मध्यप्रदेश की राजनीति में भूचाल !

मध्यप्रदेश की राजनीति में भूचाल !


            कृष्ण देव सिंह
               मध्य प्रदेश में सरकार गिराने-बचाने के लिए राजनीतिक जोड़तोड़ अपने उच्चतम स्तर पर है।  क्योंकि सत्तादल और विपक्ष के विधायकों की पाला बदलने की घटनाओं ने राजनीतिक भूचाल ला दिया है।पुछने वाले जानना चाहते है कि यह सरकार भी ऐसा कौन सा कार्य नहीं कर रही है जो भाजपा सरकार कर रही थी या यह सरकार ऐसा. कौनसा नेक काम कर रही है जो भाजपा सरकार नहीं कर रही थी? कुछ अपवादों को छोडकर ज्यादातर मंत्री-विधायक पुरी तन्मयता से जुटे हैं। उनके बंगलों के नवीनीकरण और साज-सज्जा पर करोडों रुपए खर्च हो रहे हैं।   जानकारों के अनुसार सरकार के मुखिया  पुरानी सरकार के ढेर सारे बडे-बडे घोटालों की फाइलों को दबाए बैठे हैं।नौकरशाही भी पहले की तरह निरंकुश होकर काम कर रही है। जातीय और सांप्रदायिक मानसिकता के भ्रष्ट और अय्याश अफसर पहले की तरह अभी भी महत्वपूर्ण पदों पर तैनात है।गांवों में दलितों-आदिवासियों का उत्पीडन पहले की तरह जारी है।
          कमलनाथ सरकार दूसरी की बैसाखी से चल रही है। एक बार फिर उसके हाथ से बैसाखी छीन लेने  की सियासी चाल भाजपा ने चली । नये सियासी घटनाक्रम में कांग्रेस के विधायकों को एक होटल में रखा गया 
। जिसमें कुछ विधायक लौट आये हैं।कांग्रेस के अंदर चल रहे सियासी द्वंद का ही यह नतीजा है। वहीं  संभावना है कि सदन में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान कांग्रेस के विधायक सरकार के खिलाफ वोट डाल सकते हैं। लेकिन विंध्य क्षेत्र के दो विधायक बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा की बुलाई बैठक में नहीं आये। इससे पंजा में छटपटाहट कम है। लेकिन सत्ता जाने का भय फिर भी बना हुआ है।
              पिछले कुछ दिनों की घटनाओं पर नजर डालें तो लगता है कि  कुछ गड़बड़ जरूर है। कमलनाथ जैसे संजीदा मुख्यमंत्री के बावजूद मंत्री से लेकर विधायक, कार्यकर्ता और सहयोगी दल भी नाराज चल रहे हैं। गाहे-बगाहे उनका दर्द छलक भी जाता है। आईफा के खर्चीले आयोजन से लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया, सज्जन सिंह वर्मा, अजय सिंह राहुल तक के बयान बताते हैं कि सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। एक मंत्री ने तो ग्वालियर में काम न करने वाले अधिकारी के पैर छूकर अपनी पीड़ा को बताने की लगता है सारी हदें ही तोड़ दीं। प्रदेश की सरकार और विपक्ष के जो हालात हैं उसको लेकर सबको लगता है कि कुछ तो गड़बड़ है। पिछले हफ्ते ही राज्यपाल की दिल्ली यात्रा होती है और उसके कुछ दिन बाद पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान को भाजपा हाईकमान दिल्ली बुलाता है। इसमें खास बात यह है कि चौहान को बुखार था, तबीयत खराब होने के बावजूद उन्हें लेने के लिए विशेष विमान भोपाल आता है। राज्यपाल का जाना और फिर चौहान का दिल्ली बुलौआ भी बताता है कि कोई खिचड़ी जरूर पक रही है। इसके पीछे लोकसभा चुनाव के पहले मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबी लोगों पर इनकम टैक्स के छापे और उसकी रिपोर्टों को भी जोड़कर देखा जा रहा है। जानकार कहते हैं कि इसमें जो सूत्र मिले हैं वो अगस्ता हैलिकॉप्टर खरीदी के मामले में आर्थिक गड़बड़ियों को लेकर कांग्रेस के बड़े नेताओं को मुश्किल में डाल सकते हैं। आशंका तो यहां तक है कि जांच के पुख्ता सबूत कांग्रेस के किसी बड़े नेता की गिरफ्तारी तक पहुंच सकते हैं। आयकर छापे के दौरान ओएसडी प्रवीण कक्कड़ और आरके मिगलानी के पास से मिले दस्तावेजों की भाजपा खासतौर से दिल्ली के नेताओं में खूब चर्चा है। इस मुद्दे पर कांग्रेस में गहरी पैठ रखने वाले दिल्ली से जुड़े एक पत्रकार भी कांग्रेस हाईकमान के निकट नेता के निकट भविष्य में फंसने की आशंका जता रहे हैं। इसके अलावा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी दंगों की एक फाइल दोबारा खोलने को भी मध्यप्रदेश सरकार के भविष्य से जोड़कर देखा जा रहा है। इसमें मुख्यमंत्री कमलनाथ का भी जिक्र है। इन तमाम बातों को लेकर आयकर के साथ खुफिया एजेंसियां भी गंभीरता से काम कर रही हैं। इसीलिए राज्यपाल लालजी टंडन और शिवराज सिंह की दिल्ली यात्रा को जानकार हल्के में नहीं ले रहे हैं। 
