सर्वोच्य न्यायलय की शरण में  मध्यप्रदेश की सियासत

-     सर्वोच्य न्यायलय की शरण 
      में  मध्यप्रदेश की सियासत


कृष्णदेव(केड़ी) सिंह
 भोपाल।18मार्च2020.मध्यप्रदेश जारी उठापटक अब माननीय सर्वोच्य न्यायलय के कार्यक्षेत्र के अधीन हो गया है। अब भाजपा,कांगेस सरकार,वागी विघायकों के  परिजन व वागी विघायकों ने सर्वोच्च न्यायलय की शरण ली है । न्यायलय के निर्णय व. रूख के वाद की सियासत की तैयारी दोनों ही तरफ अन्दरखाने हो रही है।इनसब के बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने पर कयासों का दौर जारी है। उन्होंने ऐसा करना पहले से तय कर रखा था या इसके लिए वे मजबूर हुए। जानकार दूसरी बात को ज्यादा तवज्जो देते हैं। 
          कांग्रेस को चंबल-ग्वालियर अंचल में कांग्रेस को सबसे ज्यादा सफलता इसलिए मिली, क्योंकि लोगों को उम्मीद थी, चुनाव बाद सिंधिया मुख्यमंत्री बनेंगे। वे मुख्यमंत्री नहीं बने। पाटी हाईकमान के निर्णय को शिरोधार्य कर उन्होंने कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनने दिया। अब जवाबदारी कमलनाथ की थी।  इधर सिंधिया किसी न किसी तरह अपनी नाराजगी व्यक्त करते रहे। उन्होंने अतिथि विद्वानों व शिक्षकों के लिए सड़क पर उतरने की बात कही तो मुख्यमंत्री ने कह दिया ‘तो उतर जाएं’।यह ‘जले में नमक छिड़कने’ जैसा था। पार्टी ने सिंधिया का नाम राज्यसभा के लिए घोषित करने में भी विलंब किया। मैसेज गया, सिंधिया के राज्यसभा जाने की राह में भी रोड़े अटकाए जा रहे थे। कमलनाथ मुख्यमंत्री हैं और दिग्विजय सिंह सरकार चला रहे हैं। सिंधिया को किनारे किया जा रहा है। ऐसे में यही लगता है कि सिंधिया ने पार्टी छोड़ी नहीं, उन्हें बाहर जाने के लिए मजबूर किया  गया।काग्रेसपक्ष का कहना है कि उन्हें पार्टी ने भरपुर सम्मान व अवसर दिया गया।
                          सरकार पर संकट
 ज्योतिरादित्य समर्थक 22 विधायकों के बेंगलुरु में डेरा डालकर इस्तीफा भेजने के बाद से कमलनाथ सरकार को संकट में और कुछ दिन का मेहमान माना जा रहा है। विशेषज्ञ इस राय से इत्तफाक नहीं रखते।राज्यपाल द्वारा फ्लोर टेस्ट के निर्देश देने के बावजूद मुख्यमंत्री कमलनाथ, दिग्विजय सिंह सहित सरकार के सभी प्रबंधक दावा कर रहे हैं कि सरकार बहुमत में है। लेकिन क्ररोना नामक महामारी का सहारा लेकर सदन में विश्वास मत प्राप्त नही किया गया । महामहिम राज्यपाल ने कड़ा रूख अपनाते हुए 17मार्च को मुख्यमंत्री को सदन में विश्वासमत प्राप्त करने का निर्देश दिया लेकिन तब तक मामला सर्वोच्य न्यायलय में सुनवाई शुरु हो गया। दरअसल, दोनों दलों को अपने विधायकों के टूटने का खतरा है। कांग्रेस नेता कहते हैं कि जिन बागियों को बाहर रखा गया है, उनमें से अधिकांश कांग्रेस के साथ हैं। मुख्यमंत्री कमलनाथ राज्यपाल और केंद्रीय गृह मंत्री को पत्र लिखकर केंद्रीय सुरक्षा के साथ बागी विधायकों को वापस प्रदेश भेजने की मांग किया हैं।
                 भाजपा में अन्दरूणी विरोध
