झ्स तरह सफल हुआ आपरेशन लोटस
.कृब्ण देव ( केडी) सिंह
भोपाल। 24मार्च,2020/मध्यप्रदेश में भाजपा प्रमुख सूत्रघारों ने आपरेशन लोटस को शत प्रतिशत सफलता दिलाई और ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक 22विघायको के इस्तिफा स्वीकृत कराने व काग्रेस सरकार को रवानगी कराने में सफलता प्राप्त किया है।प्रदेश तीन सप्ताह तक चले उच्च तापमान प्रहशन का समापन सिंधिया सहित कांग्रेस के सभी 22वागी विघायकों के भाजपा की सदस्यता देकर पूर्ण कर लिया गया।लेकिन पुरे प्रहशन में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व तत्कालिन मुख्यमंत्री कमलनाथ बैने सिद्ध हुये ब उनके सिपहसलार अघकचरे मानस ।सबसे आश्चर्यजनक व विचित्र वात यह रही कि सत्ता से जुड़े सभी हल्कों में कमलनाथ सरकार की रवानगी से हर्ष देखा गया व भाजपा में केन्द्रीय मंत्री नरेंन्द्र सिंह तोमर,पूर्वमुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा पूर्वमंत्री डा० नरोत्तम मिश्रा ने सफलतापूर्वक केन्द्रीय भूमिका निभाते रहे।
कमलनाथ सरकार को गिराने का जो सियासी संग्राम लगभग तीन सप्ताह से चल रहा था उसकी अंतिम परिणति सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद 18 घंटे के भीतर शक्ति परीक्षण से पहले कमलनाथ के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने तथा ज्योंतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक 22विघायकों की भाजपा प्रवेश से हुआ। कमलनाथ ने इस समूचे घटनाक्रम के वे कारण गिनाये जो उनकी नजर से असली कारण थे। वास्तव में इस सत्ता पलट अभियान के वास्तविक सूत्रधारों में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा शामिल हैं। इसके साथ ही कर्नाटक में ले जाये गये 6 मंत्रियों और 16 विधायकों से किसी भी सूरत में कांग्रेसियों का संपर्क न हो पाये इसकी पुख्ता व्यवस्था करने में भाजपा विधायक अरिवन्द भदौरिया पूरी तरह मुस्तैद रहे। उन्हें इस बात का श्रेय जाता है कि यदि कोई भी विधायक वापस नहीं लौटा तो वह उनकी व्यूहरचना का ही नतीजा था। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के साथ ही यह साफ हो गया था कि नाथ सरकार की उल्टी गिनती चालू हो गयी। जिन विधायकों ने इस्तीफा दिया उनमें से एक-दो को छोड़कर सभी सिंधिया के भरोसे के थे और जिन पर सिंधिया को पूरा भरोसा था तथा सिंधिया के प्रति उनके मन में अगाध आस्था एवं अंध भक्तिभाव की भावना हिलोरें लेती रही है।
वै.से तो सत्ता पलट के इस खेल में कई अन्य लोगों का सहयोग भी रहा जिनमें केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वी.डी.शर्मा, महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव, पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह और रामपाल सिंह शामिल हैं। सिंधिया को यह भरोसा दिलाने में कि उनके भाजपा प्रवेश के बाद ग्वालियर-चम्बल संभाग के किसी भी भाजपा के स्थापित नेता से उनका टकराव नहीं होगा, नरेंद्र सिंह तोमर, डॉ. नरोत्तम मिश्रा और शिवराज सिंह चौहान सफल रहे। इसके साथ ही अंदरखाने चल रही उन चर्चाओं की अंतिम परिणित भी हुई जो सिंधिया को लेकर थी कि वे भाजपा में आ सकते हैं।
त्यागपत्र देने वालों तथा जो कांग्रेस में बचे हैं उनमें से भी कुछ लोगों ने यह राग अलापना चालू कर दिया कि यह सब पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के अहम् की लड़ाई का नतीजा है
