मध्यप्रदेश में  बेरोजगारी और श्रमिकों के शोषण को बढ़ावा देगा नया श्रम सुधार -राजा पटेरिया     

मध्यप्रदेश में  बेरोजगारी और श्रमिकों के शोषण को बढ़ावा देगा नया श्रम सुधार -राजा पटेरिया    


                 कोरोना संकट की वजह से नई जगह तलाश रहे औद्योगिक संस्थानों को मध्य प्रदेश में निवेश के लिए आकर्षित करने शिवराज सरकार ने श्रम कानूनों में सुधारों को लागू कर दिया है। इसके तहत अब कारखाना लायसेंस के लिए उद्योगपति को दफ्तरों के चक्कर नहीं लगाने होंगे। ऑनलाइन प्रक्रिया के तहत लायसेंस मिलेगा। वहीं, हर साल नवीनीकरण कराने का प्रावधान भी खत्म कर दिया है। इन सभी कानूनों के बीच में शिवराज सरकार ने श्रमिक और कर्मचारियों को लेकर एक ऐसा फरमान भी लागू किया है जो ना सिर्फ कर्मचारी और श्रमिक विरोधी है बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था के लिए घातक साबित होने वाला है।  
                     मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने फेसबुक लाइव के जरिए श्रम कानूनों में सुधार का एलान करते हुए  बताया कि कोरोना की चुनौती को हम अवसर में बदलना चाहते हैं। चीन सहित कुछ अन्य देशों से उद्योग दूसरे देशों की ओर रुख कर रहे हैं। इस अवसर का प्रदेशहित में लाभ उठाने के लिए प्रदेश ने दीर्घकालिक रणनीति बनाई है। जिसमें निवेश को आकर्षित करते हुए रोजगार के अवसर बढ़ाए जा सकतें हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने श्रम सुधार का हवाला देते हुए अब तक प्रचलित आठ घंटे की शिफ्ट को बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया है , जिसके चलते अब कर्मचारियों से सप्ताह में 72 घंटे काम कराया जा सकता है। मुख्यमंत्री का कहना है कि इसके लिए श्रमिकों को अतिरिक्त भुगतान यानी ओवर टाइम देना होगा, और उद्यमियों को यह छूट भी होगी कि वे उत्पादकता बढ़ाने के लिए अपनी सुविधा के अनुसार शिफ्ट में भी बदलाव कर सकतें हैं। नए उद्योगों के लिए श्रमिकों की सुरक्षा को छोड़कर औद्योगिक विवाद अधिनियम के बाकी प्रावधान प्रभावी नहीं रहेंगे। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (MSME)अपनी जरूरत के हिसाब से श्रमिक रख सकेंगे। इसके लिए औद्योगिक नियोजन (स्थायी आदेश) अधिनियम में सौ श्रमिक तक वाले कारखानों को छूट मिलेगी। उन्होंने बताया कि ठेका श्रमिक अधिनियम में संशोधन के लिए केंद्र सरकार को यह प्रस्ताव दिया गया है कि 50 श्रमिक तक लगाने वाले ठेकेदार का लायसेंस लेने की जरूरत नहीं रहेगी। अभी 20 श्रमिक लगाने पर ही पंजीयन कराना अनिवार्य था। इसी तरह कारखाना अधिनियम में कारखाने की परिभाषा में संशोधन का प्रस्ताव भी केंद्र सरकार को दिया है। उन्होंने कारोबारियों को राहत देते हुए प्रदेश में दुकानों को सुबह 6 बजे से रात 12 बजे तक खोलने की अनुमति दे दी है, पहले ये सुबह आठ से रात दस बजे तक खुलती थीं। मुख्यमंत्री की सोच है कि दुकानें ज्यादा वक्त तक खुलने से ना सिर्फ रोजगार बढ़ेंगे बल्कि अर्थव्यवस्था में भी तेजी आयेगी।  
                   शिवराज जी का यह आदेश मध्यप्रदेश के लिए कितना घातक साबित होने वाला है अब ज़रा इस बात पर गौर किया जाए। सबसे पहले तो उन्होंने उद्योग संगठनों की मांग स्वीकार करते हुए कर्मचारियों और श्रमिकों की शिफ्ट 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे कर दी। सरकार के इस आदेश से नौकरियां बढ़ने की बजाए घटेंगी क्योंकि विश्व में जब से औद्योगिक क्रांति शुरू हुई है तब से लेकर आज तक वास्तविकता यह बताती है निजी औद्योगिक इकाईंयां कल्याणकारी व्यवस्था के तहत काम ना करके निजी मुनाफे के लिए कार्य करती हैं। ऐसे में हम यह कैसे सोच सकतें हैं कि वह कर्मचारियों की संख्या बढ़ायेंगे। बल्कि कर्मचारियों की संख्या और कम होगी ..... इस बात को एक उदाहरण से समझा जा सकता है , मान लें की औद्योगिक ईकाई है जहां कुर्सी बनती हैं। यह 1 दिन में 80 कुर्सियां बनाने की क्षमता रखती है। यहां एक कर्मचारी अपनी 8 घंटे की शिफ्ट में कुल 8 कुर्सियां बनाता है इस हिसाब से कुल 10 कर्मचारी यहां नियोजित हैं जो उद्योग की स्थापित क्षमता का पूरा इस्तेमाल करते हुए 1 दिन में 80 कुर्सियां बना लेते हैं । अब यदि उनकी शिफ्ट 8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे कर दी जाए तो क्या होगा .... 