राजनीति और नफरत की विसात पर प्रवासी मजदूर
कृब्ण देव सिंह
आनंद विहार,सुरत फिर बांद्रा हर समय प्रवासी मजदूर ही निशाने पर आते हैं ।बार बार दुर्व्यवहार, अपमान की जिदंगी जीने वाले लोगों की एक ही तो गलती है कि उनहोंने विपरीत परिस्थितियों में भी जिजीविषा बनाये रखा है । ऐसा मानने के कई कारण हो सकते है पर क्या यही पूर्ण सत्य है।कहीं ऐसा तो नहीं.कि रजनीति और नफरत का कोई नया खेल खेला जा रहा है जिसमें प्रवासी मजदूरों को फुलवाल बना दिया गया है। अगर इसमें थोड़ी भी सच्चाई है तो. इसका भविष्य वेहद खौफनाक भी हो सकता है?।
इतिहास गवाह है कि इंसान ने कभी बेहतर भविष्य के लिए तो कभी पेट पालने के लिए अपना घर छोड़ा है ।आज के संदर्भ में जिनकी बात हो रही है, उनहोंने गरीबी, बेबसी और लाचारी के कारण दूसरे राज्यो में पलायन किया मेहनत मजदूरी करतें हुए अपने परिवार का पालन पोषण एवम् जहाँ भी रहे उनकी अर्थ व्यवस्था को मजबूत किया ।लेकिन संकट की इस घङी में वे ठोकरें खाने को मजबूर हैं ।पहले दिल्ली की सरकार ने भ्रम फैलाने का कार्य किया ,फिर गुजरात सरकार की मुर्खता और मिल मालिकों के अमानवीय निर्णयोंने सुरत को जन्म दिया और अब महाराष्ट्र की बारी है । हो भी क्यों नहीं, जबकि अपनी सरकारे कह रही है कि राज्य में घुसने नहीं दिया जाएगा । जब उपेक्षा अपने लोगों के द्वारा की जा रही हो तब अन्य किसी से संवेदनशीलता की उम्मीद कैसे की जा सकती है ।राशन के स्थान पर भाषण और घार्मिक कटुता ,यही तो परोसा जा रहा है।
कितना अभिमान? ग़रीब लोग हैं बिमारी लेकर आ रहे हैं उनको बाहर कर दो, उन्हे राज्य की सीमाओं पर रोका जाना सावघानी वाला कदम है पर यह समस्या का हल नहीं है।झ्स मामले में बिहार की पहल निःसन्देह प्रशांसा के योग्य है। कोरोना से सुराक्षित प्रवासियों को पूर्ण जांच और सर्तकता वरते जाने के वाद सावघानीपूर्वक ३न्हेंसुराक्षित उनके मूल निवास पर भेजा जा रहा है। यही नीति पुरे देश में अपनाने की जरूरत है।क्योंकि प्रवासी मजदूर अपने को सर्वाधिक असुरक्षित महसुस कर रहे है। उसी का नतीजा आज मुम्बई में भी देरवने को मिला।प्रधानमंत्री ने राष्ट्रको संम्वोवित करते हुए घार्मिक/ आध्यात्यामिक प्रवचन दिया लेकिन प्रवासी मजदूरों के लिए किसी भी तरह की राहत देने सम्बन्धी को३ि वात नही की ! उल्टे देश के सभी राज्यों में घुसने नहीं देने व जहाँ है कही रहने की सलाह/ आदेश का कड़ाई से पालन करने कहा गया है। जाहिर है जनसंख्या विबेफोट के कारण उत्पन्न समस्याओं का सामना तो करना ही पडेगा। ।इस वैश्विक संकट की घड़ी में जब सारा प्रशासन साथ खड़ा है, पुलिस के लोग, अधिकारी, डाॅ सब जान की बाजी लगाकर मदद करने को उत्सुक हैं। मुखिया का इतना निर्मम रवैया?
बिहार में तो विकट समस्या है। भाजपा सरकार में है पर भरपुर निद्रा में है।उल्टे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की छवि को धुमिल करो अभियान में जुटी हुई है।अकेले नीतीश जी अभिमन्यू बने हुए हैा उनके विराधियों के मुंखमण्डल पर विघान सभा चुनाव जीतकर सत्ताका मलाई खाने के अवसर देख हर्षातिरेक देखते बन रहा है।आरोप लगाते वक्त मर्यादा की तमाम सीमाये वे लोग तोडते चले जा रहे हैं जो जाति दंभ की गर्जना करने में को३ि कसर शेष ररवने में कभी पीछे नही रहे। सोचते होंगे कि चमकी बुखार, पटना का जल जमाव कहाँ याद है, यह भी लोग भूल जायेंगे । उन्हें स्मरण रखना चाहिए कि जमाना ब्दल रहा है।चुनाव के समय में फिर से जातिवाद का कार्ड खेलकर सत्तानशी ही हो जायेगे ।
मुझे याद है सरकार यही थी और और तंत्र भी यही था जबकि बिहार ने सिख धर्म के प्रकाश पर्व का आयोजन किया था ।टेंट सिटी बनाया गया था ।मेरा सवाल यह है कि क्या इसी तरीके से बाहर से आये लोगों के खाने पीने की इंतजाम आइसोलेशन के साथ हो नहीं सकता था ?ऐसे सवाल वो लोग नीतीश सरकार से पुछ रहे हैं जिन्हें जनता ने कवाड़खाने में फेक किया है। ऐसे अतिज्ञानियों को कौन समक्षाये कि तब सामान्य स्थिति थी लेकिन अभी कोरोना- 19पुरे विश्व के लिए महामारी है। यह तो शुक्र है कि अभी देश में मामला विब्फोटक नहीं हुआ है। टेंट में ररवने से कहीं महामारी का स्प न ले ले। क्योंकि ऐसी संभावना को नकारा नही जा सकता।कम से कम नीतीश कुमार,भुपेश वघेल जैसे मुख्यमंत्रियों को इस वात के लिए श्रेय तोदेना ही पडेगा कि वेअपने _ अपने प्रदेशों के प्रवासियों को दिल्ली से,चेन्नई तथा हरियाणा के लोगो से बात चीत के द्वारा यथायोग्य सहायता करने की कोशिश कर रही हूँ ।तभी तो अब आशा की किरण दिखने भी लगी है।
बुघवार बहुमाध्यम समाचार सेवा