गंभीर संकट में कमलनाथ सरकार

गंभीर संकट में कमलनाथ सरकार


कृब्ण देव सिंह
भोपाल9मार्च2020.मध्यप्रदेश की राजनीति में जबरदस्त तुफान आ चुका है जिसकी चपेट में कमलनाथ सरकार आ चुका है तथा स्थिति पल _पल गंभीर होता जा रहा है।जिस तरह की राजनीतिक घटनायें गंभीर मोड़ ले रही है उससे ऐसा लगने लगा है कि कमलनाथ सरकार की कहीं रवानगी हो न हो जावे?क्योंकि ग्वालियर रियासत के युवराज श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रघानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात होने व सिंधिया समर्थक छः मंत्री सहित 17विधायकों की बंगलोर में होने की रवबर है ।
           राजनीति में प्रतीकों और शब्दों के महत्व को हमेशा ही रेखाकित करता  है।लेकिन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ से उसे समक्षने में संभवतः चुक हो गई।ऐसा शायद झ्सलिए हो गया क्योंकि कमलनाथ व्यासायिक पृष्टभूमि वाले राजनेता है और श्री सिंधिया शाही परिवार के उत्तराघिकारी हैा। सन्दर्यवश 1967 के उस प्रकरण को याद किया जाना चाहिए जब पचमढ़ी में मध्यप्रदेश युवक कांग्रेस के अध्यक्ष अर्जुन सिंह के संयोजकत्व में आयोजित   सम्मेलन में मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्र ने ' राजमाता' विजयाराजे सिंधिया पर कटाक्ष किया था.। श्रीमती सिंधिया की मौजूदगी पर डीपी मिश्र ने राजे-रजवाड़ों की लानत मलानत की थी।
आहत राजमाता ने कांग्रेस के छत्तीस विधायकों के साथ विद्रोह किया, संसोपा, प्रसोपा, जनसंघ के साथ मिलकर संयुक्त विधायक दल का गठन हुआऔर  'संविद' सरकार गठित हुआ और गोविन्द नारायण सिंह मुख्यमंत्री बने। संविद के पतन के बाद श्रीमती सिंधिया जनसंघ की आधारस्तंभ बन गईं। आज भाजपा उनकी ही पुण्याई खा रही है ।  आज की घटनाक्रम फिर मध्यप्रदेश में वही सन् 67 जैसी ही है। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की डीपी मिश्र की ही भाँति खिल्ली उड़ाई कि 'उतरना है तो उतर जाए सड़क पर' यह ज्योतिरादित्य के लिए वैसा ही संघातिक है जैसे राजमाता के लिए डीपी मिश्र का पचमढ़ी वाला कटाक्ष।
       इसमें कोई शक नही की मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा प्रतिबद्ध विधायक और मंत्री ज्योतिरादित्य के हैं। लेकिन कमलनाथ सरकार के दौर में सबसे ज्यादा मजाक के पात्र सिंधिया ही बने।लेकिन आज जब शेरा, रामबाई जैसे विधायक सरकार को नोक पर रखते हों और ज्योतिरादित्य जी को कोई इस संकट में फोन तक न लगाए तो ये मामला किसी 'रायल वंशज' के लिए और भी गंभीर हो जाता है।फिर मराठा राजवंश की अपनी पृब्टभूमि है।
        महाराज माधवराव सिंधिया का जन्मदिन यानी कि 10 मार्च अब एक महत्वपूर्ण तिथि है, ज्योतिरादित्य खेमें की करवट के लिए। अब तक के प्राप्त खबरों के अनुसार यदि ऐसा ही जारी रहा तो मध्यप्रदेश की सरकार का गिरना तय है।क्योंकि श्री सिंधिया की एक तीखी अदावत दिग्विजय सिंह को भी लेकर भी है। यदि कांग्रेस आलाकमान से कोई सुलह होती है तो एक शर्त वे दिग्विजय सिंह को लेकर भी रख सकते हैं। सिंधिया खेमे के लोग पिछले हफ्ते के घटनाक्रम का प्रायोजक दिग्विजय सिंह को मान रहे हैं। वे अब किसी भी सूरत में दिग्विजय सिंह को राज्यसभा भेजने के पक्ष में नहीं हैं। सिंधिया समर्थक विधायक-मंत्री पहली बार करो या मरो की मनःस्थिति में हैं।
   अन्य खबर के अनुसार भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ज्योतिरादित्य जी को चाहता है कि वे पार्टी में आएं और दादी की विरासत को आगे बढ़ाएं। यद्यपि चंबल क्षेत्र के तीन-चौथाई भाजपा नेता यह नहीं चाहते लेकिन उनके चाहने न चाहने पर कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला। राजमाता सिंधिया ने जिस समर्पण के साथ मध्यप्रदेश में आरएसएस की जड़ें जमाने के लिए सहयोग और वातावरण दिया उसके प्रति संघ कृतज्ञ है और ज्योतिरादित्य की आगे की भूमिका को लेकर आशान्वित है।जानकरो के एक वर्ग का कहना है कि भाजपा जल्दी ही ज्योतिरादित्य को मुख्यमंत्री बनाने नहीं जा रही.लेकिन वह राज्यसभा में भेजकर केंद्र में मंत्री पद दे सकती है। लेकिन ऐसी स्थिति में सिंधिया समर्थक विधायक मंत्री कांग्रेस से त्यागपत्र देंगे और कर्नाटक की तर्ज पर फिर चुनाव लड़ेंगे। 
   आज कांग्रेस ऐसी स्थित में नहीं कि सरकार भंगकर नया जनादेश के लिए जनता के बीच जाए।कमलनाथ सरकार के पास अब सिर्फ एक कमलनाथ का प्रबंधन,  और  दिग्विजय सिंह की कूटनीति है। सरकार बचती है तो इसके पीछे इन्हीं की कुशलता होगी लेकिन सरकार के ध्वस्त होने के कई बहाने और अफसाने होंगे
     मध्यप्रदेश विधानसभा में 230 सीटें हैं, जिनमें से फिलहाल दो खाली हैं. मौजूदा समय में राज्य में कुल 228 विधायक हैं, जिनमें से 114 कांग्रेस, 107 बीजेपी, चार निर्दलीय, दो बहुजन समाज पार्टी और एक समाजवादी पार्टी के विधायक शामिल हैं. कांग्रेस सरकार को इन चारों निर्दलीय विधायकों के साथ-साथ बीसपी और समाजवादी पार्टी का समर्थन है.छः मंत्रियों सहित कुल17 सिंधिया के कट्टर समर्थक कांग्रेस विधायकों के बंगलुरु  जाने के बाद कमलनाथ सरकार गोते खाने लगी है. कमलनाथ सरकार गिरने की कगार पर पहुंच चुकी है। ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात शाम को होने और उनके समर्थक विधायकों के बेंगलुरु पहुंचने की खबर ने संकट को और गहरा कर दिया है?
*बुघवार बहुमाध्यम समुह