सरदारवादियों के नाम अपील

सरदारवादियों के नाम अपील
कृष्ण देव सिंह
भारत में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री कौन चुनता है? आप सीधे तौर पर कहेंगे कि संसदीय दल, विधायक दल, पार्टी अथवा जनता बनाती हैं। संभवतः आपका जवाब सही ही होगा। किन्तु कुछ हालात ऐसे भी होते है जब सारी योग्यता, योगदान होने के बावजूद नेता दरकिनार कर दिए जाते है। मसलन,  यदि शरद यादव नहीं होते तो लालू यादव की जगह रघुनाथ झा अथवा रामसुंदर दास मुख्यमंत्री बन सकते थे। आरएसएस नहीं होता तो केशव मौर्य उत्तर प्रदेश के सीएम बन सकते थे।


बहुत कम लोगों को मालूम है कि कुर्मी समाज से बिहार में स्व. वीरचंद पटेल और उनके भतीजे वृषिण पटेल दोनों अपने-अपने दौर में सीएम मैटेरियल बन कर ही रह गए। समय-समय पर दोनो को सीएम बनाने की चर्चा हुई थी।  आखिर ये क्यों नहीं पाटलीपुत्र की गद्दी पर बैठ सके। इसी क्रम स्व० धर्मवीर सिंह तथा त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल प्रो० सिधेश्वर प्रसाद भी राजनैतिक व सामाजिक षडयंत्र के शिकार हुये। नि:संदेह वह "जनेऊ युग" था। लेकिन सच्चाई यह भी है कि कांग्रेस में पिछड़ों की लाबिंग कमजोर पड़ गई । नेता में रणनीतिक रुप से राजनीति को साधने की मजबूत क्षमता तब आती है जब उसका समाज उसके पीछे खड़ा होता है। अन्यथा राजनीति में बलिदानी पुरुष बना दिया जाता हैं।


गौर कीजिए जरा! जगदेव बाबू जैसे नेताओं की हत्या करने का मामला सिर्फ सामंती सोच का ही नही बल्कि जगदेव प्रसाद के समर्थक वर्ग के वर्गीय अचेतनता का भी उदाहरण है। यदि उस वक्त  *जगदेव बाबू* के समर्थक सशक्त होते तो उनकी हत्या की साजिश रचने की किसी को हिम्मत नहीं होती। लेकिन  खुद कभी  ऐसी कोशिश ही नहीं किया गया कि हमारी सामाजिक व्यवस्था सशक्त हो. नतीजतन सरदारवादी,समाज का कोई आदमी उस लक्ष्य तक पहुंच नहीं पाता है.


हम सरदार पटेल को प्रधानमंत्री नहीं बनाने देने का रोना रोते है।लेकिन जब पूरी दुनिया नीतीश कुमार को पीएम मैटेरियल मान चुकी थी। 2014 में नीतीश जी ने भी हिम्मत दिखाया था लेकिन समर्थक सरदार समाज ने क्या किया? अपना वोट विकास के परदादा को दे दिया। नीतीश कुमार को 2 सीटें मिली। फिर कहेंगे कि पलट क्यों गये, 2019 में बनाते। तो पलटते नहीं तो इनका ही तख्ता पलट हो जाता, मानना पडेगा कि -नीतीश कुमार कोई हवा में रहने वाले नेता नही है और उन्हें अच्छी तरह पता है कि स्व. वीर चंद पटेल से लेकर पो० सिधेश्वर प्रसाद तक को मुख्यमंत्री नहीं बनने देने के लिए कौन कौन ताकतें जिम्मेदार रही है। यह तो भला हो लालू प्रसाद यादव का जिनकें शासन काल में बुरी तरह मार खायें लोग मजबुरी में श्री कुमार का नेतृत्व स्वीकार करने के लिये मजवुर हैं।राजनीति में पलटी मारना नहीं जानियेगा तो घर बैठना पड़ेगा। खैर! कुल मिलाकर कहना यह है सरदार पटेल के पीएम नहीं बनाए जाने के वियोग में आप नीतीश कुमार जैसे पीएम मैटेरियल को संभाल नहीं सकें, हौसला नहीं दे सके। लगातार रोते रहे, भटकते रहे। जबकि सचेत होकर समाजनीति और राजनीति करने की आवश्यकता है।


