भडुओं और दल्लों के गिरफ्त में राजनीति और सत्ता

भडुओं और दल्लों के गिरफ्त में राजनीति और सत्ता


       .  .    बुधवार*स्ट्राइकर
देश की राजनीति और सत्ता पर भडुओँ,रंडिओं और दल्लों के दिनों= दिन बढ़ते प्रभाव का सर्वाघिक असर युवा पीढ़ी पर हो रहा है क्योंकि सिंद्यान्त,आदर्श,प्रतिबद्धता ,नीति,समाजसेवा यादि भाव/ कर्तब्य अब दिनोंदिन बेमानी होते चले जा रहे है।अब मंत्री/ सांसद/  विधायक / महापौर/ अध्यक्ष यादि  जनसेवा के लिये नहीं सत्ता की मलाई चाटने के लिए बना जाता है।अब राजनीति जनसेवा तभा देश व प्रदेश के विकास के लिए नहीं बल्कि ठेके, ओहदे और ऐश के लिये की जाती है। सरकार जनहित के कामों के लिए नहीं, बल्कि अपनो और कुर्सियों को बचाने के लिए निरंतर  पूर्ति का उपक्रम बन गया है। नौकरशाही विकास की योजनाओं को अमल करवाने और जनता की सेवा के लिए नहीं, बल्कि अपनी और अपने सियासी आकाओं के दिये गए वित्तीय टारगेट को पूरा करने के लिए बेशर्मी व हद दर्जे की नीचता,कुटिलता,स्वार्थ से जुटे रहने की सेवा है। यह सिलसिला पूरी ईमानदारी से बदस्तूर चल रहा है। जनता लूटने, मूर्ख बनाने और चक्की में पिसे जाने के लिये होती है। उसे टैक्स भी देने हैं, वोट भी डालना है। बेहयाई के इस तथाकथित लोकतांत्रिक नाटक को रोज  में प्रत्यक्ष देखना और उसका प्रतिफल भोगना सामान्यजनों की नियती बन गई हैं।सर्वाघिक दुखद और विवशता तो यह है कि कहीं कोई उम्मिद की किरण विखा३ि नहीं देता?
केडी सिंह