जातीय दबंगई का वैचारिक कत्लेआम करते रहेंगें

जातीय दबंगई का वैचारिक कत्लेआम करते रहेंगें


कृब्ण देव सिंह
माना जाता है कि आजादी के समय भारत मे लगभग 67% अर्थात 217 राज घराने थे ,जो कूर्मी थे।
वे कर्नाटक, महाराष्ट्र ,मध्यप्रदेश ,गोवा उड़ीसा ,झारखंड,उत्तरप्रदेश,बिहार तथा राजस्थान तक फैले थे।दुर्भाग्य से कुर्मी जाति संगठनोंऔर
आम कुर्मियों ने इन्हें कभी कूर्मी नही माना ।लेकिन राजपुतों ने इन्हें आँखों पर बिठा लिया ।अर्जक कमेरा जैसे कुर्मीयों ने जबरजस्ती उन्हें राजपूत बना दिया क्योंकि इन्हें अपना पहचान पीड़ित और शोषित के रूप में बनाना था ।कूर्मी  सिंड्रोम का शिकार हुए हैं।लेकिन अब हालात बदलने लगा है i कई राजपारिवार के लोग अब खुलकर अपने आपको कुर्मी जाति का बताने लगे है जिसमें ग्वालियर राज पारिवार के उत्तराघिकारी श्रीमंत ज्योतिरादित्य राजे सिंधिया का नाम उल्लेखनीय हैi कुर्मी जाति / समाज के लोग भी अब सिंड्रोम से बाहर निकलकर उन्हें अपनाने लगे हैं। खैर!
       बहुत बातें हैं, जो काम समाज के वोट जुगाड़ू राजनीतिक और सामाजिक कार्यकत्ताओं को करना चाहिए था, वह  श्रमजीवी कर रहे है। डिजिटल इंडिया में विमर्श का मंच चौक-चौराहों से शिफ्ट होकर सोशल मीडिया पर आ चुका है। बहस करने वाले न तो गुंडे से जनप्रतिनिधी बने लोग है और न ही धन के बल पर राजनेता/ अभिनेता  बने चंपुओं की वश की बात है। बल्कि हजारों पढ़े लिखे, समझदार छात्र, युवा, व्यवसायिक,प्रवुद्ध वर्ग के लोग सामाजिक-राजनीतिक विमर्श को आगे बढ़ा रहे है। आज सोशल मीडिया आम आदमी की ऐसी ताकत है जहाँ कोई बात सलीके से की जाये, तो वह दूर तक  जाती है।ऐसे प्रभाव डालने वाले की अच्छी संख्या  है, जिन्हें पढा जाता है।वैचारिक रूप से मजबूत लोगों पर प्रतिक्रिया भी दिया जाता है।  लेकिन ऐसे लोग किसी भी वैचारिक व सैद्यान्तिक दरिद्र सांसद, विधायक, मंत्री से अधिक प्रभावित करते है।


     बहरहाल, मेरे फेसबुक मित्र श्री दर्गेश कुमार जी के फेसबुक बाल पर डाले गये पेस्ट हमारा ध्यान जहानाबाद की तरफ आकृष्ट कराया है। जहाँ राजनीति में जातियों की परंपरागत वर्चस्व के स्थापित ढांचे होने के विपरीत अद्भुत प्रयोग हुआ है। जी हाँ! उन्होंने लोकसभा चुनाव के नतीजे की बात की है जिसे लेकर गुस्से में लाल लोगों द्वारा बहुत गाली गलौज भी हो रहा है। सनद रहे कि साझेदारी भागीदारी की आड़ में जातीय दबंगता को राजनीति में प्रश्रय दिया जाये?जहानावाद बिहार के मगध क्षेत्र के भूभाग में स्थित लोक सभा क्षेत्र है।जहॉं बहुचर्चित नक्सलियों द्वारा जेल ब्रेक हुआ था ।


