मध्यप्रदेश की राहों को सुगम बना पाएंगे शिवराज
सिंह चौहान तभा मुकुल वासनिक ?
कृष्ण देव (के डी) सिंह
भोपाल,3मई2020. मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने अपने संतुलित मंत्रीमंडल का .यथाशीघ्र गठन तभा कोरोना-19 के कारण उत्पन्न अप्रत्यासित हालातो से राज्य को वाहर निकालकर विकास की पटरी पर वापस लाने की गंभीर चुनौतियां है तो कांग्रेस की कंटक से भरे राहों को सुगम बनाने की जिम्मेदारी लेने वाले प्रभारी महासचिव मुकुल वासनिक कितना सुगम बना पाएंगे ,यह प्रेक्षकों के लिए उत्कण्ठा का विषय है।क्योकि मध्यप्रदेश की सरकार गिरने के वाद अब कांग्रेस में ठिकरा किस पर फोड़ा जावे,इसको लेकर एक .दुसरे पर निशाना साघने का क्रम जारी हो चुका है।जिसकी शुरूयात वहुविवादित पार्टी के एक प्रवक्ता ब स्वंम कमलनाथ ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर निशाना साधकर कर दी है।
मध्यप्रदेश में प्रदेश कांग्रेस के स्थापित नेताओं में तालमेल बिठाने में विफल रहने के कारण कांग्रेस के प्रभारी महासचिव दीपक बाबरिया की जगह मुकुल वासनिक को नया प्रभारी बनाया गया है। वासनिक की बतौर प्रदेश प्रभारी यह दूसरी पारी होगी, क्योंकि वे पूर्व में भी राज्य के प्रभारी रह चुके हैं।हालांकि दोनों हालातों में जमीन आसमान का अन्तर है और राजनीतिक परिदृश्य भी पूरी तरह से बदल चुका है। इस दौरान 15 साल का राजनीतिक वनवास भोगने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार 15 महीने में ही दलबदल के कारण सत्ता से बाहर हो गयी। वासनिक के सामने अब यही चुनौती होगी कि उपचुनाव के माध्यम से क्या फिर से कांग्रेस अपनी उस सत्ता को पा सकती है जो उसे मतदाताओं के जनादेश से मिली थी। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह भी होगी कि पहले वे नेताओं के बीच तालमेल बिठायें और कार्यकर्ताओं में सरकार जाने से जो निराशा आ गयी है उसे उत्साह में बदलें। इसके साथ ही उन्हें , पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह,राज्यसभा सदस्य राजमणी पटेल,पूर्व केन्दीय मंत्री कान्तिलाल भूरिया को भी आगे लाकर पार्टी की स्थिति सुधारने के लिए सक्रिय करना चाहिए।प्रदेश में अन्य पिछड़े वर्ग तभा किसानों के नेतृत्वको मजबूती दिये विना कांग्रेस की वापसीसंभव नही है।देखने की बात यही होगी कि क्या कांग्रेस की अनायास ही जो राहें पथरीली हो गयी हैं और उसकी राह को सुगम बनाने में वासनिक सफल हो पायेंगे।
वैसे जैसी कि कांग्रेस की परम्परा रही है दीपक बाबरिया का त्यागपत्र स्वास्थगत कारणों से मंजूर किया गया है लेकिन सब भलीभांति जानते हैं कि उनकी बिदाई के क्या कारण हैं ।यह कि वे प्रदेश कांग्रेस संगठन व सरकार के बीच समन्वय नहीं बना पाये जबकि दोनों के ही मुखिया कमलनाथ थे।हलांकि सभी जानते है कि कमलनाथ न् केवल हवाई नेता हैं वल्कि उन्हें जमीनी सच्चाई से कभी लेना देना नही रहा है। ऐसी हालत में.उनकी पटरी इलाकेदारों से नहीं बैठ पाना स्वभाविक था। अब कहा जा रहा है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया से उनकी नजदीकी उनकी बिदाई का कारण बनी।
कमलनाथ की सबसे बड़ी असफलता यही है कि.पन्द्रह साल बाद कांगे्रस सत्ता में लौटी थी लेकिन पन्द्रह माह के भीतर वे कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं को न तो सरकारी पद दिला पाये और ना ही उनकी कोई पूछपरख बढ़वा पाये।अब कहा जा रहा कि यह बाबरिया की चूक थी। जबकि जानकार अच्छी तरह जानते है कि सत्ता का भरपुर मलाई केवल और केवल दोनों इलाके दारों और उनके गणेश। परिक्रमाघारियोंने पाई ।श्री वावरिया को सिंधिया के करीबी माने जाने के कारण चौतरफा असहयोग और राजनीतिक षडयंत्र का शिकार बने।
