मुस्लिम आक्रान्ताओं ने हिन्दुओं को रात्री
में विवाह के लिए मजबूर किया?
बुघवार *स्ट्राइकर
हिन्दुओं में रात्रि को विवाह क्यों होने लगे हैं, जबकि हिन्दुओं में रात में शुभकार्य करना अच्छा नहीं माना जाता है क्योंकि ये निशाचरी समय होता है ?रात को देर तक जागना और सुबह को देर तक सोने को, राक्षसी प्रवृति बताया जाता है। रात में जागने वाले को निशाचर कहते हैं।केवल तंत्र सिद्धि करने वालों को ही रात्रि में हवन व यज्ञ की अनुमति है।फिर हिन्दुओंकी ऐसी क्या मजबूरी थी कि वे रात्रीकाल में विवाह जैसे उत्तम और शुभकार्य करने को विवश हुए?क्या मुस्लिम आक्रांन्ताओं ने उन्हें विवश नही किया था?ऐसे प्रश्न अब पुछे जाने लगे है क्योंकि हिन्दु साम्प्रदायिकता अब अल्पसंख्यक और विशेषकर मुस्लिम साम्प्रदायिकता के प्रति दिनोंदिन कठोर रुख अपनाने लगा है।वैसे तो प्राचीन समय से ही सनातन धर्मी हिन्दू दिन के प्रकाश में ही शुभ कार्य करने के समर्थक रहे हैं। तब हिन्दुओं में रात की विवाह की परम्परा कैसे पड़ी ?यह सवाल कभी हिन्दु अपने पूर्वजों के सामने क्यों नहीं उठाते हैं या स्वयं इस प्रश्न का हल क्यों नहीं खोजते हैं ?
दरअसल हिन्दुस्तान में सभी उत्सव, सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं संस्कार दिन में ही किये जाते थे चूंकि येहिन्दुओं की सनातनी परम्परा और संस्कार है। सीता और द्रौपदी का स्वयंवर भी दिन में ही हुआ था। शिव विवाह से लेकर संयोगिता स्वयंवर (बाद में पृथ्वीराज चौहान जी द्वारा संयोगिता जी की इच्छा से उनका अपहरण) आदि सभी शुभ कार्यक्रम दिन में ही होते थे।
लेकिन प्राचीन काल से लेकर मुगलों के आने तक भारत में विवाह दिन में ही हुआ करते थे पर मुस्लिम आक्रमणकारियों के भारत पर हमले करने के बाद ही, हिन्दुओं को अपनी कई प्राचीन परम्पराएं तोड़ने को विवश होना पड़ा था।मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा भारत पर अतिक्रमण करने के बाद भारतीयों पर बहुत अत्याचार किये गये। यह आक्रमणकारी हिन्दुओं के विवाह के समय वहां पहुंचकर लूटपाट मचाते थे। अकबर के शासन काल में, जब अत्याचार चरमसीमा पर थे, मुग़ल सैनिक हिन्दू लड़कियों को बलपूर्वक उठा लेते थे और उन्हें अपने आकाओं को सौंप देते थे।
भारतीय ज्ञात इतिहास में सबसे पहली बार रात्रि में विवाह सुन्दरी और मुंदरी नाम की दो ब्राह्मण बहनों का हुआ था, जिनकी विवाह दुल्ला भट्टी ने अपने संरक्षण में ब्राह्मण युवकों से कराया था।उस समय दुल्ला भट्टी ने अत्याचार के खिलाफ हथियार उठाये थे। दुल्ला भट्टी ने ऐसी अनेकों लड़कियों को मुगलों से छुड़ाकर, उनका हिन्दू लड़कों से विवाह कराया।
उसके बाद मुस्लिम आक्रमणकारियों के आतंक से बचने के लिए हिन्दू रात के अँधेरे में विवाह करने पर मजबूर होने लगे। लेकिन रात्रि में विवाह करते समय भी यह ध्यान रखा जाता है कि नाचना-गाना, दावत, जयमाला, आदि भले ही रात्रि में हो जाए लेकिन वैदिक मन्त्रों के साथ फेरे प्रातः पौ फटने के बाद ही हों।
बताया जाता है कि पंजाब से प्रारम्भ हुई परंपरा को पंजाब में ही समाप्त किया गया।फिल्लौर से लेकर काबुल तक महाराजा रंजीत सिंह का राज हो जाने के बाद उनके सेनापति हरीसिंह नलवा ने सनातन वैदिक परम्परा अनुसार दिन में खुले आम विवाह करने और उनको सुरक्षा देने की घोषणा की थी। हरीसिंह नलवा के संरक्षण में हिन्दुओं ने दिनदहाड़े - बैंडबाजे के साथ विवाह शुरू किये।तब से पंजाब में फिर से दिन में विवाह का प्रचालन शुरू हुआ। पंजाब में अधिकांश विवाह आज भी दिन में ही होते हैं।महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र, कर्नाटक, केरल, असम, मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा एवम् अन्य राज्य भी धीरे धीरे अपनी जड़ों की ओर लोटने लगे हैं। अतः इन प्रदेशों में दिन में विवाह होते हैं।हरीसिंह नलवा ने मुसलमान बने हिन्दुओं की घर वापसी कराई, मुसलमानों पर जजिया कर लगाया, हिन्दू धर्म की परम्पराओं को फिर से स्थापित किया।
हिन्दुओं में सभी विवाह सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त ब्रह्ममुहूर्त में ही संपादित किये जाते हैं। ध्रुवतारा को स्थिरता के प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जो ब्रह्ममुहूर्त में ही सबसे अच्छा दृष्टिगोचर होता है ।लेकिन साक्षी सूर्य के प्रतीक स्वरूप अग्नि को ही माना जाता है। इसीलिए अग्नि के ही चारों ओर फेरे लिए जाने की विधि है।
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में रात्रि विवाह का पूर्ण खण्डन किया है। पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसार भी हिन्दू गायत्री परिवार में विवाह दिन में ही सम्पन्न किये जाते हैं ।।लेकिन आज भी खासकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं बिहार के लोग, जबकि 400 साल हो गए मुगल यहां से चले गए, किन्तु आज भी उसे परंपरा मानकर उसे चला रहे हैं! असल में हमें मानसिकता से उबरना ही होगा।
*बुघवार बहुमध्यम तंत्र