सोनिया और नीतीश के मास्टर स्ट्रोक से विरोधी पस्त
कृब्ण देव (केड़ी) सिंह
कोरोना के कारण भारत में मजदूरों को उनके मूल निवास स्थानों पर पहुचाने को लेकर पिछले कुछ दिनों से राजनैतिक और प्रशासानिक स्तर पर जबरदस्त उठा पटक हुई लेकिन सोनिया गाँघी के रेल किराया कांग्रेस द्वारा दिये जाने की घोषणा के वाद केन्द्र सरकार की घोषणा से एक कदम और आगे बढ़कर पाँच सौ स्पये रास्ते का खर्च के नाम पर देने की घोषणा कर दी ।दोनों नेताओं के वयानों को लेकर जबरदस्त उबाल देखी जा रही है क्योंकि सोनिया गॉधी के बाद नीतीश कुमार के मास्टर स्ट्रोक ने उनके विरोघियों को चारों खाने चित/पस्त कर दिया है।
कार्यकारी अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने घोषणा की है कि प्रवासी मजदूरों के आने-जाने पर लगने वाले खर्च का वहन कांग्रेस पार्टी करेगी। सोनिया ने कहा है कि "हमने सन 47 में विभाजन की त्रासदी का समय देखा है जब हजारों मजदूरों, कामगारों को भूखे पेट हजारों किमी पैदल चलने को मजबूर होना पड़ा था"उन्होंने कहा है कि "जब सरकार, गुजरात के एक कार्यक्रम भर में खाने-पीने और ट्रांसपोर्ट पर 100 करोड़ रुपए खर्च कर सकती है, जब रेल मंत्रालय प्रधानमंत्री कोरोना फंड में 150 करोड़ रुपए जमा कर करवा सकती है तो मजदूरों के ट्रांसपोर्ट पर खर्च क्यों नहीं किया जा रहा?"
एक रिपोर्ट के अनुसार, भिवंडी से उत्तरप्रदेश के गोरखपुर के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाई गई थी। लेकिन इसमें करीब 90 सीटें खाली रह गईं।किसी तरह अपने घर लौटने की आस में स्टेशन पहुंचे 100 से ज्यादा मजदूरों को वापस लौटना पड़ा. इन मजदूरों के पास टिकट खरीदने के पैसे नहीं थे. रिपोर्ट के मुताबिक करीब 64 फीसदी मजदूरों के पास अब 100 रुपये से भी कम पैसे बचे हैं, अखबार ने ये आंकड़ा ‘स्ट्रैंडेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क नाम की एक रिपोर्ट के हवाले से दिए हैं।अब बात ये है कि रोज लाने, रोज खाने वाले संकट में फंसी हुई बेचारी गरीब जनता पर आपकी पैसेंजर ट्रेनों के टिकटों के लिए हजार-हजार रुपए चुकाने के लिए कहां से आएं? यदि किसी परिवार में 6-7 सदस्य हुए तो वे तो वहीं मर जाएंगे न!
