उबड-खाबड  चुनौतियों से गुजरते रहे नीतीश कुमार

उबड-खाबड  चुनौतियों से गुजरते रहे नीतीश कुमार
             कृष्ण देव सिंह
                 पटना।30जनवरी2020.बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार अपने  जीवन में उबड़-खाबड़ चुनौतियों से गुजरते रहे है। ये कभी भी सपाट रास्ते के पथिक नहीं रहे है। पहले दो विधानसभा चुनाव हार जाना, फिर चुनाव जीतना, बाढ़ से सांसद बनकर केन्द्र सरकार में कृषि राज्य मंत्री बन जाना या लालू से अलग होने के बाद समता पार्टी की विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हार होने के बाद भी नीतीशजी धीरे-धीरे पुन: मजबूत होकर वाजपेयी सरकार में मंत्री बने।इस राजनीतिक सफ़र में नीतीश कुमार कभी भी किस्मत  पर सवार होकर सपाट सफ़र के यात्री नहीं रहे है।नीतीश अपनी बुद्धि और राजनीतिक समझ की बदौलत जनता की पसंद रहे ।उन्हें हलांकि आंतरिक चुनौतियों का भी खूब सामना करना पड़ता रहा है।इनके उलट  प्रतिद्वंदी नेताओं को मौका मिलने के बाद किस्मत भी उन्हें भरपूर साथ देता रहा है।
      नीतीश जी समता पार्टी के जनाधार के अकेले आधार होने के बावजूद भी वर्ष 2000 के आसपास सर्वश्री प्रभुनाथ सिंह, अरुण कुमार, दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं की गुटबंदी के कारण  पार्टी में भी किनारे लगाये जाने जैसे हालात पैदा हो गये थे लेकिन  नीतीश अंततः समता पार्टी के निर्विवाद नेता बने. कहा जाता है कि 2005 में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने को लेकर भी एकराय नहीं थी. दिग्विजय सिंह खुद प्रवल दावेदार थे. जार्ज फर्नांडिस नीतीश को अबूझ शख्स के रूप में देखते रहते थे. तब एकीकृत बिहार में भाजपा बड़ी पार्टी थी लेकिन नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. 
हाल के दिनों में भी कभी जीतनराम मांझी की बगावत तो कभी शरद यादव सेदो-चार होना पड़ा ।लेकिन नीतीश कुमार को लेकर आम जनता के मन में द्वद कभी नहीं रहा है।


नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री कार्यकाल में लम्बे समय से ‘अब गये-तब गये’ की बहस होती रही है। इस बहस का केंद्र भी वहीं वर्ग रहा है जो मंडल लहर के बाद से ही बिहार में सत्ता से बाहरहै लेकिन नीतीश है कि हर बार अपनी ताकत को संतुलित कर लेते है।कभी गठबंधन, कभी अपराध रोकने, कभी सामाजिक समीकरणों को साध कर तो कभी आरक्षण जैसे अनेक प्रयोगों से बिहार में अपनी धाक कमजोर नहीं होने दी।
     पटना में जल जमाव नीतीश जी की छवि के विपरीत रहा हालाँकि पटना के विधायक-सांसद, मेयर भाजपा कोटे के होने के कारण उनसे अधिक भाजपा को भी  कोप भाजन बनना पड़ा । पहली बार जनता के निशाने पर नीतीश सरकार की नौकरशाही भी आई।नीतीश जी ने भले ही सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कहे हो लेकिन खबरें ऐसी भी छन कर आई कि वे अपने अफसरों पर खुल कर नाराज हुए. 14 वर्षों में नीतीश अपने अफसरों पर कारवाई करने की बात खुल कर पहली बार कर रहे थे जब उन्होंने कहा कि ‘पानी निकासी होने दीजिये, हम एक-एक चीज का हिसाब लेंगे’।देश के अनुभवी राजनीतिज्ञों में से एक नीतीश कुमार द्वारा  ऐसा कहना उनकी गंभीरता को दर्शाता है। भले ही नीतीशजी कभी अपनी प्रशासनिक गलतियों को स्वीकार नहीं करते हो, लेकिन कामकाज को लेकर वे चुपचाप सुधार-संशोधन के लिए भी जाने जाते हैं।  फ़िलहाल उनके पास नौकरशाही में सुधार के अलावा उर्जावान राजनीतिक सिपहसालारों की भी जरुरत है क्योंकि उनकी छवि को कमजोर करने के लिए  भाजपा ने अपने लोगों से ‘सीरियल अटैक’ कराने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है।
     नीतीश जी फिर से बढ़ रही अफसरशाही की काट-छाट, निस्तेज पड़ते द्वितीय पंक्ति के जदयू नेताओं को किनारे कर उर्जावान नेताओं को आगे करने, ओबीसी आरक्षण की सीमा बढ़ाने की रणनीति को अमलीजामा पहनाने की पहल ठीक उसी प्रकार से करे जैसे संसद के आखिरी दिन EWS आरक्षण लागू करने की रणनीति अमित शाह ने अपनायी थी. यदि नीतीश कुमार चुपचाप अपनी प्रशासनिक एवं राजनीतिक सुधार को अमलीजामा पहनाने में कामयाब रहते है तो 2020 के बाद नीतीश अपने राजनीतिक जीवन के सबसे मजबूत दौर में होंगे  क्योंकि बिहार की  जमीन पर भाजपा और राजद दोनों पहली बार नेतृत्वविहीन नजर आ रही है।