ठीक यही सामाजिक व्यवस्था किसी को नेता बनाने के काम आती है। फिर सत्ता में आने पर वह वर्ग सताधारी जमात होने का फायदा उठाने लगता है। मीडिया, न्यायपालिका से लेकर कार्यपालिका में लगातार बिना बोले-बिना कहें अघोषित रूप से प्रति दिन यह काम आँखों के इशारों से होते रहता है। क्योंकि सरदार वादी जमात का मीडिया, न्यायपालिका से लेकर कार्यपालिका प्रतिनिधित्व नाम मात्र का है।


फर्ज कीजिए, मैंने एक न्यूज़ पत्रिका शुरु किया। शुरुआत में अपने दम पर चलाया, I लेकिन इससे बेहतर बनाने के लिए, स्थायित्व बरकरार रखने के सामाजिक स्तर पर आर्थिक ढाँचे की आवश्यकता होती है। जिसमे निराशा हाथ लगती है. नतीजा हुआ कि पत्रिका की बिहार में गतिविधियाँ मृतप्राय हो गई। हमारे जैसे कई लोगों के द्वारा खड़े किये गये समाज को प्रभावित करने वाले ढांचे के खड़े होकर गिर जाने की वजह हमारी सामाजिक व्यवस्था ही है। वहीं प्रभु समाज द्वारा चलाए जा रहे समाज को प्रभावित करने वाले संस्थान मजे से चल रहे हैं। वे अपनी बातों को पल-भर में पूरे देश भर में पहुंचा सकते  है।  पिछड़े वर्ग के लोगों की खबरें लगाने में वहां दोयम दर्जे का व्यवहार होता है। इस स्थिति का मतलब यह भी नहीं है कि इसमें मेरा अहित हो गया है। भई! व्यक्तिगत तौर पर किसी सक्षम व्यक्ति की पहचान अथवा कमाई भी किसी संस्थान का मोहताज नहीं होती हैं। मेरा अगला कदम अथवा संस्थान और मजबूत होगा। लेकिन सामाजिक रूप से समाज के लिए उपलब्ध एक प्लेटफार्म का गर्भपात तो हो ही गया।


न्यायपालिका में आप नहीं है। मध्य प्रदेश तथा छ्त्तीसगढ़ में आपके आरक्षण का कोटा बढ़ने पर वे अदालत चले गये। उनके मामले में आप तो नहीं गये थे। हार्दिक भाई पर चुनाव लड़ने से रोक लगा दिया गया। सुप्रीम कोर्ट को मुकदमा सुनने के लिए समय नहीं है। आखिर क्यों? क्योंकि सरदारवादियों की सामाजिक व्यवस्था  कमजोर है। आप वोट की ताकत से मुख्यमंत्री बनाने का गुमान पाले रहिए। वे कोर्ट की ताकत से आपके सीएम को ठोकते रहेंगे।


 कहना यह है कि अभी भी सचेत हो जाइये। जो हमें जातिवादी कहकर हिकारत की नजर से देखते है वो सबसे बड़े जातिवादी हैं। सुनियोजित ढंग से अपने योग्य लोगों को राजनीति में समर्थन दीजिए। न्यायपालिका और मीडिया में भेजिए। योग्य लोगों में संभावनाएं दिखने पर मन धन जन तीनों से मदद कीजिए। हाँ, यह भी ध्यान रहे कि जाति के नाम गलत कृत्यों और बदमाशों को शह देना जातिवाद नहीं अतिवाद है। इस देश में जातिवाद के बारे में गलत धारणा फैला दी गई है। इसे पहचानकर जागृत होना पड़ेगा।


राष्ट्रीय स्तर पर मुझे ज्योतिरादित्य सिंधिया, नीतीश कुमार आरपी एन सिंह, विनय कटियार,हार्दिक भाई पटेल,भूपेश बघेल और अनुप्रिया पटेल में संभावना दिखाई दे रही हैं। ध्यान रहे कि इन संभावनाओं की भ्रूण हत्या न हो जाए। सरदार पटेल पीएम नहीं बन सके, रोना छोड़ कर हर स्तर पर तैयारी कीजिए । यदि ब्राह्मणों के संगठन बीजेपी पर बनिया कब्जा कर सकते है तो  किसान समुदाय क्यों नहीं कब्जा कर सकता हैं? बस, सबकुछ सुनियोजित ढंग से होना चाहिए। 
**बुधवार मल्टीमीडिया नेटवर्क