           सिंधिया के भाजपा जाने के बाद से ही यह कहने वाले ज्यादा हैं कि निर्णय भाजपा के कई प्रमुख नेताओं को महंगा साबित पड़ सकता है। जयभान सिंह पवैया, प्रभात झा जैसे नेता सिंधिया की खिलाफत के अगुवा रहे हैं। पवैया के साथ रुस्मत सिंह, लाल सिंह आर्य सहित कई नेता सिंधिया समर्थकों से विधानसभा का चुनाव हारे हैं। बागी विधायकों के भाजपा में आने के बाद इनका फिर टिकट पक्का है। ऐसे में पवैया, लाल सिंह व रुस्तम सिंह जैसे नेता क्या करेंगे। दूसरा, शिवराज सिंह चौहान तक सिंधिया खानदान को अंग्रेजों से मिला हुआ और गद्दार कहते रहे हैं। फिर से जोश में सिंधिया को विभीषण बोलकर उन्होंने अपनी मंशा जता दी है। सबसे महत्वपूर्ण भाजपा में जाने के बाद सिंधिया का पहला भोपाल दौरा हुआ। वे भाजपा कार्यालय गए और शिवराज-नरोत्तम के घर खाना खाया। केंद्रीय मंत्री नरेद्र सिंह तोमर भी साथ रहे। हर जगह सिंधिया ही हीरो थे। नारे सिर्फ उनके समर्थन में लगे।  हालात ये थे कि सभी नेता सिंधिया के पिछलग्गू दिखाई पड़े। 
                      कांग्रेस के लिए संजीवनी
          कमलनाथ सरकार का अस्तित्व बागी विधायकों के रुख पर टिका है। इनमें 10 से ज्यादा पहली बार विधायक बने हैं। कांग्रेस की उम्मीद का आधार है, उप चुनाव में पराजय का डर। अभी सरकार में ठीक से जम भी नहीं पाए और विधायकी पर खतरा आ गया।  यदि विधायकी गई तो फिर जीतेंगे ,गारंटी नहीं। उन्हें अहसास है कि कांग्रेसियों का समर्थन उन्हें मिलेगा नहीं और भाजपा के जिन नेताओं का टिकट कटेगा वे भितरघात करने से नहीं चूकेंगे। ऐसे में खतरा ही खतरा है। लिहाजा, कई. विधायकों का मन डांवाडोल हो सकता है। इस आधार पर ही कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि अधिकांश विधायक उनके संपर्क में हैं। उन्हें सामने आने दीजिए वे कांग्रेस के साथ होंगे। सिंधिया के कट्टर समर्थक रहे पूर्व मंत्री रामनिवास रावत ने भी कांग्रेस में रहने की घोषणा करते हुए कहा कि उनकी लगभग एक दर्जन बागी विधायकों से बात हुई है।  भरोसा दिलाया जा रहा है कि उप चुनाव में आपके जीत की गारंटी नहीं है लेकिन हम अभी मंत्री बनाने तैयार हैं।उप चुनाव में हार का डर कांग्रेस सरकार के लिए संजीवनी बन सकता है
                      मंत्रियों का इस्तीफा स्वीकृत
- सियासी घमासान के बीच कांग्रेस-भाजपा में शह-मात का खेल तेज है। कांग्रेस के 22 बागी विधायकों ने इस्तीफे दिए थे लेकिन स्पीकर ने सिर्फ 6 के स्वीकार किए। स्पीकर एनपी प्रजापति का कहना है कि ये सभी मंत्री थे। इन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जा चुका है। इन्हें दो दिन अपनी बात रखने का अवसर दिया गया लेकिन ये नहीं आए। इसलिए इनका इस्तीफा स्वीकार किया जाता है। भाजपा ने स्पीकर के निर्णय पर सवाल उठाए हैं। नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव का कहना है कि जब 22 ने इस्तीफे दिए थे तो सिर्फ 6 के क्यों स्वीकार किए? 
