कोरोना  के विस्द्ध युद्ध में जीत का नया इतिहास लिखेगा मानव

कोरोना  के विस्द्ध युद्ध में जीत
का नया इतिहास लिखेगा मानव


कृब्ण देव (केडी) सिंह
-         भोपाल 26मार्च2020. जैसा की हम सभी जानते हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए 24 मार्च 2020 की मध्यरात्रि से पूरे देश में लॉक-डाउन घोषित कर दिया गया है। चीन तथा यूरोपीय देशों के अनुभव से हम यह भी जानते हैं कि इस वायरस के संक्रमण को रोकने का एकमात्र और सर्वोत्तम उपाय सोशल डिस्टेन्सिंग (समाजिक दुरी )ही है। पूरे देश में अब तक  जहाँ इसके 625 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं और 10 व्यक्तियों की मृत्यु हो चुकी है।आजकी  सचाई है कि कोरोना वायरस को देश तथा राज्यों में महामारी का रूप धारण करने से बचाने के लिए लॉक-डाउन अथवा कर्फ़्यू ही एकमात्र सहारा है जिससे सोशल डिस्टेन्सिंग( सामाजिकक दुरी) को निश्चित (आश्वस्त) किया जा सके लेकिन इससे हमारे देश और राज्य के वंचित, रोज कमाने-खाने वाले गरीब तबकों एवं वृद्ध व बच्चों को भारी समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है। केन्द्र व प्रदेश सरकार ,जिलों के जिलाधीशों ने जिम्मेदार नागरिकों एंव संस्थाओं से ऐसे मौके पर आगे आकर समस्याओं का सामना कर रहे लोगों तथा प्रशासन को मदद देने की अपील भी की है। इस परिस्थिति में हम सभी  की भूमिका भी अहं हो जाती है। हम अपनी सभी  से आग्रह करते हैं कि वे अपने आसपास, मुहल्ले तथा शहर के उन लोगों की यथासंभव मदद करें, जिन्हें आवश्यकता है। लॉक-डाउन के कारण बिना प्रशासन की सहमति के ऐसे ही बाहर निकलने में दिक्कतें पेश आ सकती हैं। इसलिए बेहतर होगा कि  अपनी अपनी जगहों के प्रशासन से संपर्क करे तथा उनके साथ मिलकर लोगों की मदद करने की कोशिश करे।
          हलांकि अनपढ़ से लेकर गंवार तक, हाकिम से लेकर मुलाजिम तक, किसान से लेकर मजदूर तक, सब जान चुके है  कोरोना-19 महामारी है. इसके संक्रमण से बचने की कोई दवाई नहीं है. कोई उपाय नहीं है. इटली से लेकर स्पेन तक, चीन से लेकर अमेरिका तक सब बदहाल है. लाशों की गिनती करते-करते यह जहां थक गया है. डॉक्टर जान की बाजी लगाकर किसी की जान बचा रहे और इंसानियत के इन रक्षकों को यह दुनिया सलाम कर रही है. ऐसे में अव्यवस्थाओं के देश भारत क्या करता? कोरोना की दस्तक पाकर नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा कर दी. जनता ने भी कहा कि और उपाय क्या था?प्रधान सेवक नरेन्द्र मोदी ने कहा २१ दिन का Social Distancing रखे, सम्पूर्ण भारत को लॉकडाउन रखेंगे. जनता इस फैंसले को स्वीकार कर रही है. पुरे देश में लोग नियमों का पालन कर रहे है. किसी के घर में चूल्हा नहीं जले यह भी स्वीकार, किसी की रोजी-रोजगार छीन गया यह भी स्वीकार, लेकिन किसी बीमार मजलूम की आह क्यों स्वीकार करें? 
