तिकड़ी राजनीति में उलक्षने लगी  ह्रै  शिवराज का नया  कीर्तिमान

तिकड़ी राजनीति में उलक्षने लगी
 ह्रै  शिवराज का नया  कीर्तिमान
              कृष्ण देव (केडी) सिंह
 भोपाल।सहज, सरल और  सीधे-सादे दिखने वाले चतुर सुजान राजनीतिज्ञ शिवराज सिंह चौहान  राजनीति में तमाम  नेताओं को पीछे छोड़ते हुए  चौथी बार मुख्यमंत्री बनकर मध्यप्रदेश की राजनीति में नया कीर्तिमान बनाया है ।जिसकें  बिना मंत्रिमंडल का गठन किये देश में.सबसे लंबे समय तक अकेले सरकार चलाने वाले मुख्यमंत्री कारिकार्ड भी जुड़ गया है। परन्तु प्रदेश की राजनीति केउनके अतिरिक्त दो नये केन्द्र बने सर्वश्री ज्योतिरादित्य सिंघिया और कमलनाथ की रणनीति और राजनीतिक दांवों तथा प्रदेश की जनता की समस्याओं में  उलक्षने का खतरा उनके लिए वरदान याअभिशाप सिद्ध होगा,इसका उत्तर भविष्य के गर्भ में है।
             भाजपा के पंद्रह साल के लंबे कार्यकाल के बाद जब कांग्रेस की सरकार बनी थी, तो उसकी स्थिरता को लेकर लगातार कयास लगाते जाते रहे। निवृत्तमान मुख्यमंत्री शिवराज ने पार्टी का एक राष्ट्रीय पद तो संभाला, परंतु प्रदेश नहीं छोड़ा। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष को उन्होंने अपनी सक्रियता के चलते पीछे छोड़ दिया ।केंद्रीय नेतृत्व को प्रदेश अध्यक्ष बदलना पड़ा, परंतु शिवराज की सक्रियता कम नहीं हुई। जैसे ही कमलनाथ सरकार गिरी, भाजपा की ओर से कई दावेदारों के नाम आगे आने लगे,  परंतु,अंतत: शिवराज को ही प्रदेश की कमान सौंपी गई। 
           हालांकि मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार को गिराने में पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रमुख भूमिका रही। उनके नेतृत्व में आधा दर्जन मंत्रियों सहित बाईस विधायकों ने कांग्रेस छोड़ी और भाजपा में शामिल हो गए। प्रदेश के मुख्यमंत्री का निर्णय भी सिंधिया की सहमति से ही लिया गया।लेकिन जब दूसरे नाम मोदी-शाह की ओर से प्रस्तावित किए गए, तो सिंधिया ने उनमें से शिवराज को ही बेहतर माना। 23 मार्च की शाम शिवराज ने चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, पर अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 अप्रैल तक के लिए लॉक डाउन घोषित कर दिया।इसी बीच कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के चलते प्रधानमंत्री ने 3 मई तक के लिए लॉक डाउन एक बार फिर बढ़ा दिया और मंत्रिमंडल का गठन फिर टल गया। सो, अधिकारियों की टीम के साथ प्रदेश को चलाने के लिए आवश्यक फैसले वह अकेले ही लेते रहे। कोरोना से लड़ते रहे। और, अकेले मुख्यमंत्री रहते हुए 26 दिन पूरे करते ही शिवराज सिंह के नाम एक नया कीर्तिमान दर्ज हो गया। शिवराज सिंह चौहान देश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री बन गए जिन्होंने 28 दिन सेअधिक दिनों तकअकेले ही एक प्रदेश की सरकार चलाई।शिवराज सिंह चौहान से पहले कर्नाटक में भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री बने वी एस येदियुरप्पा ने शपथ लेने के 26 वें दिन अपने मंत्रिमंडल का गठन किया था और इतने दिन तक अकेले ही सरकार चलाई थी। यह किसी भी मुख्यमंत्री के अकेले सरकार चलाने का रिकार्ड था। अभी एक ही चुनौती है, कोरोना को हराने की।  हां, इसके साथ ही केबिनेट गठन की प्रक्रिया भी शुरू होती दिखाई देने लगी है। वैसे उन्हें मालूम है कि मंत्रिमंडल का गठन एक ओर तो बड़ी चुनौती होती है, दूसरे, कैसा भी बनाओ, कोई न कोई वंचित रह जाता ?