अब राजनैतिक हलकों में चर्चा है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ के त्यागपत्र के बाद दीपक बाबरिया ने हाईकमान को फीडबैक देते हुए यह सुझाव दिया कि कमलनाथ को नेता प्रतिपक्ष रखा जाये और प्रदेश अध्यक्ष नये व्यक्ति को बनाया जाये। जबकि अधिकांश लोगों की राय यह है कि कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष पद पर रहें और यदि वे तैयार हों तो नेता प्रतिपक्ष भी उन्हें ही रखा जाए अन्यथा नया नेता चुन लिया जाए। कमलनाथ स्वयं चाहते हैं कि विधायक दल का नेता अलग हो, इसीलिए डॉ. गोविंद सिंह का नाम इस पद के लिए आगे बढ़ा है। सिंधिया के साथ जो भी विधायक और मंत्री पार्टी छोड़कर गए हैं उनमें सबसे अधिक ग्वालियर-चंबल संभाग के हैं। कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश में समन्वय समिति का गठन किया जिसके मुखिया बाबरिया ही थे, इसकी एक बैठक दिल्ली में हो पाई उसके बाद कोई बैठक ही नहीं हुई और प्रदेश की सरकार ही चली गयी। इस प्रकार बतौर महामंत्री चुनौतियों का एक बड़ा पहाड़ वासनिक को उत्तराधिकार में मिला है, इन हालातों को चुस्त-दुरुस्त करने की जिम्मेदारी अब उन पर है।
जहां तक वासनिक का सवाल है वे एक अनुभवी कांंग्रेस नेता और मध्यप्रदेश की अंदरुनी गुटबंदी की जड़े कितनी गहरी हैं उसे जानते हैं। 1980 के दशक में युवा लोकसभा सदस्य बनने के साथ ही वे एनएसयूआई और युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहने के बाद कांग्रेस पार्टी में वे हमेशा एक अहम् नेता रहे हैं, सोनिया गांधी के विश्वासपात्रों में उनकी गिनती होती है। वे अपनी दूसरी पारी की शुरूआत जब करने जा रहे हैं तो उनकी दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, अजय सिंह,राजमणि पटेल,कांतिलालभूरिया ,राजा पटेरिया, ,अरूण यादव,रामेश्वर निखरा,जितू पटवारी ,भूपेन्द्र गुप्त जैसे नेताओं से संबंध और व्यावहार काफी काम आयेंगे।हलाकि. देखना दिलचस्प होगा कि सुरेश पचोरी,मानक अग्रवाल ,शोभा ओक्षा,मुकेश नायक,पी सी शर्मा जैसे गणितवाजों से वे.कैसे निपटेगे।प्रदेश में कांग्रेस संगठन यदि देखा जाए तो विजिटिंग कार्डधारी पदाधिकारियों से अटा पड़ा है।विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जो प्रत्याशी नहीं बन पाये उन्हें संतुष्ट करने का ही यह नतीजा है कि दिन दूनी रात चौगुनी इनकी संख्या बढ़ती गयी।
असंतोष के स्वर
सरकार गिरने के वाद काग्रेस के एकबहुर्चर्चित१ विवादित परवक्ता ने पूर्वमुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ सार्वजनिक स्प से टीवी चैनल पर बयान दिया । अब.प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के एक कथित साक्षात्कार के बाद प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर यह चर्चा सरगर्म हो गयी है कि क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने की जानकारी पहले से ही कमलनाथ को थी और क्या वे दिग्विजय सिंह के इस भरोसे के कारण सत्ता गंवा बैठे कि सिंधिया के साथ कोई कांग्रेस विधायक नहीं जायेगा। कमलनाथ से लिए गए एक निजी टेलीविजन के पोर्टल में यह दावा किया गया कि साक्षात्कार में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने कहा है कि उन्हें पता था कि सिंधिया बगावत कर भाजपा का दामन थाम लेंगे लेकिन उसके बावजूद उनकी सरकार गिर गयी।