        बदलते घटनाक्रम
प्रदेश का सियासी घटनाक्रम पल- पल बदलने से  मामले  रोमांच बना हुआ है। भाजपा की मांग पर राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर 16 मार्च को उनके अभिभाषण के तत्काल बाद फ्लोर टेस्ट करने का निर्देश दिए। इसे मुख्यमंत्री ने जवाबी पत्र लिखकर ठुकरा दिया। राज्यपाल ने फिर पत्र लिख कर निर्देश दे दिए कि 17 मार्च को हरहाल में फ्लोर टेस्ट कर बहुमत साबित करें वर्ना माना जाएगा कि सरकार अल्पमत में आ गई
राज्यपाल के पत्र की भाषा से साफ है कि वे प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने का आधार तैयार कर रहे हैं। मुख्यमंत्री को वे अब तक इस संदर्भ में तीन पत्र लिख चुके हैं। सभी भाजपा की मांग पर आधारित हैं। मुख्यमंत्री ने जो मांग राज्यपाल के सामने रखीं, उनका किसी पत्र में उल्लेख नहीं है,लेकिन उसे महत्व नहीं दिया गया। केंद्र सरकार द्वारा जारी एडवायजरी और अन्य राज्यों की विधानसभा का उल्लेख कर कोरोना को आधार बनाकर स्पीकर ने विधानसभा 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी। इसी दिन राज्यसभा की तीन सीटों के लिए मतदान होना है। राज्यपाल के नए निर्देश से गंभीर स्थिति पैदा हो गई है। उन्होंने कहा है कि 17 को फ्लोर टेस्ट हो और 26 तक सदन की कार्रवाई ही स्थगित की जा चुकी है। ऐसे में क्या होता है, इस पर सबकी नजर है।
                    मामला सर्वोच्य न्यायलय में
16मार्च की फ्लोर टेस्ट नही होने पर भाजपा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। न्यायलय ने सभी पक्षों को नोटिस त्रार? कर दी है। अब सवकी नजरें न्यायलय पर टीक गई है। इधर राज्यपाल के दूसरे पत्र को लेकर कांग्रेस भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। साफ है,भाजपा और कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट की शरण में हैं और दूसरी तरफ राज्यपाल के पत्रों से प्रदेश में राष्ट्रपति शासन का आधार तैयार हो रहा है। मुख्यमंत्री इस बात पर अड़े हैं कि जब तक उनके बेंगलुरु में बंधक विधायक वापस नहीं आते तब तक फ्लोर टेस्ट का कोई औचित्य नहीं है।अर्थात बहुत कुछ कोर्ट के रुख पर टिका है।
                शह और मात की सियासत
 विधानसभा अध्यक्ष ने अपने विशेषाधिकार का उपयोग करते हुए सदन की कार्रवाई 26 मार्च तक स्थगित कर दी है। लेकिन राज्यपाल अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर राज्यपाल के आदेश की अवहेलना का हवाला देते हुए प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा कर सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो दोनों दलों की सियासत धरी रह जाएगी। हालांकि चूंकि दोनों दल सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं, इसलिए राज्यपाल कुछ इंतजार कर सकते हैं लेकिन आज उन्होंने ऐसा नहीं किया। अलबत्ता, भाजपा विधायकों के सामने उन्होंने यह तक कह दिया कि मैंने कोई निर्देश दिया है तो इसका पालन कराना भी मुझे आता है।विशेषज्ञों की राय  अलग-अलग है। लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य ने कहा है कि राज्यपाल के कहने पर मुख्यमंत्री को सदन में फ्लोर टेस्ट कराना ही पड़ता है। जब राज्यपाल को लगता है कि सरकार अलपमत में आ गई है, तो वह फ्लोर टेस्ट कराने के लिए कह सकते हैं। ऐसे मसलों में सरकार को राज्यपाल की बात माननी चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट के लिए कहा लेकिन उसे नहीं माना गया है, यह परंपरा नहीं है। दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व पीएस देवेंद्र वर्मा का कहना है कि राज्यपाल को ऐसे अधिकार नहीं है, जैसे पत्र वे लिख रहे हैं। वे तय नहीं कर सकते कि सरकार अल्पमत में आ गई है और जब तक सरकार अल्पमत में नहीं है तब तक वे फ्लोर टेस्ट का निर्देश नहीं दे सकते। ऐसे में प्रदेश में संवैधानिक संकट की स्थिति बन रहीहै।