         हौसला बुलन्द करो मगघ सम्राट
  सवाल तो है.कि अस्पतालों में मरीज कराह रहे है, लेकिन डॉक्टर नहीं है. यह किसकी जिम्मेदारी है? दर्द से कराहते मरीज और उसके परिजनों की दशा देख कर पूरा बिहार रो देता है, लेकिन नीतीश कुमार जी आपके मंत्री टिक- टाक देख रहे होते है. ऐसे मंत्री को पालने से बेहतर है की स्वास्थ्य मंत्री के पद को किसी संतरी के हवाले ही कर दीजिये. यह आप भी जानते है की  सामाजिक दुरी का मतलब  सिस्टम(व्यास्था) से दुरी नही होता. यदि आपका सिस्टम नहीं संभल रहा है तो इस सिस्टम को बदल दीजिये.गाँवों में-शहरों में गरीबों के बीच आपका संदेश तो पहुंचा है लेकिन राहत सामग्री कब पहुंचेगा? किस गाँव में कौन सरकार का नुमाइंदा है, जिससे गरीब राहत के लिए जरुरत पड़ने पर संपर्क कर सके, यह कौन बताएगा?  नीतीश बाबु। सामाजिक दुरी का मतलब सिस्टम(व्यवस्था)  डिस्टेस(दुरी)नही होता है. अपने मंत्रियों, विधायकों, अफसरों को कठोरता से कहिये घर से गरीबों के घर में फोन लगा कर पूछे कि मगध के सम्राट का हुक्म है कि राज्य के किसी भी बाशिंदे के घर का चूल्हा बुझना नहीं चाहिए, बताओं तुम्हे क्या तकलीफ है. नाम सुशासन काम भी मांगता है नीतीश बाबु।यदि ये जंग नही आप जीते तो आने वाली पीढ़ी आपको माफ नही करेगी।आपको सिद्ध करना ही होगा कि मगघ की भूमि है जहाँ गंगा पुत्र निवास करते हैं।
                          जंग के लिए बंद लेकिन 
                          उनका क्या होगा?
       प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक म रात को बारह बजे से देशभर में 21 दिनों तक लॉक डाउन और कफ्र्यू की घोषणा कर दी। तमाम शहरों में पहले से ही लाक डाउन और कई शहरों में कफ्र्यू लागू कर दिया गया था, परंतु कहीं दो-तीन दिन का और कहीं एक सप्ताह की अधिकतम अवधि तय की गई थी। प्रधानमंत्री ने जैसे ही ऐलान किया, लोगों में इतनी घबराहट हुई कि देश के कई शहरों के बाजारों में राशन सब्जी और किराना सामान लेने दुकानों में लोगों की भीड़ टूट पड़ी। पीएम का संबोधन पूरा नहीं हुआ और बाजारों की स्थिति यह हो गई कि वहां पैर रखने की जगह नहीं बची थी लोग जरूरत का सामान खरीदने के लिए दुकानों की तरफ दौड़ रहे थे। किराना दुकान, सब्जी और राशन दुकानों में लोग जरूरत का सामान लेने के लिए डटे रहे।
       मामला ही कुछ ऐसा है। कोरोना का भय तो एक तरफ इक्कीस दिन तक घर में रहना भी ठीक, इतने दिन तक खाने-पीने की व्यवस्था सबसे बड़ी चुनौती है। घर में रहकर तो ये खर्चे और बढ़ जाते हैं, सो लोगों की घबराहट और चिंता स्वाभाविक ही है। देश की जनता को इसकी आदत नहीं है। फिर भी अपनी और अपने परिवार की सलामती के लिए यह तो करना ही होगा, नहीं तो एक बार कोरोना वायरस ने रफ्तार पकड़ी तो इसे रोकना मुश्किल ही हो जाएगा। कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर विचार करना ही होगा। कम से कम केंद्र सरकार को। पिछले तीन-चार सालों से जिस तेजी से देश की अर्थव्यवस्था नीचे जा रही है, वह सबसे ज्यादा चिंताजनक है।  