मध्यप्रदेश कांग्रेस में चलनी के नाम से जाने जाने वाले कुख्यात मुकेश नायक के बयान ने कहा कि राजा और महाराजा के वर्चस्व की लड़ाई में नुकसान कांग्रेस का हुआ है। वे एक टीवी न्यूज चैनल के डिबेट में हिस्सा ले रहे थे। इस दौरान उन्होंने पूरी चर्चा में दिग्विजय सिंह को जमकर आड़े हाथों लिया। राजा और महाराजा दोनों राज्यसभा पहुंच लेकिन सीधे साधे कमलनाथ तिकड़म को समझने में चूक गए और कांग्रेस की सरकार ही चली गई । नायक ने कहा कि ये सीधे राजा और महाराजा के स्वतंत्र वर्चस्व की लड़ाई थी। इस विरोध और लड़ाई के कारण राजा भी राज्यसभा में चले गए और महाराजा भी राज्यसभा में चले गए। कांग्रेस के अंदर जो अंतर्विरोध था, उसके कारण भाजपा को हस्तक्षेप करने का मौका मिल गया। बेंगलुरू में मौजूद विधायक दिग्विजय सिंह से मिलना ही नहीं चाहते थे। इनके कारण ही तो वे भाजपा के पास गए हैं। कमलनाथ खुद यदि वहां जाते तो कुछ फायदा हो सकता था। इस पूरे एपिसोड में सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ा है। हमारी सरकार चली गई,आम कार्यकर्ता अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है। भाजपा को एक बार फिर मलाई खाने का मौका मिल गया और वे फिर कह रहे हैं यह सिर्फ दिग्विजय और सिंधिया की लड़ाई के कारण मिला है।।कांग्रेस के इस बहुविवादित प्रवक्ता ने तो एक टीवी चेनल पर खुलेआम पूर्व मुरन्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर पुरे मामले का ठिकरा फोड़ा।
जो भी हो फिलहाल तो यही कारण खुले तौर पर बताया जा रहा है कि सिंधिया धीरे-धीरे कांग्रेस की राजनीति में उपेक्षित होते जा रहे थे और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सत्ता साकेत में कमलनाथ के बाद सबसे शक्तिशाली बन रहे हैं। इस प्रकार की धारणा बनाकर सिंधिया के आत्म सम्मान से जोड़कर देखा जाने लगा, लेकिन यह भी एक हकीकत है कि कमलनाथ और सिंधिया दो चेहरे ऐसे थे जो विधानसभा चुनाव में आगे थे तो संगठनात्मक स्तर पर गुटों व धड़ों में बंटी कांग्रेस को एकजुट करने की असली भूमिका में दिग्विजय सिंह ही थे। हालांकि सरकार बनने में तीनों का ही योगदान था, ऐसे में यदि यह धारणा बन रही थी कि सिंधिया हाशिए पर जा रहे हैं तो उस धारणा को दूर करने के प्रयास न तो कांग्रेस हाईकमान ने किए और न ही प्रदेश स्तर पर कोई पहल हुई। सिंधिया के भाजपा में जाने का कारण केवल उपेक्षा और हाशिए पर जाना एकमात्र कारण नहीं माना जा सकता, कुछ दिन बाद और भी बातें साफ होंगी। जैसे-जैसे दिन आगे बढ़ेंगे कई बातें उजागर होंगी। सिंधिया समर्थक जोरशोर से मांग करते रहे कि सिंधिया को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाए, यदि केवल इतनी ही बात होती तो यह काम आसानी से हो जाता लेकिन सिंधिया स्वयं न तो प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते थे और न ही उपमुख्यमंत्री, उनकी चाहत थी कि ये पद तुलसीराम सिलावट को दिए जायें। शायद यही कारण था कि न तो यहां सरकार बनते ही राजस्थान फार्मूला अमल में आ सका और न ही प्रदेश अध्यक्ष की गुत्थी सुलझ पाई। जैसा कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कह रहे हैं कि सिंधिया उनके ऐसे मित्र थे जो उनसे कभी भी मिल सकते थे तो फिर हाईकमान को भी इसकी भनक संभवत: रही होगी कि सिंधिया भाजपा में जा सकते हैं। प्रदेश में जो राजनीतिक माहौल बना उसमें हाईकमान की चुप्पी भी इस बात का संकेत देती है कि उसके मन में कुछ न कुछ संदेह हो।