      नीतीश कुमार कि ये राजनैतिक शैली रही है कि वो किसी भी विवादस्पद मुद्दे पर जल्दबाजी नहीं दिखाते हैं समय लेते हैं और तब तक इन्तजार करते हैं, जब तक स्थिति उनके अनुकूल नहीं हो जाये ।सीएए और एनआरसी को लेकर देश में जो बवेला मचा है उस पर  चुप्पी तोड़ते हुए नीतीश कुमार ने फिर से बीजेपी के साथ रिश्ते को लेकर चल रही राजनीत को थोड़ा और आगे बढा दिया है ।
             सीएए को लेकर नीतीश कुमार ने कहां कि जब मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया है ऐसे में आन्दोलनकारियों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इन्तजार करना चाहिए ।वही इन्होंने ये संकेत भी देने से परहेज नहीं किये कि वो जातिगत जनगणना को लेकर विधानसभा औऱ विधान परिषद से प्रस्ताव पास करा सकते हैं जिसको लेकर बीजेपी कही से भी समझौता करने के मूड में नहीं है।
  बात यही खत्म नहीं हुई एनपीआर के सहारे बीजेपी की नागरिकता वाली नीति कि आलोचना करने से भी वो परहेज नहीं किेये और कहते कहते केन्द्र सरकार से 2011 वाले एनपीआर लागू करने कि मांग कर दिये ।
 साथ ही लोकसभा में पार्टी के नेता ललन सिंह और राज्यसभा में पार्टी के नेता आरसीपी को ये जिम्मेदारी दे दिया कि केन्द्र कि सरकार से नये प्रावधान को हटाने के लिए बात करे।  मीडिया से बात करते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि एनपीआर में कई ऐसे प्रावधान इस बार जोड़े गये हैं जिससे देश के सामने भ्रम कि स्थिति पैंदा हो गयी है।अब बताईए इस सवाल के पुंछने का क्या मतलब है कि आपके मां पिता जी का जन्म कहां हुआ है, ये  मुझे भी मालूम नहीं है तो फिर गरीब गुरुबा लोगो को कहां से ये पता होगा
   हलाकि इस मामले में बिहार बीजेपी एनपीआर में दिये गये सभी विकल्प को शक्ति से लागू हो इसके लिए प्रेस वार्ता भी कर चुंका हैं ,अब देखना यह है कि एनपीआर में सुधार को लेकर नीतीश कुमार ने जो केन्द्र सरकार को सलाह दिया है उस पर केन्द्र सरकार कितना अमल करता है क्यों कि एनपीआर कि तैयारी शुरु हो चुंकी है और इस काम में शामिल होने वाले कर्मचारियों को जिम्मेवारी भी दे दी गयी है तथा उनकी ट्रेनिंग भी चल रही है ब 2 अप्रैल से एनपीआर का काम भी शुरु हो जायेगा ।  वैसे एनपीआर में सुधार नहीं भी होता है तो फिलहाल ये बीजेपी का साथ छोड़ने का फैसला नहीं लेगे क्यों कि अभी बहुत कुछ होना बाकी है । क्यों कि जैसे जैसे गांव और गरीबों के बीच एनपीआर को लेकर बाते पहुंचेगी ,बवेला खड़ा होगा क्यों कि इसमें कई ऐसे प्रावधान है जो संदेह पैंदा कर सकता है ।
                   नीतीशजी उस स्थिति को भाप चूके हैं जिस तरीके शाहीनबाग के सहारे ये चीजे गांव गांव तक पहुंच गयी है कि सरकार मुस्लमान को देश से बाहर भेजने जा रही है । यही वजह है कि मुस्लिम पूरे परिवार के साथ सड़क पर उतर गया है।  वही मुस्लिम औऱ दलित नेता अब गांव गांव जाकर कह रहा है  सावधान मुस्लमान के बाद दलित आदिवासी को भी देश निकाला जायेगा 
      वही पहली बार प्रशांत किशोर को लेकर नीतीशजी ने तल्खी दिखाई है।  इसके लिए वे अमित शाह को ही जिम्मेदार ठहराते  हुए कहां कि वही तो कहे थे कि इनको आप पार्टी में शामिल कर लेिजिए ।  नीतीश कुमार ने सार्वजनिक रुप से दूसरी बार कहा है कि अमित शाह के आग्रह पर प्रशांत किशोर को जदयू में शामिल किया हैं, कोई राजनीतिज्ञ व्यक्ति  बंद कमरे में हुई बात को अमूमन सार्वजनिक करने से परहेज करते हैं और नीतीश कुमार जैसे नेता से तो ये उम्मीद भी नहीं कि जा सकती हैं ।
 नीतीशजी के बायन के बाद प्रशांत किशोर को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। 3न्हीं का तरह पूर्व राज्य सभा सदस्य व नौकरशाह पवन कुमार वर्माजी को भी पार्टी से निकाल दिया गया है। वे कुछ दिनों से बगाबती तेवर अपनायें हुए तभा प्रेस के माध्यम से नीतीश जी पर हमले पर हमले किये जा रहे हैा
अक्सर जदयू के भगत लोग गिरिराज टीम पर हावी होते रहते हैं जिसमें उनके ( गिरिराज  आदि )  अनावश्यक बयान के विरोध में रहता था  लेकिन महीना दिन से पीके बहुत चपर - चपर कर रहे थे ।भाजपा को बुरा लग रहा होगा लेकिन पीके केजरीवाल के लिए काम कर रहे हैं ।अब प्रशांत किशोर पाण्डे का भविष्य दिल्ली विधान सभा का चुनाव परिणाम ही तय करेगा?
*बुघवार मल्टीमीडिया नेटवर्क