देश के करोड़ों लोगों के पास एक सप्ताह का भी राशन-पानी नहीं रहता। करोड़ों लोग तो रोज कमाते और रोज खाते हैं। दूसरे दिन तक की व्यवस्था नहीं होती। इनके लिए पैकेज की बात तो कही जा रही है, लेकिन सब जानते हैं कि हितग्राही तक पैसे कितने समय में पहुंचते हैं और कितने पहुंचते हैं। पता चला कि राहत पहुंचते-पहुंचते कफ्र्यू समाप्त होने की तारीख ही आ गई और हजारों लोग कोरोना के बजाय भूख से मर गए। हमारा मतलब यह कतई नहीं है कि कफ्र्यू की घोषणा गलत है, वो भी इक्कीस दिन तक। कोरोना का संक्रमण और फैलने से रोकना है तो घरों में रहना ही होगा, लेकिन इसके लिए केन्द्र और राज्य सरकारों की अधिक संवेदनशीलता भी आवश्यक है। केवल गरीबी की रेखा के नीचे वालों के लिए समर्पित सरकारों को कुछ लघु मध्यम और मध्यम वर्ग की भी चिंता करनी चाहिए। ये लोग बोलते नहीं, आंदोलन नहीं कर पाते, विरोध नहीं कर पाते, ब्लैकमेल नहीं कर पाते, तो सरकारें उन्हें छोड़ देती हैं। इस वर्ग की चिंता कम से कम इस इक्कीस दिन के कफ्र्यू में तो कर लें। हालांकि ऐसा होगा नहीं, लेकिन यदि सरकार लोगों के घरों में एक सप्ताह का ही सही, मुफ्त राशन बटवा दे, तो बहुत बेहतर होगा। लोगों की चिंता खत्म हो जाएगी, इस दो हफ्ते तो सड़कों पर सन्नाटा निश्चित तौर पर रहेगा। यह व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी सरकार को, केवल बोलने भर से राहत नहीं मिलेगी और न ही बंद को समर्थन। सामान लेने के बहाने लोगों के हुजूम तक बाहर निकलते दिखाई दे जाते हैं। अवश्यक वस्तुओं को छूट अवश्य दी है, लेकिन इस बहाने भी कई लोग तफरीह करने निकल पड़ते हैं, यह सोचे बिना कि उन्हें कोई ऐसी बीमारी हो सकती है, जिसका बाद में इलाज मुश्किल है। 
        थोड़ी-सी भी लापरवाही कैसे घातक नतीजे दे सकती है, इसका दर्दनाक उदाहरण इटली है। वहां हालात बेकाबू से हुए जा रहे हैं। भारत को बेकाबू हालात वाले दौर से बचना ही होगा और ऐसा तब होगा, जब सामाजिक रूप से अलग-थलग 
रहने के लिए सब ओर से हरसंभव कोशिश की जाएगी। इसमें हर भारतीय को योगदान देना अपना नैतिक धर्म समझना होगा, क्योंकि इसके अलावा और कोई उपाय भी नहीं। चूंकि यह जिंदगी बचाने की जंग है, इसलिए देश को इस मामले में सहयोग तो करना ही होगा। सबसे आवश्यक यह है कि शासन-प्रशासन के साथ आम लोगों को भी उन्हें लेकर सावधान रहना चाहिए, जो हाल में विदेश से लौटे हैं। हर किसी को इसकी चिंता करनी चाहिए कि ऐसे लोग स्वास्थ्य परीक्षण की आवश्यक प्रक्रिया का पालन करें। किसी को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि यह बीमारी उसे नहीं होगी।विश्व कोरोना वायरस के विरूद्ध एकजुट होकर लड़ाई लड़ रही है।तो हम हिन्दुस्तानी मानवता ब स्वंम की रक्षा के लिए कब किसी से पीछे रहें है।हम सभी भरतवंशी युदध जीतकर नवा इतिहास लिखने के लिए कृत संकल्प ले तभा जीत को सुनिश्चिचत करे।जय हो,विजय हो॥
*बुघवार बहुमाध्यम समुह