          प्रदेश भाजपा के नए अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा के आक्रामक तेवर भी कमलनाथ सरकार के भविष्य को लेकर संकेत दे रहे हैं। ऐसे घटनाक्रमों के बीच भाजपा नेताओं ने अपने किचन कैबिनेट के लोगों से कहा कि वो नई जिम्मेदारियों के लिए तैयार रहें। हालांकि हरकोई जानता है कि सत्ता में बदलाव ऐलान करके नहीं होता। गुपचुप, घात-प्रतिघात की तैयारी होती है और फिर अचानक पाला बदल का दौर शुरू हो जाता है। प्रदेश में राज्यसभा सदस्यों के चुनाव के आसपास कुछ गंभीर घटनाक्रम नजर आ सकते हैं। भाजपा प्रदेश में तख्तापलट की तैयारी में लगी है और ऐसे में कांग्रेस का असंतोष उसे और उत्साहित करता है। जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस के वचन पूरे न होने पर सड़क पर उतरने का ऐलान, सज्जन सिंह वर्मा का यह कहना कि सीएम की किचन कैबिनेट में अफसर हैं वहां कोई मंत्री, विधायक या जनप्रतिनिधि नहीं है, तबादलों में भी मंत्रियों का दखल नहीं। ऐसे में काम नहीं करने वाले अफसरों में से ग्वालियर में मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने तो पैर छूकर पूरी सरकार को ही शर्मिंदगी में डाल दिया। बाद में उनकी दलील है कि वो राम के अनुयायी हैं। जैसा उन्होंने समुद्र से रास्ता देने के िलए तीन दिन विनती की थी, उसके बाद उसे सुखाने के लिए तीर निकला था। उसी तरह पैर छूकर उन्होंने कोई गलती नहीं की है। भाजपा इसे कमलनाथ सरकार का सर्कस बता रही है।
       पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का यह कहना कि वो तो बेरोजगारों केलिए रोजगार और किसानों के लिए सिंचाई आदि से लेकर काफी काम करना चाहते थे लेकिन सरकार में कुछ नहीं कर पा रहे हैं। इस मामले में जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने सरकार का बचाव करने की रस्म अदा की है। उनका कहना है कि ऐसा कोई मंत्री और अफसर नहीं है जो अजय सिंह के बताए गए काम को न करे। सबको याद होगा कि कुछ महीने पहले महिला बाल विकास मंत्री इमरती देवी ने एक अधिकारी के तबादले संबंधी आदेश को निकालने में लाचारी प्रकट करते हुए कहा था कि इसमें तो पैसे खर्च होंगे, ऐसा करते हैं निलंबित किए देते हैं। सहयोगी दलों में बसपा की विधायक रामबाई भ्रष्ट अधिकारियोें से पंचायत कर रिश्वत वापसी कराने के साथ  चर्चा में आई थीं। उन्होंने भी कहा कि कमलनाथ जैसे अनुभवी नेता के बाद भी अधिकारी जनप्रतिनिधि और जनकल्याण की अनदेखी कर रहे हैं। आज हालात यह है कि कांग्रेस के नेता फेसबुक पर लिखते हैं कि कमलनाथ जी आपके मंत्री सच्चे हैं, लेकिन कार्यकर्ताओं को पहचानने में कच्चे हैं। ऐसे ही कांग्रेस के एक नेता कांग्रेस कार्यालय में लंबे समय बाद जब आते हैं  अब तक आप कहां थे?         
  हलांकि काग्रेस और समर्थक विघायर्को कोकथित स्प से तोड़ने की भाजपा की पहली कोशिशको विफल कर दिया गया है लेकिन मध्यप्रदेश में भाजपा का ऑपरेशन कमल  के वंद होने की को३ि खबर नहीं है।दिल्ली के पास मनेसर इलाके के एक होटल की  जैसी.घटना फिर नहीं होगी,इसकी कोई गांरंटी नही है।हलाकि कि होटल की घटना से साफ हो गया है कि कमलनाथ सरकार को सुरक्षित ररवने की जिम्मेदारी पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और उनके सर्मथकों ने उठा रखी है और यदि भाजपा तख्तापलट करने में सफल हो जाती है तो ठिकरा भी उन्हीं के शिर  पर फुटेगा।लेकिन प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी दीपक बाबरिया जरूर पार्टी के अन्दर उभर रही चुनौतियां का  हल तलाश रहे हैं। उनके पास कुछ नुस्खे भी हैं जो उन्होंने संगठन और सत्ता को बताए भी। इनमें खास यह है कि जो चुनाव लड़कर हार चुके हैं उन्हें संगठन और सरकार में जिम्मेदारी देने की बजाए ऐसे लोगों को काम सौंपा जाए जो चुनाव में न तो टिकट पा सके हैं और न संगठन में अपने हाथ आजमा सके हैं।लेकिन उनके नुक्से कितने सफल होंगे यह झ्स वात पर निर्भर करता है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ ,पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और उनके समर्थक आगे की क्या रणनीति अपनाते है ।वैसेआने वाले दिनों में हो सकता है कि बाबरिया के फार्मूले पर अमल दिखाई दे या फिर प्रभारी पद से उनकी विदाई भी हो जाए?
*बुघवार बहुमाध्यम समुह