             कांग्रेस से बगावत करने वाले 22 विधायकों में से 6 के इस्तीफे स्वीकार हो चुके हैं,उन्हें अयोग्य घोषित नहीं किया गया। इसलिए उप चुनाव में उनके टिकट लगभग पक्के हैं। शेष बचे 16 बागी विधायकों के सामने ‘असमंजश हैं। कांग्रेस की मंशा इनके इस्तीफे स्वीकार न करने की है। सरकार चाहती है कि विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाए और उस पर फ्लोर टेस्ट हो। बागी विधायक पार्टी व्हिप का उल्लंघन करें ताकि दलबदल कानून के तहत उनकी सदस्यता ही न जाए, वे चुनाव लड़ने से भी अयोग्य हो जाएं। यदि अयोग्य हुए तो उप चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे। इसी कारण वे इस्तीफा स्वीकार किए जाने पर अड़े हैं। हालात यह हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया का राज्यसभा जाना तय हो गया है। वे केंद्र में मंत्री भी बन जाएंगे लेकिन उनके समर्थक विधायक उलझ गए हैं।
             सरकार बनाने की चिंता
प्रदेश में जो सियासी घटनाक्रम चल रहा है, उसमें सिंधिया के राज्यसभा जाने से भले भाजपा का एक नेता रह गया लेकिन भाजपा के पास खोने के लिए कुछ ज्यादा  है। उसकी चिंता यह है कि कांग्रेस सरकार गिरे और भाजपा की बने। इसके लिए सिंधिया समर्थक 16 बागी विधायकों का सरकार के खिलाफ जाना जरूरी है। यदि किसी वजह से सरकार नहीं गिरती तब भी उसे कोई नुकसान नहीं। भाजपा के फायदे में तो यह है कि 16 बागी विधायक कांग्रेस के व्हिप का उल्लंघन करें और अयोग्य करार दिए जाएं।. ऐसा होने पर भाजपा को उपचुनाव में अपने उम्मीदवार खड़े करने की राह मिल जाएगी। कमलनाथ ने ताल ठोंक रखी है कि यदि विपक्ष में हिम्मत है तो अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए। अविश्वास प्रस्ताव आने पर यदि कमलनाथ सरकार चली गई, तब सिंधिया समर्थक कांग्रेस के बागी भी कहीं के नहीं रहेंगे।


कांग्रेस-भाजपा के नेताओं को मालूम है कि कौन क्या सोच रहा है। इसी कारण राजनीति की बिसात पर ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की तर्ज पर चालें चली जा रही हैं। मामला चूंकि सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है, इसलिए पत्रों व चालों के जरिए वहां के लिए दस्तावेज तैयार किया जा रहे हैं। राज्यपाल ने अपने पत्र इसे ध्यान में रखकर लिखे और मुख्यमंत्री एवं स्पीकर ने राज्यपाल को इस रणनीति के तहत ही जवाब दिए। भाजपा और कांग्रेस सरकार सुप्रीम कोर्ट गए ही, बागी विधायकों के कुछ परिजन भी कोर्ट की शरण में चले गए। बागी विधायकों ने भी सुप्रीम कोर्ट याचिका भेजकर इस्तीफे स्वीकार करने की मांग कर डाली। लिहाजा, गेंद अब पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट के पाले में है।आज ।18मार्च बुधवार को होने वाली सुनवाई पर सबकी नजर हैकि न्यायलय का रूख क्या रहता है?
*बुघवार बहुमाध्यम समुह
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