राम और बजरंग तथा ब्राम्मणों  के इर्द-गिर्द की राजनीति

राम और बजरंग तथा ब्राम्मणों  के इर्द-गिर्द की राजनीति


               कृब्ण देव सिंह
भोपाल।मध्यप्रदेश की राजनीति केन्द्र में घर्म,सामन्त,ब्राम्हण और आदिवासी पर राजनीतिक समीकरण बनते - बिगड़ते रहा है। इसका फायदा अलग- अलग समय पर भाजपा और कांग्रेस को मिलता रहा है।भाजपा की जय श्री राम के मुकाबले जय जय वंजरंगवली का नारा भी अब गुंजने लग सकता है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ की आस्था वंजरंगवली में भरपुर है ।रही सही कसर संचार माध्यमों द्वारा ब्राम्हण नेतृत्व में कमी का राग अलापने का अर्थ है कि सत्ताघारी दल कांग्रेस में राज्यसभा चुनाव में किसी ब्राम्हण को भेजने की रणनीति परदे के पीछे से कार्य करना शुरू कर दिया है ।एक समय था जब मध्यप्रदेश में ब्राम्हणों की जबरदस्त राजनैतिक,सामाजिक,प्रशासनिक कथा संचार/ प्रचार माध्यमों पर कब्जा थे लेकिन आज हालात बदल गई है ।भाजपा में ब्राम्हणों का दवदवा कायम हो गया है जबकि कांग्रेस के ब्राम्हण नेता लगातार अपने षडयंत्रकारी कार्यो के कारण आम जनता से दुर होते जा रहे हैजिसका स्वाभाविक परिणाम अपने नग्न रन्प में अब मध्यप्रदेश में भी सामने आने लगे है।
.
              भारतीय जनता पार्टी ने अपनी ताकत देश में बढ़ाने के लिये रामरथ यात्रा तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने निकाली जिससे भाजपा बढ़ी तेजी से बढ़ी।  यह भगवान राम के प्रति लोगों के मन में अगाध आस्था ऐसा इस्तेमाल था।भाजपा ने जय जय श्रीराम नारे का उद्बोध कर राजनीति में सफलता की सीढ़ियां चढ़ती गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने राष्ट्रवाद के मुद्दे को उछाला और अपना जनाधार बढ़ाने के लिये उसका उपयोग किया ।उसके बाद विपक्षी खेमे में भी इसकी काट ढूंढना प्रारंभ किया। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने श्रीलंका में सीता मन्दिर के उस अधूरे काम को तेजी से पूरा करने का बीढ़ा उठाया। इसकी शुरुआत तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में हुई थी । राष्ट्रवाद व धार्मिक आधार पर धु्र्वीकरण और शाहीन बाग को दिल्ली के चुनाव में मुद्दा बनाने की जो कोशिश हुई तो उसकी काट के रूप में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने विकास मंत्र के जप के साथ बजरंग बली की भी शरण ली। इस प्रकार अब देश की राजनीति धार्मिक प्रतीकों के इर्द-गिर्द सिमटती जा रही है। भाजपा के जय जय श्रीराम के उदघोष के मुकाबले जय बजरंग बली... का जो उदघोष अरविंद केजरीवाल ने किया ।उसीका नतीजा था कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में उन्हें चमकीली जीत प्राप्त हुई और भाजपा आठ सीटों पर सिमट कर रह गई।भाजपा ने जय श्रीराम के नारे भगवान राम की वानर सेना में जोश भरने के लिये लगाया था। बजरंग बली का जिस प्रकार  केजरीवाल ने प्रयोग किया उसकी काट भाजपा नहीं ढूंढ पाई क्योंकि वह बजरंग बली से परहेज कैसे कर सकती थी। 
          पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को भाजपा ने स्टार प्रचारक बनाकर साल 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की एक दशक की सत्ता को चुनौती देने के लिये बतौर मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में आगे किया था। उमा भारती अपने प्रचार. अभियान में व्यस्त थीं और इस दौरान वह छिंदवाड़ा के जामसावली हनुमान मंदिर में गई ।उन्होंने बजरंग बली की पूजा कर प्रसाद चढ़ाया तो उनकी हनुमान भक्ति को लेकर सवालिया निशान लगाये गये। यह बात तेजी से उछली कि उन्होंने केक चढ़ाया जो अण्डे से बनता है जबकि उमा भारती की सफाई थी कि उन्होंने मिल्ककेक चढ़ाया। उस समय उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा को प्रदेश में अच्छी-खासी सफलता मिली और चमकदार जीत का श्रेय उन्हें मिला। उन्होंने भाजपा का जो प्रदेश व्यापी आधार बनाया उसके बलबूते पर डेढ़ दशक तक भाजपा प्रदेश की सत्ता पर काबिज रही। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सामाजिक सरोकारों से जुड़ी योजनाओं ने भी भाजपा को मजबूती प्रदान की।             