80 कुर्सियां बनाने के लिए केवल 6.66 कर्मचारी ही लगेंगे। यानी शिफ्ट बढ़ने से 3 कर्मचारियों की ज़रूरत नहीं बचेगी और संस्था इन अतिरिक्त कर्मचारियों को निकालने में जरा भी संकोच नहीं करेगी .... निकाले गए 3 कर्मचारियों के वेतन - भत्ते और दूसरी सहूलियों पर खर्च होने वाली राशि उद्योग के खाते में अतिरिक्त लाभ के तौर पर जमा हो जाएगी। यानी कम्पनी का तो फायदा हो गया दूसरी ओर कर्मचारी बेरोजगार हो गए .... दूसरी ओर जो बचे हुए कर्मचारी हैं उनका जबरदस्त शोषण शुरू हो जाएगा। 
                इस श्रम सुधार से हमारी अर्थव्यवस्था पर दोहरी मार पड़ेगी एक ओर जहां बेरोजगारी बढ़ेगी वहीं दूसरी ओर अर्थव्यवस्था में मंदी आने लगेगी, क्योंकि हमारा कर्मचारी ही हमारा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। इन श्रम सुधारों से अव्वल तो कईयों की नौकरियां चली जायेंगी जो बचेंगे वह भी औद्योगिक शोषण के शिकार बनेंगे और अपनी नौकरियों को लेकर आशंकित रहेंगे और इसका सीधा असर उनकी क्रय शक्ति पर पड़ेगा और उपभोक्ता वस्तुओं की खरीदी सीमित हो जाएगी क्योंकि बाजार की अर्थव्यवस्था सेंटिमेंट या मनोभाव पर चलती है । यह पॉजेटिव सेंटिमेंट या सकारात्मक भाव से तेजी पकड़ती है और नेगेटिव सेंटिमेंट या नकारात्मक भाव से मंदी का शिकार बनती है। नौकरीपेशा तबके के लिए आय के स्त्रोत में अनिश्चित्ता से बड़ा नैगेटिव सेंटिमेंट या नकारात्मक भाव और क्या हो सकता है। 
                 शिवराज सरकार के यह श्रम सुधार स्थाई नौकरियों की बजाए ठेका व्यवस्था को बढ़ावा देते दिख रहें हैं।  ऐसे में कर्मचारी/श्रमिक आजीविका के स्थाई साधन की बजाए अस्थाई साधनों पर निर्भर हो जाएगा। इसके अलावा उसे कम्पनी से किसी भी प्रकार के भत्ते व भविष्य के लिए आवश्यत सामाजिक सुरक्षा भी हासिल नहीं होगी। यह भी उसकी क्रय शक्ति पर नकारात्मक प्रभाव डालेगी। शिवराज जी अथशास्त्र में कितने कमजोर है यह सभी जानते हैं और जो नहीं 
जानते उन्हें इस फैंसले के बाद मालूम पड़ जाएगा। शिवराज जी को यह मालूम होना था कि GDP में घरेलू उपभोग का अहम योगदान होता है , अब यदि उपभोग घटेगा तो उत्पादन बढ़ाने का कोई फायदा नहीं होगा (बल्कि घाटा ही होगा) इससे मांग और आपूर्ति का संतुलन बिगड़ जाएगा और अर्थव्यवस्था में मंदी आ जाएगी। सीधे कहें तो हमारी GDP घटेगी जो नई आर्थिक समस्याओं को जन्म देगी , जिससे और ज़्यादा नौकरियां जायेंगी और बेरोजगारी बढ़ेगी ..... ज़्यादा तकनीकी विषयों में ना जाते हुए आसान भाषा में कहें तो शिवराज जी अनजाने में आग से खेल रहें हैं , और इसे दावानल बनने में देर नहीं लगेगी।        
              शिवराज जी का कहना है कि श्रम कानूनों में सुधार की मांग औद्योगिक संगठन लंबे समय से कर रहे थे । मुख्यमंत्री जी ने यह समझना भी मुनासिब नहीं समझा कि ऐसा क्यों किया जा रहा है ..... क्योंकि यह उद्योगों के हित में है , अब वह कम कर्मचारियों से ज़्यादा उत्पादकता ले सकते हैं , इससे उनकी उत्पादन लागत घटेगी और मुनाफा बढ़ेगा। मुख्यमंत्री आगे कहते हैं कि मजदूरों को रोजगार दिलाना उनकी प्राथमिकता है और इसके साथ साथ निवेशक नियमों के 
मकड़जाल में न फंसे इसका भी उन्हें ध्यान रखना है। दोनों बातों को देखते हुए उन्होंने एक मध्यमार्ग निकाला है जिसमें निवेशक और श्रमिकों के हित सुरक्षित रहें, इसलिए श्रम कानूनों में बदलाव किया जा रहा है। वो कहते हैं कि ऐसा करने वाला मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य है। जबकि साफ साफ दिखाई दे रहा है कि यह संशोधन सिर्फ और सिर्फ उद्योगों को फायदा पंहुचाने के लिए है , इसमें कहीं भी कर्मचारियो के हितों का ध्यान नहीं रखा गया। बल्कि उन्हें उद्योग प्रबंधन के हाथों बेबस और लाचार छोड़ दिया गया है। *राजा पटेरिया ,पूर्व मंत्री मध्यप्रदेश & समाजवादी विचारक बुघवार*समाचार