धार्मिक कट्टरता को खाद -पानी दे रहा है शाहिनवाग?

धार्मिक कट्टरता को खाद -पानी दे रहा है शाहिनवाग?


बुघवार*स्ट्राइकर
     तथाकथित देशव्यापी स्तर पर नागरिकता बचाने के नाम पर जारी मौजूदा ' लोकतांत्रिक प्रतिरोध' से अब देश की जनता उबने लगी है और हिन्दुत्व के नाम पर नफरत फैलाने वालों को घीरे - घीरे निरपेक्ष्य आम जनता के मन में आन्दोलनकारियों के प्रति वितृष्णा उत्पन्न होने लगा है ।आन्दोलनकारी को एआईएमआईएम जैसे क्षेत्रीय दल और कम्युनिष्ट विचारघारा वाले राजनीतिक दलों  तथा अल्पसख्यकों के समर्थक की मंशा का खुलासा भी होने लगा है।भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने हलांकि कभी भी खुलेआम समर्थन नहीं किया है लेकिन उनके दल के कुछ स्वनामघन्य नेताओं की शाहिन बाग में उपस्थिति ब बयानबाजी का भरपुर खामियाजा दिल्ली विघानसभा चुनाव में भुगत चुकी है।लेकिन लाख टके का प्रश्न यही है कि आन्दोलन को मजबूती अभवा  कमजोर करने की जाने-अनजाने कोशिश करते नजर आने वालों को पता ही नहीं है कि हिन्दुस्तान की अमनपसंद जनता क्या सोच समक्ष रही हैं! यह महज संयोग नहीं कि ओवैसी-बंधुओं जैसे आन्दोलन को हवा देने वालों  का रिकार्ड पहले से ही काफी संदिग्ध रहा है! 
          यह संयोग नही है बल्कि प्रयोग है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फिर एक बेहद उत्तेजक और आपत्तिजनक बयान दिया। उसकी देश में व्यापक स्तर पर निंदा वही लोग कर रहे है जिनका गहरा / प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष संम्बन्ध देश व्यापी आन्दोलन से है। इसी बीच एआईएमआईएम के  विधायक वारिस पठान‌ का भी आपत्तिजनक तथा वेहद उत्तेजना फैलाने वाला बयान भी आ गया! उन्होंने कर्नाटक के गुलबर्गा में यह उत्तेजक बयानबाजी की क्योंकि  वे आज भी अहंकार और धार्मिक कट्टरता में विश्वास करते है।  अब न्यूज चैनल (जिसको गोदी-वाले कहा जाता है) इसी पर 'खेल'(स्टूडियो भाषा में)रहे हैं! संवैधानिक ओहदे पर बैठेऐसे लोगो की उत्तेजक बयानबाजी की  चैनलों पर भी खास चर्चा होनी चाहिए है! 
बड़े ओवैसी यानी असदुद्दीन साहब प्रतिभावान और बहुपठित नजर जरुर आते हैं पर उनके कई फैसले और बयान उन्हें और उनकी राजनीति और घार्मिक कट्टरवाद का संदिग्ध बना देते हैं! भाजपा के कई प्रमुख नेता और 'भारतीय माध्यम  के कई  एंकर इसीलिए उन्हें बहुत पसंद भी करते हैं! 
        मैं.सेचता हूँयदि प्रवेश वर्मा, अनुराग ठाकुर या गिरिराज सिंह जैसों के सामने ओवैसी बंधुओं, खासकर छोटे ओवैसी यानी अकबरुद्दीन साहब को खड़ा करके भरपूर टीआरपी  बटोरी जा सकती है तो इसके लिए घर्मनिरपेक्षता की आड़ में अल्पसंख्यकवाद और मुस्लिमपरस्त लोग क्या कम जिम्मेदार है। आज वारिस पठान काम आ गए! पर हमे ये नहीं भूलना चाहिए कि ऐसे बयानों और संवादों से हमारा समाज लगातार कमजोर होता है तभा हिन्दुओं में भी दिनों - दिन जबाबी आक्रमकता और घार्मिक कट्टरता बड़ती जा रही है।डर है कि कहीं यह खतरनाक रूख न ले ले?
*बुघवार बहुमाध्यम तंत्र