      . .देखा जाये तो दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने केजरीवाल की हनुमान भक्ति को लेकर सवालिया निशान लगाये। उन्होंने कहा कि अचानक केजरीवाल हनुमान भक्त हो गये, एक अवसर पर तो उन्होंने यहां तक कह दिया कि जिस हाथ से उन्होंने जूते उतारे उसी हाथ से माला चढ़ाई इसलिए मंदिर का शुद्धिकरण किया जाए। केजरीवाल की सफाई थी कि उन्हें अपने जूते उतारने हाथ नहीं लगाना पड़ता।गुजरात विधानसभा चुनाव के समय से कांग्रेस ने भी उदार हिंदुत्व की नीति पर चलते हुए बहुसंख्यक मतदाताओं में अपनी जगह बनाने की कोशिश की। कांग्रेेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी शिवभक्त के रूप में सामने आये। गुजरात चुनाव के दौरान वे मंदिरों में गये और इसका कांग्रेस को अपरोक्ष रूप से फायदा भी मिला। भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह ने 150 प्लस का नारा दिया था। वह 100 का आंकड़ा भी नहीं छू पाई। राहुल गांधी मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी सभी धार्मिक स्थलों में गये और पूजा-अर्चना की। यहां भी कांग्रेस ने भाजपा से सत्ता छीन ली। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ अपने निजी जीवन में बड़े हनुमान भक्त है और वे अपने निर्वाचन क्षेत्र छिंदवाड़ा में सबसे बड़ी हनुमान मूर्ति की स्थापना कर कई वर्ष पूर्व उसकी प्राण प्रतिष्ठा भी करा चुके हैं।
                    कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में जो वचन पत्र दिया था उसमें भी धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की बात कही थी और उस राम वन गमन पथ को पूरा करने का वायदा किया था जिसे शुरू शिवराज सिंह चौहान ने चालु किया था लेकिन उनके कार्यकाल में कोई अधिक काम नहीं हो पाया। चुनाव पूर्व कांग्रेस के समर्थन में उस पर एक यात्रा भी निकाली गई थी। मध्यप्रदेश में सत्ता की बागडोर संभालते ही मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने एक के बाद एक ऐसे मुद्दे जो हिंदुओं की आस्था और विश्‍वास से जुड़े हैं उन पर पूरी संजीदगी से अमल करना प्रारंभ किया। जहां तक कि राज्यपाल लालजी टंडन ने भी राज्य सरकार द्वारा सनातन संस्कृति पर काम करने की प्रशंसा करते हुए कहा कि इस दिशा में जिस तरह से मुख्यमंत्री ने काम प्रारंभ किया है उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। राज्यपाल ने हनुमान चालीसा को कमलनाथ द्वारा विश्‍व स्तर पर प्रचारित करने को पसंद किया। 
          कमलनाथ का भक्ति भाव और श्रद्धा प्रदेश के राजनीतिक पटल पर उभरकर सामने आ रही है उसका उद्देश्य बहुसंख्यक वर्ग में कांग्रेस के प्रति नये सिरे से आधार बनाना है। उनके तीन प्रयासों खासकर श्रीलंका में सीता माता मंदिर, चित्रकूट का विकास और राम वन गमन पथ और हनुमान चालीसा को जिस ढंग से विश्‍व स्तर पर प्रचारित करने का प्रयास किया है।कमलनाथ चुनाव जीतने के बाद अपने इस अभियान पर सधे हुए कदमों से आगे बढ़ रहे हैं।  वहीं अरविंद केजरीवाल की पार्टी हनुमान भक्त केवल चुनाव के लिये ही नहीं बनी थी बल्कि अब इसे वह आगे बढ़ा रही है। उनके तीसरी बार चुने गये विधायक सौरभ भारद्वाज ने मांग की है कि अयोध्या में राम मंदिर परिसर का निर्माण हो रहा है उसमें हनुमानजी का एक मंदिर बनाया जाना चाहिए। उन्होंने इस बात की भी पहल की है कि हर माह के आखरी शनिवार को उनकी पार्टी सुन्दरकाण्ड का आयोजन करेगी और इसकी शुरूआत अपने निर्वाचन क्षेत्र से करने जा रहे हैं। जिस प्रकार से आम आदमी पार्टी का स्वरूप है उसमें कोई भी व्यक्ति इस तरह की घोषणा नहीं कर सकता जिस पर केजरीवाल की सहमति न हो। इस प्रकार अब बजरंग बली की भक्ति के सहारे भाजपा का मुकाबला करने की राजनीति बड़ सकती है।
*बुघवार बहुमाध्यम तंत्र