                 तिकड़ी के इर्द-गिर्द
                  घूमती सियासत
      प्रदेश के इतिहास में पहली मर्तबा 24 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव की परिस्थितियां पैदा हो गयी हैं और चुनाव परिणाम तक प्रदेश की सियासत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की तिकड़ी के इर्द-गिर्द घूमती रहेगी। उपचुनाव परिणाम के नतीजे क्या होंगे उसके मुख्य किरदारों की भूमिका में शिवराज, ज्योतिरादित्य और कमलनाथ ही होंगे। 22 दलबदलू विधायकों की चुनावी वैतरणी पार लगेगी या नहीं यह इनके अपने-अपने करिश्में पर निर्भर करेगी। जहां तक शिवराज का सवाल है उन्हें अकेले वन-मैन आर्मी की तरह चुस्ती-फुर्ती, मुस्तैदी तथा दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ विश्वव्यापी कोरोना महामारी की जंग में कूदना पड़ा। जब उन्होंने सत्ता की बागडोर संभाली तो उनके सामने केवल यही अकेली चुनौती नहीं थी बल्कि उनके सामने और भी अनेक चुनौतियां मुंह बाये खड़ी हैं। पहली चुनौती है 24 उपचुनावों में से कम से कम आधे से अधिक सीटों पर भाजपा की विजय पताका लहराना, तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने इससे भी बड़ी चुनौती यह है कि उन सभी 22 दलबदलुओं की चुनावी वैतरणी पार कराना।क्योंकि उन्होंने  पिछले चुनाव में जो जनादेश कांग्रेस को मिला था उसे उलट दिया। कमलनाथ के सामने भी सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वे 24 में से कम से कम 18 से 20 स्थानों पर कांग्रेस को जीत दिलायें
दरअसल ये उपचुनाव में कमलनाथ की नेतृत्व क्षमता और दिग्गज कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह की शाक्ति और सामर्थ की भी अग्नि परीक्षा है। देखना दिलचस्प होगा कि 15 अगस्त 2020 को कमलनाथ फिर से झंडा फहराते है अथवा नहीं? 
             प्रदेश में 15 साल की भाजपा की सत्ता को उखाड़ फेंकने में अहम् भूमिका पर्दे के सामने कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की थी तो पर्दे के पीछे एक अहम् किरदार दिग्विजय सिंह थे। तीनों के मिले  प्रयासों का ही यह परिणाम था कि अपने स्वयं के आभामंडल और मतदाताओं तथा सामाजिक सरोकारों के चलते शिवराज ने जो रिश्ते बनाये थे वो भी भाजपा को चौथी बार जीत नहीं दिला पाये। हालांकि चुनाव में सबसे बड़े दल कांग्रेस और भाजपा के बीच 6 सीटों का ही अन्तर था।
         कमलनाथ के शपथ ग्रहण के साथ ही यह  साफ थी कि जब तक  दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया उनके साथ हैं तब तक कमलनाथ सरकार चलती रहेगी और जिस दिन इनमें से कोई एक चेहरा अलग हो जायेगा तो फिर  इस सरकार को कोई चमत्कार ही बचा पाये। हुआ भी वैसा ही ।। दरअसल कमलनाथ और दिगी राजा ने ज्योतिरादित्य को अर्जुन सिंह समक्षने की ऐसी भूल कर दी है जिसकी उन्हें भारी किमत उन्हें अभी और चुकाना पडेगा?
