<मैं वैदिक संस्कृति का हिस्सा हूँ:कृब्ण देव (केड़ी) सिंह

मैं वैदिक संस्कृति का हिस्सा हूँ:कृब्ण देव (केड़ी) सिंह
  
                बचपन में मैं कुछ दिन ननिहाल में रहा।मेरा नानीघर( ननिहाल ) नालन्दा (बिहार)जिले के एंकगर सराय ब्लाक के एक छोटा सा गाँव में है।मेरे मामा चार भाई और एकलौती बहन (मेरी माँ) थी।भरा _ पुरा परिवार का मैं एकलौता अनरवा_ मनरवा का भगीना( भांजा) होने के कारण मुक्षे कुछ विशेषाघिकार (भगीना को  पुरोहित/ बाम्हण माना जाता है) प्राप्त थे और  कई शुभ कार्य मामु-ममानी- नानी  मेरे हाथों से ही शुभारंम्भ कराते थे।यहाँ तक कि खेरानी से घर में आने बाला अन्न का मेरा भी हिस्सा पुरोहित जी के साथ निकालकर नानी के कमरे में अलग से सुरक्षित रखा जाता था और बाद में जमा किया गया अन्न मेरी मॉ की सहमती से बेचकर प्राप्त घन मेरी माँ को दे दिया जाता था ।ननिहाल में अनाज बिकता तो व्यापारी मामा मेरे लिए लेमुचुस(टौफी)  और दो - चार रूपये अलग से भिजवाते ।लेकिन कम पैसा है कहकरअक्सर मैं अन्न से भरे बोरे पर बैठ जाता और  बोरा  नही ले जाने देने का हुक्म बजाता ।फिर व्यापारी मामा मुक्षे एकाघ स्पये और कुछ लेमुचुस और दे देते और मैं खुश होकर वोरा से उतर जाता व उसे ले जाने का हुक्म बजा देता ।तब व्यापारी मामा अपने मजदुरों के माध्यम से बोरा उठा ले जाते। अक्सर व्यापारी मामा खुश होकर कहते ॥ भगीनवां खुश हो जा हको त हमरा बड़ी बरक्कत होवहको॥बचपन की झ्न यादों का सम्बन्ध हमारे वेद यादि घार्मिक ग्रन्थों से भी होगा ,यह वर्षों बाद ही समक्ष/ जान सका।ऋग्वेद के अनुसार जो अनाज खेतों मे पैदा होता है, उसका बंटवारा करने का निम्न विघान वताया गया है: -


1- जमीन से उपर का चार अंगुल भूमि का,
2- गेहूं के बाली के नीचे का पशुओं का,
3- पहली फसल की पहली बाली अग्नि की,
4- बाली से गेहूं अलग करने पर मूठ्ठी भर दाना पंछियो का,
5- गेहूं का आटा बनाने पर मुट्ठी भर आटा चीटियों का,
6- चुटकी भर गुथा आटा मछलियों का,
7- फिर उस आटे की पहली रोटी गौमाता की,
8- पहली थाली घर के बुज़ुर्ग़ो की
9- फिर हमारी थाली,
10- आखिरी रोटी कुत्ते की,
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ये हमें सिखाती है, 
हमारी संस्कृति और...
.मैं इस वैदिक संस्कृति का हिस्सा हूँ ।
बुघवार*स्ट्राइकर