<राजनीति भावना में नहीं  दिमाग से की जाती है

राजनीति भावना में नहीं 
दिमाग से की जाती है


कृष्ण देव (केड़ी)सिंह
           मैं ब्राम्हण भाईयों/मित्रो / दुश्मनों से इसलिए खुश रहता हूँ क्योंकि वो बुद्धिमान/चतुर/ कुटिल / योजनाकार होते हैं। उनमे बहुत एकता होती है वो 3% होकर भी उसी एकता /एकजुटता / दुरदशिलता / मेहनत की वजह से हर क्षेत्र में उनका कब्जा है ।चाहे वो राजनीति हो/,नौकरी हो/मीडिया/ न्यायपालिका हो ।घर्म / मंदिर / कर्मकाण्ड पर तो उनका एक छत्र कब्जा है ही। सिर्फ एकता / कुटिलता/ राजनीति / रणनीति की दम  पर ब्रामहण समाज न.केवल.ओबीसी,एसटी,एससी,मुसलमान पर  राज करते है  वाल्कि  अकेला होने पर भी पुरी दमदारी से अपना पक्ष रखते हैं । अपने विरोघियों/ प्रतिद्वन्दियों को ब्राम्मण विरोधी घोषित कर सम्पूर्ण जाति को उसके विरूद्ध खड़ा कर देते हैं ।
     उनकी बिरादरी के नेता कही भी किसी भी पार्टी से किसी भी पार्टी में चले जाये पर वो उसको गाली नही देते हैं न फर्जी का ज्ञान पेलते है। सिर्फ इतना ही कहते है। हमारा नेता जहाँ रहे हमे कोई दिक्कत नही है। बस वो सत्ता में रहे, पर ये कुर्मी जैसे पिछडी जाति है कि उन्हे ज्यादा कुछ सोचना समक्षना ही नही हैं।क्षणिक और तात्कालिक लाभ के लिए  बेवकूफ और हरामखोर बन जाते है ।अक्सर   वे नेता. /व्यक्ति/ दल  के अंधभक्त होते है न कि अपनी बिरादरी के ।इससे ज्यादा अब क्या कहें हम?
    हार्दिक पटेल कांग्रेस में गए तो कुछ  कुर्मी  उनको देशद्रोही बोलने लगे ।अब सिंधिया जी बीजेपी में गए तो कुछ उनको देशद्रोही बोलने लगे।  कभी तो पार्टी बाजी छोड़कर सिर्फ अपने समाज के नेता के भले की बात कर लिया करें।सिंधिया जी कांग्रेस छोड़ कर दूसरी पार्टी में गए तो कुछ कुर्मियों की  फट रही है जैसे कि
 सिंधिया जी ने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो।
     सरकार बनी सिंधिया जी के कारण और कांग्रेस ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को बना दिया ।तो जब उनके मानसम्मान के. साथ पार्टी खेल सकती है ।तो सिंधिया जी क्यों नही कर सकते ।वैसे भी कांग्रेस में उनके लिएं अवसर / स्थान कमी हो गई थी।क्योकि उन्होंने मैहर (सतना) के उपचुनाव में ही भरी सभा में अपने  आप को कुर्मी जातिवर्ग के होने की घोषणा कर अपनी मंशा का उदघोष कर दिया था।परिणाम ये तो होना ही था ' /  वैसेभी राजनीति हमेसा दिमाग से की जाती है दिल से नही?
*बुघवार बहुमाध्यम समुह