             ज्योतिरादित्य और शिवराज दोनों  को सही मायनों में इन उपचुनावों में एक प्रकार की अग्नि परीक्षा से होकर गुजरना पड़ेगा और उनके साथ गए विधायकों में से यदि आधा दर्जन से अधिक विधायक दुबारा नहीं जीत पाये तो फिर उनका भी राजनीतिक कद और महत्ता उस अंचल में भाजपा की नजर में कम हो जायेगी लेकिन यह इलाका एक-दो अपवादों को छोड़कर भाजपा का मजबूत गढ़ रहा है और भाजपा के बड़े नेता नरेन्द्र सिंह तोमर, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वी.डी. शर्मा, डॉ. नरोत्तम मिश्रा, प्रभात झा, अनूप मिश्रा, जयभान सिंह पवैया भी इसी क्षेत्र के हैं। इन सब लोगों ने लगातार संघर्ष कर भाजपा की जड़ें काफी गहरे तक जमा दी हैं। इन सबके चलते भी यहां की अधिकांश सीटें उपचुनाव में जीतने के बाद भी ज्योतिरादित्य उतना बड़ा श्रेय नहीं ले पायेंगे जितना वे कांग्रेस की जीत के लिए लेते रहे हैं। 
                कमलनाथ ने कहा है कि परदे के पीछे दलबदल कराने के बाद क्या समझौते हुए, क्या वायदे हुए, यह धीरे-धीरे अपने आप साफ हो जायेगा। अब कांग्रेस जोरशोर से इस बात का प्रचार करेगी कि इन्होंने जनादेश के साथ छल किया है तो दूसरे सिंधिया ने भी किसी बड़े पद की आकांक्षा में कांग्रेस छोड़ी है। सिंधिया राजपरिवार की पुरानी पृष्ठभूमि को भी अब कांग्रेसजन जोरशोर से उठाने की कोशिश करेंगे। इन सबके बीच मतदाताओं के गले कौन सी बात उतरती है यह उपचुनाव के नतीजों से ही पता चलेगा।जहां तक शिवराज का सवाल है  अब उनकी सरकार में केवल भाजपा के समर्पित नेता और उनमें से अधिकांश संघ के संस्कारों से निकले नेता नहीं होंगे बल्कि कांग्रेसी संस्कृति में रचे-बसे ऐसे लोगों की जमात भी होगी। ऐसे लोगों को अनुशासन और मर्यादा की लक्ष्मण रेखा में बांधकर रखना भी आसान होगा। इसके साथ ही पार्टी के उन नेताओं व कार्यकर्ताओं को संभाल कर साथ रखना होगा जो अभी तक उन विधायकों व नेताओं से टकराते रहे हैं ।इनमें सामंजस्य बैठाना भी शिवराज के लिए किसी बड़़ी चुनौती होगा।  कांग्रेस भी पूरी ताकत से उसे आरोपों के मकड़जाल में उलझाने की कोशिश कर रही है।
कांग्रेस में दिग्विजय सिंह भी हैं बड़ा चेहरा
जहां तक कमलनाथ का सवाल है फिर से कांग्रेस सरकार बनाना उनके लिए किसी बड़े पहाड़ को लांघने जैसा है, इसके लिए उन्हें काफी मशक्कत करना होगी। अब चुनावी मैदान में उनके अलावा दिग्विजय सिंह ही एक बड़े चेहरा होंगे जिनका पूरे प्रदेश में अपना एक मजबूत नेटवर्क है और उनकी इन उपचुनावों में अहम् भूमिका होगी। ग्वालियर-चंबल अंचल में डॉ. गोविंद सिंह, बसपा सहित अनेक दलों से होकर कांग्रेस में आये और दलित वोटों पर मजबूत पकड़ रखने वाले फूलसिंह बरैया तथा विधायक के.पी. सिंह और अपेक्स बैंक के पूर्व प्रशासक अशोक सिंह जैसे नेताओं के सहारे कांग्रेस अपनी चुनावी संभावनाएं चमकीली बनाने की जुगत में है। कुछ क्षेत्रों में पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का प्रभाव भी कांग्रेस को मददगार साबित हो सकता है। कांग्रेस के जीतने के मंसूबे इस बात पर अधिक निर्भर करेंगे कि अभी तक जो कांग्रेसी नेता ग्वालियर चंबल संभाग में यह महसूस करते थे कि सिंधिया के कारण उन्हें पार्टी में अवसर नहीं मिला जबकि वे असली मैदानी नेता हैं। अब ऐसे नेता अपनी उपयोगिता कितनी साबित कर पाते हैं इसका अवसर मिलेगा। इसके अलावा एक और विपरीत परिस्थिति का सामना कांग्रेस को उन लोगों को सक्रिय करने में करना होगा जो अभी भी शरीर से कांग्रेस में और दिल से ज्योतिरादित्य सिंधिया से अपने तार जुड़े रखना चाहते हैं। इस प्रकार पंजाधारी भाजपाइयों और कमलधारी कांग्रेसियों की गतिविधियों पर जो दल नजर रखते हुए नियंत्रण कर लेगा उसकी राह अधिक आसान हो जायेगी।
बुघवार बहुमाध्यम समुह