बिहारियों को वदनाम करने में सबसे
बड़ी भुमिका फर्जी बिहारियों का है
कृष्ण देव ( केड़ी) सिंह
बिहार से दुगनी भोजपुरी भाषी उत्तर प्रदेश में है। उप्र० से सटे हुए बिहार के इलाके में भोजपुरी वोली आती है।
यह भी बताता चलू कि बिहार के मगघ क्षेत्र में मगही,मिथला मैं मैथली और अंगदेश में अंगिका बोली जाती है। यह गलत है कि भोजपुरी उप्र० और बिहार की भाषा है लेकिन सत्य है कि उप्र० और विहार से जुडे हिस्सा जिसे पूर्वाच्चल कहा जाता है ब भोजपुरी बोली जाने वाली इलाकों को पूर्वाच्चंल नाम से अलग राज्य बनाने की मांग की जाती है।
भोजपुरी को बिहारी भाषा वताना एंक तरह का राजनौतिक,सामाजिक व सांस्कृतिक षडयंत्र है जिसका उपयोग प्रमुख स्प से फर्जी बिहारियों / अन्य लोगों.द्वारा मूल विहारियो का शोषण करने व वदनाम करने के लिए पिछले लम्बे समय से देश के प्रमुख शहरों जिसमें दिल्ली और मुम्बई.यादि और छत्तीसगढ़ में विशेषरूप से रायपुर व दुर्ग संभाग में आर्थिक ,राजनैतिक व सामाजिक शोषको द्वारा की जाती है।इसमें सबसे ज्यादा योगदान फर्जी बिहारियों का है।विशेष योगदान हिन्दु घर्म सेजुड़े कुछ प्रमुख घर्मस्थलो से जुड़े शहरों / क्षेत्रों से आनेवाले बहुमाध्यमों में कार्यरत पत्रकार/ विश्लेषकों का है। क्योकि पत्रकारिता के क्षेत्रमें कार्यरत वास्तविक बिहारियों से वे मुकाबला नहीं कर पा रहे है। इस लिये वे अपनी खींज निकालते रहते है जो वास्तव् में कायर और कुटिल है।यही स्थिति अन्य क्षेत्रों में भी है।वे ऐसा झ्सलिए भी करने में सफल हो जाते हो जाते है क्योंकि बिहारी खुलेआम जातिवाद को स्वीकार/ प्रदर्शन करते हैं।
फर्जी विहारी पैदा होते ह्रै किसी और प्रदेश में ,रहते ,खाते जीते भी है दुसरे प्रदेश में लेकिन हगने बिहार चले जाते हैं ब हराम खोरी और वोट बैंकबी राजनीतिकरना.उनकी विशेषता होती है । वे अक्सर शोषक, नव घन्नासेठ ब काइया टानेता ,ठेकेदार ,दलाल,माफिया,नेता मंत्रियों,अधिकारियों के इन्तजामअली होते है ।वे हरामी टाईप बडे नेताओं,अधिकारियो ब घन्ना सेठो द्घारा पालित व संरक्षित होते है।इनकों अब बड़ी संख्या में देश के लगभग सभी अंचलों व छोटे,मक्षोले तथा बडे शहरों में देखा जाता है तभा वे वात वातपर अपने को बिहारी घोषित करते है लेकिनअगर उनसे उनके मूल स्थान की सुक्ष्मता से जानकारी ली जाती है तबअसलीयत खुल जाती है कि उनका बिहार से कुछ लेना देना नही है।
बुघवार बहुमाध्यम समाचार सेवा।