बदलती राजनीति( सम्पादकीय)

बदलती राजनीति( सम्पादकीय)


कृष्ण देव( केड़ी) सिंह
मध्यप्रदेश में शुरू हुए राजनीतिक उथल- पुथल के बीच कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल हो गये। उन्हें भाजपा ने राज्यसभा के लिए प्रत्याशी भी घोषित कर दिया।दरअसल राज्य में बाईस विघायकों की बगावत और इस्तीफे के बाद सरकार गिरने की आशंका के बीच सबकी नजरें सिंधिया पर ही टिकी थी।हलांकि कांग्रेस के कुछ विधायकों के एक खेमें के असंतुष्ट होने की खबर     थी ,तभी से राज्य में भाजपा की सरकार बनने के कयास लगाए जाने लगे थे।ऐसा लगता है कि न तो कांग्रेस की ओर से सिंधिया को रोकने के मसले पर बहुत गंभीरता दिखाई गई,न सिंधिया ने इंतजार करना जरूरी समक्षा।दरअसल कांग्रेस को उम्मीद नहीं थी स्थिति इतना विस्फोटक होगा।उन्हें अपने मैनेजरों पर अतिविश्वप्स था।अब सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद जिन विघायकों ने बगावत का रास्ता चुना,उनके सामने नई परिस्थिति में अपना रूरव तय करना होगा।
              फिलहाल कांग्रेस के सामने राजनैतिक चुनौतियां बढ़ गई है।विघानसभा चुनावों के बाद जब कांग्रेस की सरकार बनी थी,तभी नेतृत्व के मसले पर काफी जद्योजहद हुई थी तथा अस्थिरता पैदा होने की आशंका जताई गई थी।लेकिन समय रहते कांग्रेस के भीतर शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर हालात से निपटने और असंतोष को कम करने की कोशिश नहीं हुई,उल्टे उन्हें नीचा दिखाने के लिए राजनीतिक षडयंत्र होते रहे।अतः ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रत्यक्ष शिकायत यही रही कि पार्टी में उनकी अनदेखी हो रही थी और अपेक्षित महत्व नहीं मिल रहा था।सवाह है कि विद्यान सभाचुनावों में कांग्रेस की जीत में जिस नेता की अहम भूमिका रही,उसके सामने ऐसी नौबत क्यों आई कि उसे पार्टी को ही छोड़ना पड़ा।
        महाराष्ट्र में सरकार बनाकर जो कांग्रेस दो कदम आगे बढ़ी थी,वह मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधियाके पार्टी से जाने के बाद दो कदम पीछे चली गई लगती है।आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि सिंधिया जैसे सशक्त नेता को कांग्रेस ने क्यों खो दिया?क्या इसे पार्टी में पतक्षड़ आने की शुरूयात माना जावे?हलांकि कांग्रेस ने क्या खोयाहै और उसका कितना राजनैतिक व सामाजिक नफा / नुकसान होगा,यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा लेकिन सिंधिया जो वातें वोलकर भाजपा में शामिल हुए हैं,वह कांग्रेस ,राजनीति,समाज और देश चारों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।भाजपा में जाते हुए भी उनके यह कहने का गहरा अर्थ है कि "मन आज दुखी भी है और व्यथितभी"।
*बुघवार बहुमाध्यम समुह