ख़ाना= खजाना

ख़ाना= खजाना
जब घर में हरी सब्जी न हो तो क्या बनाए ? एक गृहणी के लिए बड़ी समस्या हो जाती है ।हमारे छत्तीसगढ़ में इसके बहुत से विकल्प हैं ।
हमारी दादी ,माँ शुष्क मौसम के लिए पहले से ही सब्जियों का इंतजाम करके रखती थीं । शीत ऋतु में मिलने वाली बहुत से स्वादिष्ट सब्जियों को बड़ी मात्रा में सूखाकर पैक कर रखती थीं ।ताकि लम्बे समय तक सुरक्षित रहे । ध्यान रहे इन सब्जियों को सुरक्षित रखने के लिए किसी प्रकार का केमिकल या प्रिजर्वेटिव प्रयोग नहीं करती थीं । बस सब्जी को अच्छी तरह साफ कर तेज धूप में सुखाती फिर डिब्बे में अच्छी तरह बंद कर देती थीं। ऊपर से डिब्बे का मुँह कपड़े से बंद कर देती थी ।यकीन मानिए ये सूखी सब्जियाँ लम्बे समय तक सुरक्षित रहतीं । स्वाद में भी कोई कमी नहीं । कुछ का तो स्वाद और बढ़ जाता था ।इनको सुख्सी या खोयला  कहते हैं । 
सुख्सी सब्जियां -  भाटा खोयला , सेमी ,बरबट्टी , चुरचुटिया ,करेला , भिंडी , पताल , मुनगा ,मिर्ची ।
विभिन्न प्रकार की भाजियां  --  मेथी भाजी ,चना भाजी , लाखड़ी आदि ।
इसी प्रकार विभिन्न प्रकार की बड़ियाँ ,पापड़ बिजौरी करौरी आदि भी बनाती थीं जो ग्रीष्म और बरसात ऋतु में विशेष बनाया जाता रहा है । 
अब बारह माह हरी  सब्जी मिलने से इसका चलन बन्द हो गया । दूसरा आधुनिकता ने भी इस पंरपरा को समाप्त करने का काम किया ।
कुछ समय पहले मैंने एक बड़े दुकान पर छोटे छोटे पैकेट देखे । ध्यान से देखने पर समझ आया अरे ये तो करेला ,चुरचुटिया है ।मुश्किल से उन पैकेटों में 7-8पीस रहे होंगें ।मैंने नाम पूछा तो दुकान वाले ने अंग्रेजी में कुछ बताया जो मुझे याद नहीं है । कीमत पूछी तो 10-12रु कहा । 
मेरे मुँह से निकला हाय !!!!इतना महंगा । 
सोचने लगी मेरी माँ और दादी तो इसे घर पर बनाती थी ।तब हम पढ़े लिखे लोग नाक भौ सिकोड़ा करते थे ।
वैसे मुझे गर्मियों में जब गांव जाते थे तो दादी की बनायी ये सुख्सी सब्जियां बड़ी स्वादिष्ट लगती थी ।
आज जब लॉक डाउन है तो मुझे इनकी बहुत याद आ रही है  ।
हरी सब्जी के और भी बहुत से विकल्प है यहाँ दालों से विभिन्न प्रकार की खट्टे ,मसालेदार सब्जी बनाने की परंपरा है  । 
कई प्रकार की कढ़ी -डुबकी ,बूंदी , पन बुंदिया ,,भजिया कढ़ी , बरा कढ़ी ,ईड़हर कढ़ी , चीला कढ़ी ,बटकर , बफ़ौरी , जिमिकन्दा , आदि ।वैसे और भी ।
मसालेदार में - घुघरी ,  मसरी ,रसायन कतरा , बटिया ,मिंजा , चनादर , चना सूखा , मूंग दार , ईड़हर आदि ।
बड़ियाँ - रखिया बड़ी , तुमा बड़ी ,कुम्हड़ा बड़ी , मेथी बड़ी ,मूली बड़ी , गोभी बड़ी , अदौरी बड़ी , कंसुइया बड़ी आदि ।
बिजौरी , करौरी , लाई बड़ी , विभिन्न प्रकार के पापड़ ।
वास्तव में हमारी परंपरा हर परिस्थिति का सामना करने में हमें सक्षम बनाती है । परंतु आधुनिकता के चक्कर में हमारी ये सुंदर परम्पराएं विलुप्त हो रही हैं ।
जब मुसीबत की घड़ी होती है तो फिर ये याद आते हैं ।


आओ डुबकी_कढ़ी बनाएं ---
आवश्यक सामग्री - 1पाव उड़द दाल -1पाव , दही -1पाव 
थोड़ा सा खाने का तेल , हरी मिर्च ,हल्दी , नमक , हरी धनिया , मेथी पाउडर  ,जीरा , मेथी दाना ,लहसुन -तीन चार कली , मीठा नीम पत्ती ,टमाटर -2 ।
5-7व्यक्तियों के लिए ।
विधि - सबसे पहले उड़द दाल को साफ कर चार पांच घण्टे भीगने दें । (सुबह बनाना है तो रात में भीगा दें ,रात में बनाना है तो सुबह भीगा दें । )भीगे हुए दाल को पीस लें ।
दही को मथ कर मही(मठा) बना लें ।
हरी मिर्च ,धनियां , मेथी भाजी ,टमाटर  को काट लें ,लहसुन छिल लें ।
चूल्हा जलाकर कढ़ाही चढ़ा दें उसमें एक बड़ा चम्मच खाने का तेल डाल दें , तेल गर्म होने पर जीरा सरसों खड़ी लाल मिर्च , मेथी
दाना ,कढ़ी पत्ती का बघार लगा दें फिर टमाटर हल्दी डालकर मठा को डाल दें स्वाद अनुसार नमक , पिसी मिर्च ,मेथी पाउडर पीसा लहसुन  डाल दें । अब इस घोल को अच्छी तरह खौलने दें ।
एक बर्तन में पीसा उड़द दाल में थोड़ा सा नमक ,मिर्च पाउडर डाल कर अच्छी तरह फेंट लें । अब इस पेस्ट को हाथ में लेकर खौलते हुए रस में छोटे छोटे पकोड़े की तरह डालते जाएं ।   रस में डालते ही हल्का होने के कारण ये रस के ऊपर आ जाएगा । इसे अब 7 -10 मिनट  तक पकने दें ,उबलने दें। इसमें कटी धनिया पत्ती डाल दीजिए ।
लीजिए तैयार है खट्टा चटपटा नमकीन   डुबकी कढ़ी ।
अब गरमा गरम भात (पका चावल ) या रोटी के साथ परोसें ।


टिप - इसे आप मौसम में बना सकते है । लेकिन गर्मी और ठंड में विशेष फायदेमंद होता है ।
बेसन या मूंग दाल से भी ऐसी प्रक्रिया से डुबकी बनाया जा सकता है ।इनका अपना अलग स्वाद होता है ।


 आपके पास यदि हरी धनिया ,लहसुन , कढ़ी पत्ती ,सरसों ,आदि उपलब्ध नहीं है तो भी इसके बिना बना सकते हैं ।
इसमें गरम मसाला कदापि न डालें ।


वर्षा ठाकुर की रसोई से ।
वर्षा ठाकुर ,
भिलाई ,छत्तीसगढ़ ।