    श्री कुमार बिहार की जातिगत / सामाजिक/ राजनैतिक संरचना पर कटांक्ष करते हुए कहते हैं कि मधेपुरा फ्लाने समूह का ,नालंदा चिलाने का, जहानाबाद ढिमकाने का पैतृक संपत्ति हो गया है। इसे सामान्य रूप में स्वीकार किया जा सकता है लेकिन यदि दबंगई ऐसी हो कि अनुकूल स्थिति नहीं होने पर आप इसे पचा नहीं सकते तो वहाँ पर रह रहे अन्य समूह के लोगों के साथ अन्याय होगा। दरअसल हमारा समाज बेहद संकीर्ण मानसिकता से भरा पड़ा हुआ है। समानता, बराबरी के खिलाफ माँ बाप ही अपने बच्चो का वैचारिक कत्ल कर देते है। यह संकीर्णता सिर्फ प्रभु वर्ग में ही नहीं है, बल्कि ओबीसी और दलित वर्गों में भी व्याप्त है। गाँवों में रहने वाले हम जैसे लोग बचपन से ही देखते रहे हैं, ब्राह्मण का अनपढ़/पढ़ा बेटा बाकियों को 'नान्ह' कहता है। हमने कुर्मी, कोयरी के घरों में मुसहरों के खाने के लिए अलग बर्तन देखा है। दलितों में चमार  और दुसाध एक दूसरे से श्रेष्ठ साबित होने के लिए व्यग्र रहते है। गाँव से बाहर निकलिए तो अफसर चपरासी से बगल में बैठाने में झिझकता है। नेता को लगता है कि अफसर उसका नौकर है। हम भारत के लोग सफाईकर्मी को इज्जत से चाचा, भैया, अंकल बोलने में बहुत झिझकते है। लेकिन हमें इसी कांसेप्ट को ध्वस्त कर देना है।
        वे पुनः जहानाबाद की तरफ लौटते हुए हम सबका ध्यान मौर्यकालीन सामाजिक स्थिति की तरफ ले जाना चाहते हैं  जिसके कृषक समूह से निकले हुए तीन जातियों कुर्मी, कोयरी, चंद्रवंशी का पेशा अभी भी मूलतः कृषि कार्य ही है। यह तीनों मिलकर जहानाबाद में मज़बूत चुनौती बन जाता है। इसलिए गुस्से में लाल होना ठीक नहीं है। मौजूदा स्थिति को स्वीकार किया जाना चाहिए। दूसरी बात यह कि लोकसभा चुनाव में जो प्रयोग हुआ, उसे बस प्रयोग ही नहीं रहना चाहिए। उसे पूरे बिहार में तमाम दलों द्वारा लागू किया जाना चाहिए। जहाँ पर भी जातीय दबंगई हो, वहाँ पर छोटे छोटे नाम से बंटे पुराने एकीकृत समूहों की एकजुटता से 'जहानाबाद प्रयोग' को अमलीजामा पहनाया जाना चाहिए। यह प्रयोग बैकवर्ड-फार्वर्ड का भेद किये बगैर तमाम क्षेत्रों में हो, जहाँ भी जातीय दबंगई हो। 


वे यहीं नहीं रूकते बल्कि आने वाले दिनों में इसी प्रकार के विषयों पर शब्दबाजी की इच्छा प्रकट करते है। आपसे भी अपेक्षा है कि जातियों के स्थापित मठाधीशी का राजनैतिक / सामाजिक / वैचारिक कत्लेआम करते रहेंगे। अपने समूह की साझेदारी के साथ-साथ अन्य कमजोर समूहों के साझेदारी की बात करना ही तो छत्रपति शिवाजी महाराज का हिन्दवी स्वराज है। आइये इस लड़ाई को आगे बढ़ाते हैं।
निवेदन: कृपया कमेंट बॉक्स में किसी भी जाति के लिए आपत्तिजनक टिप्पणी नहीं करें।
**बुघवार मल्टीमीडिया नेटवर्क