विकास दर का ठोल पीटने वाली राजनीति को समक्षना होगा

विकास दर का ठोल पीटने वाली राजनीति को समक्षना होगा


 कृष्ण देव सिंह
        पटना ।भारतीय अर्थव्यवस्था अभी लगभग2.94 ट्रिलियन डालर है(अमेरिका 21ट्रिलियन डालर,चीन 14ट्रिलियन डालर)। प्रधान मंत्री ने 2025-25तक पॉंच ट्रिलियन डालरकी अर्थव्यवस्था बना देने का दावा किया है। इस समय देश का विकास दर पॉंच प्रतिशत से कम है।विकास की इस दर से2024-25 तक हम3.5ट्रिलियन
 डालर की अर्थव्यवस्था भी नहीं प्राप्त कर सकेगें और पॉंच ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था पाने के (इसी दर से)लिये 2033-34 तक प्रतीक्षा करनी परेगी। जब हमारी मंज़िल दूर है तो हमें अपने सुधारों में तेजी लाना चाहिये।                                                                                           एक  लेख में प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने कहा है कि मोदी के नये मंत्रीमंडल में अनुभवी और प्रतिभाशाली मंत्रियों का अभाव है। उनके पास अब पहले कार्यकाल में उपलब्ध रघुराज राजन,अरविंद सुब्रमण्यम,उर्जित पटेल और अरविंद पनगढ़िया जैसे उच्च गुणवत्ता वाले अर्थशास्त्रियों का भी अभाव है।ऐसी स्थिति में भी                                                                      विकास दर का ढोल पीटने वाली राजनीति और विशेषकर बिहार को समझना जरुरी है। विकास दर भारत में कृषि, औद्योगिक, सेवा सेक्टर में वृद्धि, निवेश, उपभोक्ताओं के उपभोग करने की क्षमता के विकास को परिलक्षित करने वाला प्रतीक है।
      अमेरिका का विकास दर 2% और भारत का 6% के आसपास रहने का अर्थ क्या है? क्या अमेरिका भारत के तेज रफ्तार से प्रगति के कारण भारत से तुरंत ही पीछे छूट जाएगा? जी नहीं! विकास दर की भी सीमा होती है। उदाहरण के तौर पर डेढ़ सौ करोड़ लोगों के लिए आवास की उचित व्यवस्था पूरी होने पर रियल एस्टेट सेक्टर का विकास बेहद धीमा हो जायेगा। तब रियल एस्टेट सेक्टर के विकास दर के धीमी गति से देश का सकल घरेलू उत्पाद का दर भी कम होगा। अमेरिका ने विकास के बहुत सारे आयाम को छू लिया है। स्वाभाविक है कि वहाँ का विकास दर स्वत: धीमा हो जाएगा।भारत में विकास दर का सबसे अच्छा उदाहरण  बिहार है? 
      भारत में विकास दर से बदलाव का सबसे मजबूत उदाहरण आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी ने करीमनगर, आदिलाबाद के आसपास 4-5 जिले में 2-3 वर्षों तक 25% तक रखा था। जिसमें सरकार प्रायोजित योजनाओं का पैसा खर्च था। वही दूसरी तरफ एंटी नक्सल अभियान भी चला था। राजशेखर रेड्डी प्रयासों से उन जिले में उनके जीवन में ही नक्सलवाद खत्म हो गया था। इस बारे में स्वामीनाथन अय्यर ने टाइम्स ऑफ इंडिया में एक आर्टिकल भी लिख कर सरकार से इस तरीके को पूरे देश में लागू करने की वकालत की थी। 
    आंध्र प्रदेश के ये गरीब जिले तब भी बिहार के 2-3 जिलों से अधिक विकसित थे। अर्थात  जहाँ पर जितना विकास कम हुआ रहेगा वहाँ पर उतना ही अधिक विकास दर की जमीन तैयार रहेगी। नि:संदेह बिहार में नीतीश कुमार के पहले आर्थिक स्थिति बेहद शर्मनाक थी। लेकिन खुद मुख्यमंत्री बार-बार कह चुके है कि बिहार की मौजूदा विकास दर लगातार 30 वर्ष तक रही तब जाकर बिहार देश के औसत विकसित राज्यों में शुमार होगा। इससे अधिक विकास दर हासिल करने के लिए विशेष राज्य का दर्जा चाहिए। 
    अब सवाल उठता है कि क्या वास्तव में बिना विशेष दर्जा के बिहार का विकास दर 10-11% से अधिक हासिल नहीं किया जा सकता है?विपक्ष के नेताओं का काम है कि उनका बिहार को लेकर विजन क्या है?लगता है कि विपक्ष के नेता धारा प्रवाह अंग्रेजी तो बोल सकता है लेकिन सामान्य ज्ञान औसत भी नहीं है  ।इसलिए वो कभी भी ऐसे मुद्दे पर बात नहीं करते हैं। उनका एकमात्र राग नीतीश कुमार की निजी तौर पर आलोचना करना है। इसका लाभ सत्ता पक्ष के लोग विकास दर का झोल बांट कर लेते है। वास्तव में बिहार में मौजूदा संसाधनों का उपयोग कर ही प्रतिवर्ष 15% विकास दर हासिल तो किया ही जा सकता है। लेकिन अफसोस है कि बिहार में मुद्दों पर राजनीति करने वाले नीतीश कुमार अकेले नेता है। पत्रकारों को चाहिए कि तेजस्वी यादव से कभी आर्थिक, सांख्यिकी, ऐतिहासिक तथ्यों से जुड़े सवाल भी करें। लफ्फा शूटिंग वाले सवाल का मुंहतोड़ जवाब तो बिहार के किसी भी कालेज में दो-चार दिन जाने वाला कोई भी बिहारी दे देंगे। बिहार के विपक्ष का नेता दमदार और गंभीर होना चाहिए। वरना नीतीश कुमार को वाक ओवर देना ही पडेगा?
**बुधवार मल्टीमीडिया नेट्वर्क