नीतीशजी!पटना सहित शहरों में अट्टालिकायें कैसे बने?
कृब्ण देव (केड़ी) सिंह
बिहार जो मगध साम्राज्य लगभग आधी दुनिया पर साम्राज्य था, शिक्षा का विश्व मे सबसे बड़ा केन्द्र,मानव कल्याण के लिये ज्यादातर धर्म के नायक यही जन्म लिया। पृथ्वी से लेकर अंतरिक्ष का ज्ञान बिहार ने ही दिया । अपनी संस्कृति,शिक्षा, चिकित्सा और आर्थिक विनाश या वर्बादी किसी पर डालकर, किसी को बचाने का काम कब तक करेंगा।कालखंड का इतिहास इसकी विवेचना किया है और करेंगे ।
माननीय मुख्यमंत्री जी आपके वचन और कार्य से मुझे भी हुआ है,शायद अन्य बिहार वासियो को भी हुआ हो । 15 साल आप के शासन का पूर्ण होने जा रहा है, आप यह कह के ही शासन मे आये थे कि किसी गरीब बिहारबासियो को काम के लिये बिहार से पलायन और अपमानित होने नही देगे । कितना सफल या फेल हुए?क्या बिहारी इतना गरीब हैं कि वह अपने भोजन के छोटा हिस्सा भी अपने भाई से नही बांट सकते?क्या बिहार के लोग इतने बहड़े,अंधे और निक्कमे हो गये हैं कि सारे देश के लाखो या करोड़ भी मजदूरो की कुन्दन, मदद की पुकार, न सुन,न देख और न सहायता पहुचाने लायक बचे है?
मुख्यमत्री जी, बिहार मे कोई, बड़ा उद्योग नही लगा, किसानी से कोई आमदनी नही, फिर भी पटना सहित सारे शहरों और जगहो पर जो उच्चे अट्टालिका बने है।वह इन्ही प्रवासियों के कमाई से बने है ?कुछ लोगो की सम्पत्ति तो सारे देश मे बने है, क्या इन अरबपतियो की सम्पत्ति के कुछ हिस्सा ले कर देश के सभी जगह कष्ट झेल रहे भाईयो को बिहार बुला कर,भोजन,उचित ईलाज नही करा सकते ?विकट स्थिति है ,सम्मान के साथ एक सलाह, कर्तव्यनिष्ट बने इतिहास कठोर होता है कभी किसी को माफ नही किया।
: बिहारी गौरव की बात करने वालों कोरोना _ 19के कारण महानगरो की तस्वीरों को ज़रा गौर से देख लो, ये वही बिहारी मजदूर है जो पेट की आग बुझाने यहाँ आये, वक्त की मार ऐसी पड़ी कि न घर के रहे न घाट के ।कोरोना विषाणु आया विदेश से, जिनके द्वारा संक्रमण पहुँचा उन्हे तो बाइज्ज़त घर भेजा गया, बीमारी आगे बढ़ी तो जांच की जाने लगी । इधर मजदूरों को सेनेटाइज करने के नाम केमिकल की बौछार की गयी ।इधर रोज कमाने खाने वाले लोग मदद की आस में बैठे हैं ।माना की संवेदनशीलता का अभाव है लेकिन शर्म भी एक वस्तु है। रही बात अपने प्रदेश की ,तो कितने समय तक यह सोच कर गौरवान्वित होते रहेंगे कि बिहार ज्ञान विज्ञान, आध्यात्म राजनीति का केंद्र था ,गणतंत्र का आगज यही से हुआ कौटिल्य का अर्थशास्त्र आज भी प्रासंगिक है । राजनीतिक चेतना की भूमि जयप्रकाश नारायण की विचारधारा कहाँ विलुप्त हो गई ।हम कहाँ से कहाँ आ गये ?