क्योंकि दिग्विजय सिंह ने भरोसा दिया था कि सिंधिया के साथ विधायक नहीं जाय। कमलनाथ ने यह भी जोड़ा कि दिग्विजय सिंह ने ऐसा किसी उद्देश्य से नहीं कहा था बल्कि वे सही अनुमान नहीं लगा पाये। चूंकि इस साक्षात्कार के बाद कांग्रेस की राजनीति में सरगर्मी पैदा होना स्वाभाविक था ।इसलिए कमलनाथ भी तुरन्त एक्शन में आये उन्होंने कहा कि मैंने ऐसी बात नहीं कही। उनकी सफाई थी कि एक चैनल के पत्रकार अनौपचारिक मुलाकात के लिए उनके निवास पर आये थे और राजनीतिक घटनाक्रम सहित विभिन्न मुद्दों पर अनौपचारिक चर्चा चल रही थी। सरकार गिरने का मुद्दा आने पर मैंने कहा कि मुझे और दिग्विजय को कुछ विधायकों ने विश्वास दिया था कि वे वापस आयेंगे और उनकी बात पर हमने भरोसा किया, इस कारण ही हम अपनी सरकार नहीं बचा पाये, मैंने यह नहीं कहा कि दिग्विजय ने झूठा विश्वास दिया जिसके कारण सरकार नहीं बची।
शिवराज की चुनौती
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कोरोना महामारी के संकट से निपटने के लिए पांच नये साथियों का चयन कर भले ही फौरी तौर पर क्षेत्रीय, जातिगत और विभिन्न वर्गों को साधने में महारत दिखाई हो, लेकिन जब वे अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करेंगे उसमें इस प्रकार का संतुलन बिठाना उनके लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं रहेगा। खासकर ऐसी परिस्थितियों में जबकि कांग्रेसी कुनबे से आये लोगों का समावेश करने के बाद क्षेत्रीय और जातिगत समीकरण बिठाना होगा।क्योंकि भाजपा में ही तीन दर्जन से अधिक ऐसे विधायक हैं जिन्हें एडजस्ट करना संभव नहीं होगा। जबकि खाली बचे हुए स्थानों की संख्या सीमिति रहेगी। यदि लगभग दो दर्जन के आसपास लोगों को शिवराज अपनी पहली खेप की टीम में शामिल करेंगे तो सबको कैसे साध पायेंगे जिसकी महारत भी उनके इस विस्तार में देखने को मिलेगी।
मंत्रियों को संभाग का प्रभार देने और विभागों के बंटवारे में शिवराज के बाद सबसे शक्तिशाली मंत्री के रुप में डॉ. नरोत्तम मिश्रा उभर कर सामने आये हैं तो वहीं सिंधिया समर्थक गोविंदसिंह राजपूत को ग्वालियर-चम्बल संभाग का प्रभार दिया गया है। यह प्रभार यदि उपचुनावों तक परिवर्तित नहीं होता है तो फिर उपचुनावों की दृष्टि से कांग्रेस को भी इस अंचल में अपनी मजबूत जमावट करना होगी। कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष के रुप में डॉ. गोविंद सिंह को जिम्मेदारी देने का पक्का मन बना लिया ताकि ग्वालियर-चंबल संभाग में चुनावी लड़ाई को अधिक रोचक बनाया जा सके। डॉ. सिंह तीखे समाजवादी तेवरों वाले नेता हैं और शिवराज यह बात भलीभांति जानते हैं कि उन्होंने जो विभागों का वितरण किया है उसमें कुछ महत्वपूर्ण विभाग मंत्रियों को सौंप दिए गए हैं जबकि कई अनुभवी और वरिष्ठ विधायक जो उनकी सरकार में मंत्री रह चुके हैं उनमें किसी प्रकार का असंतोष न पनपे इसके लिए उन्होंने विभाग वितरण के साथ ही यह बात साफ कर दी कि विभागों का यह बंटवारा केवल कोरोना संकट के मद्देनजर ही किया गया है। उनके यह कहने का जानकार हलकों में यह अर्थ निकाला जा रहा है कि वरिष्ठों में जो लोग अभी मंत्री नहीं बन पाये हैं वे फिलहाल निराश न हों। प्रदेश में जो 24 उपचुनाव होने हैं उनमें से चम्बल संभाग के बाद सबसे अधिक उपचुनाव इंदौर-उज्जैन संभाग में ही होंगे। तुलसी सिलावट को जल संसाधन जैसा विभाग सौंपा गया है जिसे पाने की हसरत हर वरिष्ठ व मुख्यमंत्री के नजदीकी व्यक्ति की होती है। सिलावट को इंदौर और सागर संभाग का प्रभारी बनाया गया है। सागर संभाग में भी विधानसभा उपचुनाव होना है। कमलनाथ सरकार की तुलना में सिलावट को अधिक महत्व का विभाग मिला है।