इन सब बातों के बीच जब सिंधिया ने कांग्रेस के वचनपत्र पूरा न करने की स्थिति पर सड़कों पर उतरने की बात कही और जिस तल्खी से मुख्यमंत्री कमलनाथ ने यह कहा कि उतरना है तो उतरें, उसने तेजी से उनके कदमों को भाजपा की ओर बढ़ाने में उत्प्रेरक का काम किया। जिस प्रकार तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारिकाप्रसाद मिश्र की कुछ तल्ख टिप्पणियों ने विजयराजे सिंधिया को आहत किया था और जिसकी परिणति मिश्रा की सरकार गिरने में हुई थी वैसा ही इतने अंतराल के बाद इस समय भी हुआ। दोनों में एक बात समान है कि कांग्रेस को दलबदल के कारण ही अपनी सत्ता दोनों बार गंवाना पड़ी।दरअसल कमलनाथ स्वंम अभी तक हवाई व व्यवसायिक नेता की छवि से उबर नहीं पाये है ।यही कारण है कि सिंधिया परिवार की परम्परा और कार्यप्रणाली को ठीक से समक्ष नहीं पाये ।सत्ता और धनबल का घमंड़ उन्हें जमीनी राजनीति का कच्चा खिलाड़ी सिद्ध कर दिया जबकि भाजपा केसूत्रघार पक्के व सिद्धहस्थ रणनीतिकार।
कमलनाथ ने जहां अपने पन्द्रह महीनों में किए गए जनहितैषी 20 फैसलों का जिक्र किया तो वहीं इतनी ही बार यह भी दोहराया कि भाजपा को यह सब रास नहीं आया। कमलनाथ ने जो कुछ कहा उसका केंद्रीय स्वर यही था कि वे अपने 15 माह के कार्यकाल को भाजपा के 15 साल के शासनकाल से बेहतर मानते हैं। 15 माह बनाम 15 साल का जो नारा उन्होंने उछाला है उसमें उनके आत्मविश्वास में कितना दम है यह तो उपचुनावों के नतीजों से ही पता चलेगा कि प्रदेश की जनता को 15 माह और 15 साल में से क्या अधिक पसंद है। कमलनाथ को भरोसा है कि फिर से प्रदेश में कांग्रेस की वापसी होगी और कांग्रेस विधायकों का हौसला बढ़ाने के लिए उन्होंने कहा कि निराश होने की आवश्यकता नहीं, मैंने कई जीतते हुओं को हारते हुए देखा है और मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि फिर लौटेंगे और मजबूती से लौटेंगे।
काग्रेस का ट्वीट
प्रदेश कांग्रेस ने एक ट्वीट करते हुए दावा किया और कहा कि इस ट्वीट को संभाल कर रखना। “पन्द्रह अगस्त 2020 को कमलनाथ मुख्यमंत्री के तौर पर ध्वजारोहण करेंगे और परेड की सलामी लेंगे। यह बेहद अल्प विश्राम है।“ शायद इस भरोसे का आधार है कि कमलनाथ मानते हैं कि एक तथाकथित जनता द्वारा नकारे गये महत्वाकांक्षी, सत्तालोलुप “महाराज“ और उनके द्वारा प्रोत्साहित 22 लोभियों के साथ भाजपा ने जो लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या की है उसकी सच्चाई थोड़े ही समय में सबसे सामने आ जायेगी और जनता इनको कभी माफ नहीं करेगी। प्रदेश में पहली बार एक साथ कम से कम 24 विधानसभा उपचुनाव होना है। इघर जिन सिंधिया समर्थक 6 मंत्री और 16 विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दिया था उन्होने शनिवार को नई दिल्ली में भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली और भोपाल आकर वे सभी भाजपा परिवार के प्रमुख व महत्वपूर्ण नेताओं से गलवाहियाँ मिलन समारोह के भागीदार बन चुके है ।
*बुघवार बहुमाध्यम समूह
झ्स तरह सफल हुआ आपरेशन लोटस
• KRISHAN DEO SINGH