: समाज के बहन बेटियों के साथ बलात्कार, दुराचार अपने ही सरकार में होता है।हमारे जैसे दर्जनों कम सक्षम लोग फेसबुक पर, बेवसाइट पर, अखबार में लिखकर लोगों को जगाने का काम करते हैं. लखीसराय की घटना है। मात्र पप्पू यादव, उपेन्द्र कुशवाहा वहाँ जाते है।जो संभव हो सका वो करते हैं।बेहद अफ़सोसजनक ह्रैकि उस गरीब की बात रखने के लिए कोर्ट में कोई वकील नहीं है।यह उदाहरण मात्र है अर्थात कुर्मियों की कोई सिविल सोसाइटी खड़ा नहीं हो पा रहा है. वकील है.तो उनके सामाजिक सरोकार नहीं है कि मुद्दे या मौके पर दो-चार पीआईएल ठोंकें।जरूरत पड़े तो बल के महत्व को समझते हुए राबिनहूड टाइप के लोगों की मदद करें।कोई करे भी कैसे क्योंकि लोगों ने अघोषित साले का कमाल देखा है।सब समक्षते है ।खैर समाज के अफसर है लेकिन सामाजिक सरोकार नहीं है।यदि सामाजिक सरोकार है।तो फिर अह्म ब्रह्मस्मि का भाव है।विद्वान हैं लेकिन मुद्दों की समझ नहीं है?
बिहार के लोगों के साथ किसी न किसी बहाने मैं भी संवाद करता रहता हूँ।तब कहने को विवश हूँ।शिवाजी कौन थे, नीतीश कुमार कौन है? ये वो लोग है जो न्याय, छल- बल, बुद्धि, विवेक, प्रगतिशील, आधुनिकता, नास्तिकता, आस्तिकता सब गुणों के समिश्रण है जो शासक होने के लिए जरूरी है।राजा बदलाव लाता है, पूजारी घंटा डोलाता है ।झ्सलिए निश्चय तो करना ही होगा कि करना क्या है?
आरएसएस ने अधिक आबादी वाली जातियों को पॉलिटिकली एलिनियट करने का एजेंडा सैट किया और जाट, पटेल, यादव, चमार को विकल्पहीन करने की कोशिश की। उनका मकसद था कि इन्हें इलिनियट करके कोआप्ट किया जाए। इस मकसद में उन्हें थोड़ी बहुत सफलता भी मिली है। लेकिन वे अभी तक इन जातियों की बहुसंख्यक आबादी को तोड़ नहीं पाए हैं।इसका समाज कौनसा है? इसके समाज के अधिकांश लोग बीजेपी के साथ हैं, उन्हें एसपी, बीएसपी, राजद यानी गैर बीजेपी गैर कांग्रेसी पार्टियों से भी परहेज़ है। उन्हें ओबीसी का लाभ तो चाहिए लेकिन ओबीसी, एससी, एसटी के साथ नहीं खड़ा होना है।
पिछले कुछ समय से ये सब प्राणी आधिकिसान बनकर मुसलमान और दलित के प्रति घृणा उगल रहा था। दरअसल लैंडलॉर्ड ग्रुप में भी कई मजबूत जातियों के लोग हैं। वे इसे लोगों के प्रति विषवमन के लिए तो इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन नेतृत्व नहीं दे सकते।
ये लोग ओबीसी एससी एसटी पसमांदा की एकता के कांसेप्ट को ही नहीं मानता, न ही यह इन ग्रुप्स को सपोर्ट करने के लिए तैयार है। इसका कहना है कि लोगों को इसे नेता मान लेना चाहिए?,क्योंकि कुछ कौम ही ऐसी है जिनके अंदर लीड-नेतृत्व करने का चरित्र ही नहीं होता है । जिनके अंदर मिलिटेंट चरित्र ही नहीं है , वो किसी संघर्ष का साथी नहीं हो सकता है। समाज-राष्ट्र का नेतृत्व करने के लिए इंटीग्रेटी , साहस , निश्चलता के साथ सोशल-पोलिटिकल इंटेलीजेंस होना जरूरी है ।
जिस समाज-कौम में इन सारे गुणों के साथ चार- पांंच व्यक्ति ना हो ! इन्हें अपने खेती-बाङी पर ध्यान देना चाहिए
बुघवार बहुमाध्यम समुह।
नीतीशजी!पटना सहित शहरों में अट्टालिकायें कैसे बने?