इस रिर्पोट के आने के बाद सोनिया जी रेल किराया देने की घोषणा तो कर दी परन्तु विमिन्न मध्यमों में सरकार से प्र१नों की मानों झडी लग गई।जैसे!आप कर्ज में फंसे हुए उद्योगपतियों के पैसे चुका सकते हैं, मजदूरों के क्यों नहीं? क्या इस देश की आर्थिकी में उनका कोई योगदान नहीं है?सरकार क्यों नहीं समझती कि ये सामान्य वक्त नहीं है, दो महीने से चवन्नी भर की इनकम नहीं हुई, जो बचे हुए पैसे रखे हुए होंगे भी वो चावल-रोटी में खर्च हो गए, अब कहाँ पैसा बचा होगा? पैसेंजर टिकटों का पैसा देना मिडिल क्लास के लिए मुश्किल हो जाता है, फिर रोजी मजदूरों पर इतना बड़ा भार डालने का क्या मतलब?बात किसी खास सरकार की नहीं है, सभी मजदूरों की है, हमारे परिवारों की है, हमारे लोगों की है। सोनिया की जगह नरेंद्र मोदी भी यह काम कर रहे होते तो उनके लिए सम्मान बढ़ जाता, सोनिया सरकार में होतीं और इस असंवेदनशीलता के साथ बर्ताव कर रही होतीं तो उनसे भी इसी टोन में सवाल किए जाते। आप सरकार समर्थक हैं तो रहिए, अगली बार भी उन्हें ही वोट करिए। लेकिन कम से कम इस वक्त तो अपने लिए बोल लीजिए। नेता और मजदूरों में कुछ तो फर्क करिए।
जनता ही रेलगाड़ियों में आने-जाने के पैसे दे।जनता ही टेस्टिंग के पैसे दे।जनता ही टैक्स दे.जनता ही खाने-पीने के टेंट लगाए.जनता ही फंड में पैसे दे।जनता ही सैलरी कटवाए.फिर प्रधानमंत्री केयर फंड क्या बत्ती बनाने के लिए बनाया गया है?
सोनियाजी के वयान के वाद सबसे ज्यादा राजनीतिक उबाल बिहार की राजनीति में आई।सबको पीछे छोड़ते हुए बिहार सरकार सभी प्रवासियों को टिकट के अलावा उनको पांच सौ रुपये भी देगी की घोषणा नीतीश कुमार ने कर दी। दरअसल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ऐलान कर दिया कि उनकी पार्टी प्रवासी मजदूरों के किराए का खर्च वहन करेगी और इसके थोड़ी देर बाद ही आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने ऐलान कर दिया था कि उनकी पार्टी भी 50 ट्रेनों का किराया देगी।
दरअसल केंद्र की ढुलमुल नीति ने प्रवासी लोगों को तो परेशान किया ही, राज्यों में सत्ता और विपक्ष के बीच खूब नोक-झोक करवाया। इन सभी घटनाक्रम के बीच कोटा और दिल्ली से लोगो को घर लाकर योगी हीरो बना, तो नीतीश विलेन। कभी मनमोहन सिंह के 'मजबूत निणर्य न लेने वाले स्वभाव.पे आलोचना करने वाले वर्तमान प्रधानमंत्री खुद मुँह लुकाये रहे। फिर अंत में ट्रेन चलाने का निर्णय लेकर मुँह दिखाने नहीं आये।प्रवासी लोगों को तो परेशान होगये तब केंद्र सरकार ने दूसरे प्रदेशों में फंसे लोगों के लिए विशेष ट्रेनें चलाने की अनुमति दे दी ।
लेकिन यह क्या, आप उनसे ट्रेन की टिकट के पैसे वसूलेंगे? जिनके पास खाने की रोटी नहीं है वे टिकट के पैसे कहां से लाएंगे? क्या इसका बोझ भी राज्यों पर डालने वाले हैं?नीतीश सरकार को बदनाम करने की पटकथा लिखनेवाले को अब नीतीश कुमार की मास्टरस्ट्रोक झेलने केलिए तैयार रहना पड़ रहाहै ।
धीरे-धीरे सब धूंध साफ हो रहा है।हर कोई सरकार को कोस रहा था,ऐसे में मानवीय पहलू को जरा नजरअंदाज करें तो नीतीश गलत भी नहीं हैं। करीब 35-40 लाख मजदूर बिहार से बाहर हैं , इन्हें वापस लाना आसान नहीं है। इन मजदूरों को वापस लाया गया और इनमें से अगर थोड़े भी संक्रमित हुए तो बिहार की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था संभालने में नाकाम हो जाएगी जिससे राज्य में कोरोना का विकराल रूप देखने को मिल सकता है।इसलिए नीतिगत निर्णय सोच समक्षकर लेना स्वाभाविक है।झ्स मामले में नीतीश कुमार ने जो परिपक्वता दिखाई,वह काबिले तारिफ है।
बुधबार *समाचार
सोनिया और नीतीश के मास्टर स्ट्रोक से विरोधी पस्त