की छवि मजबूत हुई है और बहुसंख्यक हिन्दुओं को भरोसा हुआ है कि ये दोनों ही मौजूदा वक़्त में सबसे सही नेता हैं. 
        देशभक्ति, राम मंदिर, आर्टिकल 370 और अब राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) ही आज देश का राष्ट्रीय राजनीतिक मुद्दा है. और नीतीश जी इन सारे मुद्दों पर बीजेपी से अलग राय रखते हैं. ऐसे में श्री कुमार के पास कोई राजनीतिक मुद्दा बचा ही नहीं. क्योंकि इन मुद्दों पर राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस जब देश की जनता को अपने पक्ष में नहीं कर पा रही तो क्षेत्रीय पार्टी के नेता नीतीश जी की क्या विसात ?! लेकिन राजनीति और विशेषकर बिहार की , कुछ अलग फैसला करती रही है जो इस बात पर निर्भर करेगा कि नीतीश जी कौन सा रास्ता चुनता है तथा विद्यान सभा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़ी जावेगी अथवा राष्ट्रीय मुद्दों पर ? चुनाव के समय कौन - कौन से राजनीतिक, सामाजिक तथा जातीय समीकरण बनेगा ?
** बुघवार मल्टीमीडिया नेटवर्क
दिनांक11सितम्बर2019