इसी प्रकार गोविंद सिंह राजपूत को खाद्य, नागरिक आपूर्ति, उपभोक्ता संरक्षण तथा सहकारिता विभाग मिला है जो पहले से ही ज्योतिरादित्य सिंधिया के कोटे में था। कमल पटेल को भी इस समय चुनौती वाला खेती किसानी से जुड़ा कृषि विभाग मिला है। किसानों के मौजूदा हालातों को देखते हुए उन्हें जिस पैमाने पर राहत पहुंचाना है वह काम इसी विभाग के अंतर्गत आता है। इस प्रकार डा. मिश्रा के बाद कमल पटेल को तुलनात्मक रुप से अधिक महत्व मिला है। आदिम जाति कल्याण जैसा बड़ा विभाग मीना सिंह को मिला है जो सीधे-सीधे राष्ट्रीय स्वयं संघ और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वी.डी. शर्मा की विश्वासपात्र हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश की कमान संभालने के 29 दिन बाद अपनी टीम में पांच नये मंत्रियों को शामिल करते हुए मिनी विस्तार में प्रदेश के विभिन्न अंचलों और सामाजिक समीकरणों तथा वर्गों को एक साथ साधने की कला में महारत दिखाई है। इसके साथ ही छोटे और बड़े विस्तार को लेकर पिछले कुछ दिनों से जो अनुमान लगाये जा रहे थे उसके उलट अपने अति विश्वसनीय साथियों के स्थान पर जो नाम शामिल किए हैं वे चौंकाने वाले हैं। शिवराज ने भी कोरोना महामारी के संकट से निपटने के लिए छोटी टीम बनाई है। कुछ वरिष्ठ दावेदारों को इसमें शामिल न कर फिलहाल कोई असंतोष न फैले उसका पुख्ता इंतजाम किया और साथ ही अनुभवी चेहरों को भी लिया जिसमें से अधिकांश अपनी प्रशासनिक क्षमता में दक्ष रहे हैं। किसी नये नवेले या कम अनुभवी को शामिल न कर फिलहाल उन्होंने ऐसा कोई प्रयोग नहीं किया है जो चुनौती से निपटने के प्रति उनकी गंभीरता को कम आंक सके। यह दूसरे विस्तार में ही पता चलेगा जबकि कुछ अनजान चेहरे मंत्रिमंडल में शामिल होंगे और जिनकी वापसी पक्की समझी जा रही है उन्हें जगह नही मिल पायेगी। जो नये लोग शामिल हुए हैं उनमें क्रमश: डॉ.नरोत्तम मिश्रा, तुलसी सिलावट, कमल पटेल, गोविन्दसिंह राजपूत और मीना सिंह में से सभी कभी न कभी मंत्री रह चुके हैं। इनमें से डॉ. नरोत्तम मिश्रा, कमल पटेल पूर्व में अपने-अपने विभागों में मजबूत पकड़ रखने वाले मंत्री रहे हैं तो वहीं तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत कमलनाथ सरकार में प्रभावी मंत्री रहे हैं। मीना सिंह राज्यमंत्री रही हैं।डॉ. मिश्रा भाजपा में एक बड़ा चेहरा हैं और वे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के विश्वासपात्र हैं। शिवराज सिंह चौहान की सरकारों में वे हमेशा एक कुशल प्रबंन्धक की भूमिका का निर्वहन करते रहे हैं ।वे एक परिणामोन्मुखी और नेता की हर कसौटी पर खरे उतरने में माहिर हैं।
शिवराज की छ: सदस्यीय टीम में जो पांच नये चेहरे शामिल किए गए हैं उनमें से एक भी ऐसा नहीं है जो उनका अपना भरोसेमंद और करीबी माना जाए। डॉ. मिश्रा और कमल पटेल केंद्रीय नेतृत्व की पसंद हैं तो मीना सिंह संघ और प्रदेश अध्यक्ष की। सिलावट और राजपूत के लिए तो उनका हाईकमान केवल और केवल ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं। मंत्रि परिषद में भूपेन्द्र सिंह और रामपाल सिंह का न आ पाना यह बताने के लिए काफी है कि शिवराज का कोई पसंदीदा इस छोटी टीम में नहीं है। लेकिन यदि पसंदीदा एक-दो साथी भी न आ पाये तो फिर इसको लेकर चटकारेदार चर्चा राजनीतिक गलियारों में होना स्वाभाविक है।
बुधबार*समाचार
<मध्यप्रदेश की राहों को सुगम बना पाएंगे शिवराज सिंह चौहान तथा मुकुल वासनिक ?